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लोस चुनाव: सीटों पर जीत की ‘सियासी सट्टेबाजी’ और वोटर का विवेक -अजय बोकिल

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आलेख
अजय बोकिल

लोकसभा चुनाव के पांचवे चरण के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विभिन्न टीवी न्यूज चैनलो को दिए जा रहे इंटरव्यू के बाद अगर किसी साक्षात्कार की चर्चा है तो वो है भाजपा के पूर्व चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर की। अपना पुराना धंधा छोड़कर राजनेता बने प्रशांत किशोर (पीके) ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि भाजपा का 370 का नारा भले ही अवास्तविक लगे, लेकिन पार्टी 270 से नीचे हरगिज नहीं जा रही। दूसरे अगर बीजेपी 370 के नीचे गई तो निवेशकों को भारी नुकसान होगा। अगर प्रशांत किशोर के दावे को सही मानें तो देश में मोदी राज 3.0 तकरीबन तय है। उधर पीएम मोदी ने भी कह दिया है कि 400 पार के नारे को आंकड़ों में न पकड़ें, इसका भावार्थ लें कि चुनाव में एनडीए इसके आसपास रहने वाला है। यहां पीके की बात में कुछ दम इसलिए है कि वो भाजपा के अलावा भी कुछ दूसरी विपक्षी पार्टियों के चुनावी रणनीतिकार रह चुके हैं और अब खुद एक जन सुराज पार्टी के संस्थापक हैं। पीके का चुनाव के करंट को पकड़ने और नापने का अपना तरीका है। अलबत्ता पीके के इस बयान ने विपक्ष के उस सोशल मीडियाई नरेटिव को तगड़ा झटका दिया है, जिसमें चार चरण बाद ही मोदी की सत्ता से बेदखली के गारंटी के साथ दावे किए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा तो क्या समूचा एनडीए भी 272 के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच रहा। कारण कि पूरे देश में भाजपा और मोदी विरोधी हवा है और इसका सीधा चुनावी फायदा इंडिया गठबंधन को हो रहा है। इसी आधार पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दावा किया है कि पांच चरणों में कुल 428 सीटों पर हुई वोटिंग में इंडिया गठबंधन 350 सीटें जीत रहा है। दूसरी तरफ केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह का दावा है ‍कि पांचवे चरण के बाद भाजपा सहित एनडीए गठबंधन की 310 सीटों पर जीत पक्की है। हम सरकार तो बना ही रहे हैं, अब सवाल सिर्फ 400 सीटों की फिनिश लाइन को टच करने का है।

यह शायद पहला चुनाव है, जिसमें हर चरण के बाद दोनो मुख्य प्रतिद्ंद्वी गठबंधनों द्वारा जीत के आंकड़े ‘राजनीतिक सट्टेबाजी’ की तरह जारी किए जा रहे हैं। जबकि चुनाव के दो चरण अभी बाकी हैं। इस मनोवैज्ञानिक सियासी द्वंद्व का लक्ष्य मानो यह है कि क्लास टेस्ट के अंकों को ही बोर्ड परीक्षा का फाइनल‍ रिजल्ट मान लिया जाए। इसी से समझा जा सकता है कि राजनीतिक रण में मुकाबला कितना कड़ा है। हकीकत में जनता के मन में क्या है, यह ठीक- ठीक कोई नहीं जानता बल्कि चुनावी रणनीतिकारों की कोशिश तो यह है कि जनता भी उसी वेव लैंथ पर सोचे, जो नेता सरेआम कह रहे हैं। इन तमाम दावों प्रतिदावों के बरक्स एग्जिट पोल सर्वे अभी आने बाकी हैं। वो क्या बताते हैं, यह और भी दिलचस्प होगा।
बहरहाल जनमत की व्याख्याएं मतदान के हर चरण के बाद अलग- अलग तरीके से की जा रही हैं। विपक्षी इंडिया गठबंधन का मानना है कि पांचवे चरण तक आते- आते भाजपा के लिए एक आसान- सी लगती प्रेमकथा अब ट्रैजिक स्टोरी में बदलने जा रही है तो भाजपा का मानना है कि ‘हाथी चले बजार, कुत्ते भूंके हजार’ की तर्ज पर वो और उसका संगठन अपना काम कर रहा है। चुनाव मुद्दों की सर्जिकल स्ट्राइक की बजाए वोटों के ‘मैनेज मेंट’ से जीता जाता है। नतीजे विपक्षी दावों का मुंह‍ सिल देंगे।
उधर विपक्ष बार- बार यह कह रहा है कि इस बार नतीजे चौंकाने वाले होंगे। वैसे भी अमूमन हर चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले ही होते हैं, हारने वाले के लिए तो होते ही हैं, कई बार जीतने वाले के लिए भी होते हैं। इसमें भी विपक्ष का ट्रिकी फंडा यह है कि अगर इंडिया गठबंधन एनडीए से ज्यादा सीटें जीत सका तो नरेटिव बनेगा कि जनादेश मोदी और भाजपा के खिलाफ आया है, इसलिए सभी भाजपा विरोधी पार्टियां मिलकर सरकार बनाएंगी। अगर भाजपा फिर भी जीत गई तो ईवीएम पर हार का ठीकरा फोडना तय है। उसे ‘जनादेश’ की बजाए ‘मशीनादेश’ कहा जाएगा। इसी के चलते अपने- अपने इलेक्शन नरेटिव को स्थापित करने के लिए सोशल मीडिया पर काफी मेहनत और पैसा खर्च किया जा रहा है।

