– सन् 1857 की के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के योद्धा तात्या टोपे के परिजन सरकार द्वारा की जा रही उपेक्षा से नाराज
– विधिवत सही कार्यक्रम ना होने और बलिदान स्थल पर स्मारक स्थल और पार्क का निर्माण ना होने से नाराजगी
शिवपुरी से रंजीत गुप्ता
अंग्रेजों के खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई लड़ने वाले सन् 1857 की क्रांति के शहीद तात्या टोपे के परिजन प्रदेश की शिवराज सरकार और जिला प्रशासन की उपेक्षा से नाराज हैं। शिवपुरी में 18 अप्रैल को वीर शहीद तात्या टोपे का बलिदान दिवस है और अंग्रेजों ने 18 अप्रैल 1859 को तात्या टोपे को शिवपुरी में ही फांसी दी थी लेकिन शिवपुरी में प्रशासनिक उपेक्षा के चलते शहीद तात्या टोपे के बलिदान को याद करते हुए जो कार्यक्रम होने चाहिए वह यहां पर नहीं हो रहे हैं। इसके अलावा अभी तक तात्या की याद में यहां पर कोई बड़ा स्मारक भी नहीं बनाया गया है। इसी को लेकर तात्या टोपे के परिजनों में नाराजगी है।
शिवपुरी आए तात्या टोपे के प्रपौत्र सुभाष टोपे ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि आज देश आजादी की 75 वी वर्षगांठ मना रहा है लेकिन जिन लोगों ने देश की आजादी में अपने प्राण न्यौछावर किए अपना बलिदान दिया उन्हें ही देश की सरकारें भूल रही हैं और प्रशासनिक अधिकारी उपेक्षा कर रहे हैं।
ग्वालियर से तात्याटोपे को उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए आए सुभाष टोपे ने कहा कि शिवपुरी में अभी तक तात्या टोपे के बलिदान स्थल को बड़े स्मारक के रूप में विकसित नहीं किया गया है। आज भी शिवपुरी में सड़क पर प्रतिमा खड़ी हुई और धूल धकड़ के बीच यहां पर प्रतिमा है। इसके अलावा बलिदान दिवस पर जिस स्तर का शहीद कार्यक्रम होने चाहिए वह नहीं होते। पूर्व में तात्याटोपे के हथियारों की प्रदर्शनी व छायाचित्र यहां पर लगते थे लेकिन अब नहीं है। इसके अलावा उन्हें भी पूर्व में बलिदान दिवस पर होने वाले कार्यक्रम में जिला प्रशासन द्वारा बुलाया जाता था लेकिन उन्हें अब बुलाया नहीं जा रहा है। शिवपुरी में आज वह 18 अप्रैल बलिदान दिवस पर वह स्वयं अपने व्यय से अपने परिवार के बलिदानी तात्याटोपे को याद करते हुए यहां श्रद्धांजलि देने आए हैं। कुल मिलाकर प्रशासनिक उपेक्षा से तात्या टोपे के पुत्र सुभाष टोपे नाराज दिखे।
वहीं आर्यावत फाउंडेशन के अध्यक्ष व समाजसेवी नितिन शर्मा ने भी मांग रखी कि भारत की आजादी में और प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में तात्याटोपे का जो बलिदान है उसे नई पीढ़ी याद रखे इसलिए यहां पर नए स्वरूप में बड़ा स्मारक जरूर बनना चाहिए।