जबलपुर। मेडिकल छात्र-छात्राओं की पढ़ाई पूरी होने के बाद दक्षता जांची गई तो उनमें कुछ फिसड्डी निकल गए। जैसी उनकी स्थिति थी वैसा ही उनका लेखा-जोखा आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय को भेज दिया गया। इंदौर के यह विद्यार्थी निश्चिंत थे कि गत वर्षों की तरह इस बार भी उनको बैठे-बिठाएं प्रायोगिक परीक्षा में पूरे अंक मिल जाएंगे। लेकिन परिणाम आया तो चौंकाने वाला था। भिया लोग अंतिम पायदान में आकर लुढ़क गए। वे रोते हुए मालवा प्रेमी के एक मंत्री के पास पहुंच गए। गाल बजाने में हमेशा आगे रहने वाले मंत्री ने इंदौर का उल्लेख सुना और कुलगुरु को फोन घुमा दिया। कुलगुरु ने मामला समझाना चाहा लेकिन मंत्री तो ठहरे बड़बोले। सीधे निर्देश दे दिया कि विद्यार्थियों का उद्धार करों। अब मंत्री जी को कौन समझाए कि ऐसा मत करिए…कहीं आगे चलकर जरूरत पड़ी तो यहीं विद्यार्थी आपकी भी नब्ज टटोलेंगे। अनाड़ी हाथ यदि सही नब्ज नहीं पकड़ पाए तो बड़े नुकसान होंगे।
बिखरे कुनबे को एक करना चाह रहे नए साहब
संभाग के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान में नए साहब ने कुर्सी संभालते ही बिखरे कुनबे को फिर से एक करने का प्रयास शुरू किया है। नए साहब पुराने अनुभवी है। कुनबे के एक-एक व्यक्ति की प्रतिभा से अच्छी तरह से परिचित है। अपनी नई पारी में नए साहब की मंशा इस बार संस्थान के लिए कुछ कर गुजरने की है। इसलिए सबका साथ मांग रहे है। लेकिन पुरानी मैडम दो वर्ष के दौरान कुनबे में इतनी फूट डाल चुकी है कि तिनका-तिनका बिखर गया है। फिर भी नए साहब के प्रयास रंग लाए इसकी कामना सब समझदार सदस्य कर रहे है। इस बात को लेकर राहत भी महसूस कर रहे है कि नए साहब बोलते कम और सुनते ज्यादा है। इतने गंभीर तो है कि कम से कम उनसे किसी समस्या पर बात हो सकती है। पुरानी मैडम की जीव्हा पर तो हमेशा विषाक्त शब्द ही रहते थे। उनके सामने कुछ बोला नहीं कि काटने को दौड़ती थी।
एक खेल पदाधिकारी ने मैदान को बनाया अखाड़ा
राइट टाउन स्टेडियम कुछ दिनों से खेल गतिविधियों से अधिक राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है। जहां, स्टेडियम को किराए पर लेने वाले एक बिल्डर और उसके साझेदारों से एक युवा खेल प्रशिक्षक की खींचतान चल रही है। लेकिन खिलाड़ियों के बीच कानाफूसी कुछ और ही चल रही है। खिलाड़ी अापस में चर्चा कर रहे है कि बिल्डर को मोहरा बनाकर वर्षों से एक खेल संघ में स्वयंभू अध्यक्ष बनकर बैठे एक पदाधिकारी परदे के पीछे से असली चाल चल रहे है। यह खेल पदाधिकारी नहीं चाहते है कि उनके अलावा किसी और स्टेडियम में वर्चस्व रहे। युवा खेल प्रशिक्षक के शिष्यों की संख्या और लोकप्रियता अपेक्षाकृत अधिक है। यहीं कारण है कि युवा प्रशिक्षक के कदम रखने से स्टेडियम में संबंधित खेल पदाधिकारी को अपनी पकड़ कम होने का भय सता रहा है। दोनों से सत्ता पक्ष से जुड़े है। ऐसे में युवा प्रशिक्षक को रोकने खेल पदाधिकारी हर दिन नई तिकड़म भिड़ा रहा है।
बेटा विदेश में पढ़ा, बाप में किराए के घर में रह रहा
बाइपास में एक कबाड़खाने में विस्फाेट के साथ ही इसके हिस्ट्रीशटर कर्ता-धर्ता से जुड़ी चौंकाने वाली जानकारियों का भी धमाका हुआ है। मामला करोड़ों रुपये का व्यापार करने वाले हिस्ट्रीशीटर के किराए के मकान में रहने का है। सामान्य व्यक्ति भी समझ रहा है कि हिस्ट्रीशीटर ने अपने बेटे को विदेश में पढ़ाने पर खुलकर रुपये खर्च किया। स्वजन के रहन-सहन की ठाठ भी कम नहीं है। बच्चों के खेलने का मन हाे तो हवाई जहाज की डमी घर पर है। इतना सब होने के बाद भी वह रहता किराए के घर में है। अपनी गतिविधियों को लेकर हिस्ट्रीशीटर पहले भी संदिग्ध रहा है। लेकिन उसकी करतूतों की जांच करने वाले जिम्मेदार बिल्कुल भी हतप्रद नहीं है। शहर के गलियारों में तो चर्चा यहीं है कि आखिर जानकारी हो भी कैसे इन्हीं जांच करने वालों ने ही तो हिस्ट्रीशीटर को कई पैंतरें सिखाएं है।