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मृत्यु निश्चित है- आचार्य श्री विद्यासागर महाराज

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सुरेन्द्र जैन रायपुर

संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि सब निश्चित होता है किन्तु कब होता है वह बात हम नहीं बता सकते? क्यों होता है ? उसके लिए निमंत्रण देने की आवश्यकता नहीं है वह है मृत्यु | हर एक व्यक्ति मृत्यु से घबराता है | आगम के अनुसार इसे आयु का अभाव कहते हैं | दीपक में तेल समाप्त हुआ दीपक बुझ जाता है | यह तो आपको ज्ञात है लिकिन कभी – कभी वह तेल एकदम समाप्त हो जाता है किसी प्रकार से उस समय वह एकदम भभक जाता है | आप लोग तो लाइट है भभकना भी संभव नहीं है लेकिन कभी – कभी वह भी भभक जाता है तो लाइट गोल हो जाती है | जीवन का किसी भी निमित्त से मीट जाना यह मृत्यु है | गाड़ी स्टेशन पर आने वाली है कभी – कभी समय से पहले भी आ जाती है और कभी – कभी विलम्भ से भी आती है | कभी – कभी दिन में 12 बजे आने वाली रात के 12 बजे आती है | भारत में ऐसा घटित होता है | मृत्यु भी इसी प्रकार होती है कभी – कभी आयु पूर्ति होकर भी मृत्यु नहीं होती है | यह आप लोगो को हमेशा ध्यान में रखना है | जब घटनायें होती है तब मृत्यु हो सकती है जैसे बादलों की बहुत गर्जना हुई उससे घबराकर मृत्यु हो गयी | इससे मर नहीं सकते थे लेकिन घबराकर मृत्यु हो गयी | यह हमें आश्चर्य है की शरीर में रोम – रोम है छिद्र है जिससे प्राण कभी भी निकल सकते हैं | किन्तु आश्चर्य यह है की इतने बिलों के होते हुए भी जीव (आत्मा) बाहर नहीं निकल पा रहा है | किसी भी निमित्त से आयु पूर्ण होने पर जीव बाहर निकल जाता है और शरीर बाहर पड़े रहता है | इसलिए आचार्यों ने हम लोगो को कहा है की जिन्दगी के बारे में ज्यादा मत सोचो मृत्यु के बारे में ज्यादा सोचो | कुछ लोग जीवन के १०० वर्ष निकाल लेते हैं लेकिन वे मृत्यु के बारे में १०० सेकंड भी नहीं सोचते उसका भविष्य क्या होना है ? प्रभु तो जानते हैं, जाना जाता है लेकिन आपकी आयु तो जानने के लिए प्रभु नहीं हुए है | वह स्वस्थ्य है | स्वस्थ्य शरीर रहे इसलिए स्वस्थ्य शरीर में रहना ही स्वस्थ्य नहीं है | स्वस्थ्य का अर्थ अपनी आत्मा के चिंतन में जब रहता है वह स्वस्थ्य माना जाता है बाकि जो अपने शरीर की चिंता में लगे है, वह पर की रक्षा में लगे है वे अस्वस्थ्य है | आप लोग आस्वस्थ हो जाईये की आप अभी अस्वस्थ्य है | इस विश्वास के साथ रहिये की मृत्यु कभी भी आ सकती है, कभी भी स्वास रुक सकती है | स्वास का रुकना ही जीवन का अभाव होना है यह आत्मवाचक है | कई बार कुछ लोगो को ऐसा निमित्त मिल जाता है समाधि के साधन के लिए डॉक्टर लोग कह देते हैं की अब आपको ज्यादा दिन रुकना नहीं है दोनों हाथ ऊपर कर लेते हैं | इसके लिए जितनी भी स्वास की घड़ियाँ शेष हैं कैंसर जैसे रोग हो जाते हैं तो मृत्यु निश्चित है वह होना ही है लेकिन उसमे धर्म ध्यान कर मृत्यु को सुधार सकते हैं | प्रवचन के समय पांडाल में दिन में लाइट चालू देख आचार्य श्री ने उसे बंद करने को कहा जिसे तुरंत बंद किया गया और कहा की आज कल तो यह स्टैण्डर्ड जिसको बोलते हैं अंडरस्टैंडिंग क्या है इसमें हमको मालूम नहीं है की दिन में भी सूर्य के प्रकाश में भी लाइट चालू रखते हैं | इसमें आप लोगो को सोचना चाहिये की सूर्य का प्रकाश पर्यांप्त होता है | आपको इस प्रकार से क्या मिलने वाला है कुछ मिलने वाला नहीं है | इसलिये व्यवस्था करने को कह देते हैं लेकिन आप लोग भूल जाते हैं इस प्रकार भूलने की बीमारी आप लोगो को हो गयी है | कुछ बाते एक बार कहना पर्याप्त होता है लेकिन आप लोगो के लिए बार – बार अनुमोदन की आवश्यकता है | ये सोच लो कोई भी अच्छा काम होता है तो ठीक है लेकिन इसको बार – बार कहना भी अच्छा नहीं | एक बार कहने से समझ लेते हैं | समय मै तो देख रहा हूँ पर्याप्त है आप लोग ज्यादा क्यों ले रहे हैं हम तो समय दे रहे हैं| हमें जो बीठा करके छेक लेते हैं हमें वो अच्छा नहीं लगता दूसरों को दर्शन में बाधा होती है यह अच्छी बात नहीं है | लोग दूर – दूर से आते हैं वर्षा भी इनका आकस्मिक स्वागत करती है | आय हैं सुनने के लिए ज्यादा कहने से वह अच्छा नहीं होता | मृत्यु इस प्रकार से नहीं मानती, नहीं सुनती, नहीं भूलती अब क्या कहना क्या करना उसके स्वागत के लिये हमेशा तैयार रहना चाहिये | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्री निर्मल चन्द जैन जी चरगुवा निवासी परिवार को प्राप्त हुआ |

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