एक व्लाॅगर ने तो यू ट्यूब पर चौथे चरण के बाद प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान ‘बीबीसी वर्ल्ड’ के कथित सर्वे के आधार पर इंडिया गठबंधन की जीत सुनिश्चित कर डाली। सर्वे के बैक ड्राॅप में बीबीसी वर्ल्ड का लोगो भी दिखाया जा रहा था। लेकिन जब बीबीसी ने अपनी अधिकृत वेबसाइट पर उसके द्वारा ऐसा कोई चुनावी सर्वे नहीं करने की बात स्पष्ट की तो व्लाॅगर ने अपने वीडियो से चुपके से बीबीसी वर्ल्ड का लोगो हटा दिया। लेकिन तब तक उसे डेढ़ लाख से ज्यादा व्यूज मिल चुके थे। यह डिजीटल दुस्साहस का एक उदाहरण है।
यहां सवाल यह कि इंडिया गठबंधन की जीत के दावों में सच्चाई कितनी है? अगर आंकड़ों के आधार पर बात करें तो यह कठिन जरूर है, मगर असंभव नहीं है। इंडिया गठबंधन में कुल 36 दल शामिल हैं और अगर टीएमसी को भी मिला लिया जाए तो यह संख्या 37 होती है। इनमें से कांग्रेस के अलावा 6 पार्टियां ऐसी हैं, जो चुनाव में 5 से लेकर 25 तक सीटें जीतने की स्थिति में हैं। अगर कांग्रेस चुनाव में अपनी जीती हुई सीटों का आंकड़ा 125 तक ले जा सकी तो बाकी सहयोगियों की मदद से वह किसी तरह 272 तक पहुंच सकती है। लेकिन कांग्रेस के लिए वर्तमान में 52 सीटों का आंकड़ा 125 तक पहुंचाना एवरेस्ट सर करने जैसा है। ‘दो लड़को’ की बातों में इतना जबर्दस्त करंट भी नहीं दिख रहा कि जो मोदी विरोधी करंट को डीसी से एसी करंट में तब्दील कर दे। दूसरी तरफ भाजपा के एनडीए गठबंधन में संख्या के लिहाज से राजनीतिक दल ज्यादा यानी 41 हैं, लेकिन इनमें भाजपा के अलावा कोई पार्टी ऐसी नहीं है, जो अपने दम पर 20 से ज्यादा सीटें निकाल पाए। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि अव्वल तो भाजपा ने आंध्र प्रदेश को छोड़कर सभी जगह ज्यादातर सीटें अपने खाते में रखी हैं। ऐसे में अगर भाजपा का इंजन अपने ही यार्ड में फेल हो गया तो एनडीए की गाड़ी मैजिक नंबर के आउटर पर जाकर अटक जाएगी। हालांकि ऐसा होने की संभावना कम है। इस चुनाव में कोई आंधी भले नजर न आए, लेकिन बेरोजगारी, महंगाई, विकास, किसानों की नाराजी, सड़क पानी बिजली, जातिवाद, आरक्षण, भ्रष्टाचार और गलत प्रत्याशी चयन आदि मुद्दे यथावत हैं। इन मुद्दों को मोदी और राम मंदिर फैक्टर किस स्तर तक काउंटर कर पाते हैं, उसी से काफी कुछ चुनाव नतीजे तय होंगे। उधर बाजार के संकेत भी उतार चढ़ाव भरे हैं। चुनाव में चरण दर चरण अनिश्चितता बढ़ रही है। अमूमन सामान्य मतदाता भी इतना तो समझता ही है कि ये लोकसभा चुनाव देश की सरकार के लिए हो रहे हैं, ऐसे में उसके निजी दुख दर्द के अनुपात में राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर वोट ज्यादा करने की संभावना है। ऐसा विवेक वोटर ने हर चुनाव में दिखाया भी है। गठबंधन सरकारों के काम काज, मजबूरियों, अंतर्विरोधों और उससे पैदा होने वाली राजनीतिक अराजकता को भी उसने देखा है। अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का थोड़ा बहुत अहसास उसे भी है। राष्ट्रहित का अंदाजा उसे भी है। लिहाजा वोटर जो भी जनादेश देगा, अपने विवेक से देगा। वह अनपढ़ हो सकता है, नासमझ नहीं है। हमे उसके विवेक पर भरोसा करना चाहिए।

लेखक ‘सुबह सवेरे’के वरिष्ठ संपादक हे।

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