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वन और वन्यजीवों के लिए अनुकूल नहीं रहा अब वन मंडल शिवपुरी

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विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष

हर तरफ शिकारी ही शिकारी , वनों की चिंता कौन करे
-वनों में माफियाओं के संरक्षक , शहर में अतिथि बन पौधा रोपते हैं

संजय बेचैन शिवपुरी

कभी हरीतिमा के लिए जाना जाने वाला शिवपुरी जिले में इन दिनों वन अमले की माफिया तत्वों से हमजोली के कारण वन विनाश की खतरनाक इबारत लिखी जा रही है । वन्य जीव व जंगलों के विनाश के खेल में अग्रणी जिला घोषित तौर पर भले न हो पर अघोषित तौर पर सबसे ज्यादा इस जिले के वन और वन्यजीव खतरे का सामना कर रहे हैं । आज विश्व पर्यावरण दिवस पर कई संस्थाएं वरिष्ठ अफसरों को पर्यावरण का सबसे बड़ा मित्र मानकर उनके आतिथ्य में पौध रोपण करती नज़र आयेंगी ,पर हकीकत ये है की ये पौधा हर बर्ष रोपा जाता है जिनमें से 90 प्रतिशत पौधे तो अगले बर्ष तक दिखाई ही नहीं देते हैं, जिन जंगलों में पोधा बर्षों बाद विशाल ब्रक्ष बनता है उन जंगलों को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त माफिया तत्व इन्ही वरिष्ठ अफसरों की जेब में हिस्सा पहुंचाकर अवैध खदान संचालन व अन्य गैर वानिकी गतिविधियों का कृत्य कर उनका सामूहिक ब्रक्ष संहार करते हैं । गैर वानिकी गतिविधियों के लिए कुख्यात हो चुका ये जिला अपनी प्राक्रतिक छटा को खोता जा रहा है । वन्यजीव संरक्षण, विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रहे वन्यजीवों के संरक्षण और प्रबंधन की एक प्रक्रिया है। वन्यजीव हमारी पारिस्थितिकी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वे जानवर या पौधे ही हैं जो हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की सहायक प्रणाली हैं। वे जंगल वाले माहौल में या तो जंगलों में या फिर वनों में रहते हैं। वे हमारे पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में मदद कर रहे हैं। अमानवीय क्रियायें वन्यजीव प्राणियों के लुप्त या विलुप्त होने में सबसे बड़ी भूमिका निभा रही हैं। शिवपुरी जिले के जंगली जानवर वन विनाश के कारण गाँव शहरों में घुस रहे हैं ।
शिवपुरी के जंगलों के निकट बसे गांवों में कई कुछ लोग जंगली जानवरों का शिकार कर रहे हैं । हवाई पट्टी के पास एक होटल में मांग पर जंगली जानवरों का गोष्त उपलब्ध कराए जाने के चर्चे हैं ।‎ वन और वन्यजीव संरक्षण यह शब्द हमे उन संसाधनों को बचाने की याद दिलाता है जो हमें प्रकृति द्वारा उपहार के रूप में प्रदान किए गए हैं। वन्यजीव उन जानवरों का प्रतिनिधित्व करता है जो पालतू या समझदार नहीं हैं। वे सिर्फ जंगली जानवर हैं और पूरी तरह से जंगल के माहौल में रहते हैं। ऐसे जानवरों और पौधों की प्रजातियों का संरक्षण जरूरी है ताकि वे विलुप्त होने के खतरे से बाहर हो सकें मगर इस जिले में इनके संरक्षण की जगह इनका खात्मा युद्द स्तर पर जारी है और जिस विभाग की जिम्मेदारी इनके संरक्षण की है वे ही इनके सर्वनाश करने वाले तत्वों के संरक्षण दाता बने हुए हैं । डोंगरी पथरोली व बम्हारी में जंगलों में वो विनाशलीला चली कि जो पर्यावरण प्रेमी नज़ारा देखेगा उसकी आँखें नम हो जायेंगी । कई बीघा जंगल सत्ताधारी मंत्री के इशारे पर सफाया कर दिया गया । सहरिया क्रांति द्वारा मामला संज्ञान में लेन के बाद वन मंडल अधिकारी वहां पहुँचीं तो तीन राउंड हवाई फायर करके उनको उलटे पैर लौटा दिया गया , करोड़ों का पत्थर चोरी करवाने वाले वन अमले पर कार्यवाही की जगह अधिकारीयों ने बलि का बकरा बनाया एक अदना से बीट गार्ड को । आज दिनांक तक उन पांच खदानों की लीज निरस्ती का कागज आगे नहीं सरक सका । अब पुनः वहां उत्खनन रात को शुरू हो गया है । इस पूरे खेल में रेंजर का हाथ साफ़ नजर आ रहा है मगर अधिकारी उसको कमाऊ पूत मानकर कार्यवाही तक नहीं कर रहे हैं । नतीजा पूरा जिला अब उसी के नक्शेकदम चलकर अवैध उत्खनन के लिए जंगल में मशीने ले पहुंचा है ,इसका ताजा उदाहरण है मोराई और मझेरा क्षेत्र के जंगल जहां सेंकडों की संख्या में लोग वनकर्मियों की मौन सहमती से जंगल से सफेद पत्थर ले जा रहे हैं

बंदरों के झुड़ खेतों को पहुंचा रहे नुकसान

जंगल से बड़ी सख्या में बंदरों के समूह रहवासी इलाकों में पहुंच रहे हैं। इन दिनों जंगलों की अपेक्षा गांवों के खेतों, बगीचों में आम, अमरूद सहित अन्य फलों की बहार है जिसे बंदर खाकर अपनी भूख और प्यास मिटा रहे है हालांकि इन बंदरों के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है ।

जंगल में सूख गए जलस्रोत

भीषण गर्मी के चलते जंगल में जलस्रोत सूख रहे हैं। पेड़ों से पत्ते भी झड़ गए हैं, जिस कारण वन्यजीवों के सामने संकट हो चुका है। जंगलों के अंदर अधिकांश जलस्रोत सूख चुके है, सीमित स्थानों पर इन दिनों पानी बचा है। जहां दूर-दूर से वन्यजीवों को आकर अपनी प्यास बुझाना पड़ रही है। पानी के साथ साथ भूख मिटाने की भी समस्या है क्योंकि गर्मियों के कारण पेड़ भी बिना पत्तों के नजर दिखाई दे रहे है जिसके चलते पेट भरना भी कठिन है।
शिवपुरी में वन्यजीवों के विनाश के लिए कई कारक हैं जिनमे से कुछ को हमने यहाँ सूचीबद्ध किया है।

निवास स्थान की हानि

– जिले के वन क्षेत्रों में अवैध खदान संचालन लिए जंगलों की अनावश्यक तरह से कटाई विभिन्न वन्यजीवों और पौधों के निवास स्थान की हानि के लिए जिम्मेदार है। ये गतिविधियाँ जानवरों को उनके घर से वंचित करती हैं। परिणामस्वरूप या तो उन्हें किसी अन्य निवास स्थान पर जाना पड़ता है या फिर वे विलुप्त हो जाते है।
संसाधनों का अत्यधिक दोहन – संसाधनों का उपयोग बुद्धिमानी से करना होता है, वन के निकट जिला अफसरों से सांठगाँठ कर अनापत्ति प्राप्त कर खनन की लीज करा लेते हैं वाद में लीज एरिया छोडकर जंगलों में खनन शुरू कर देते हैं इससे कई प्रजातियों के घर चीन रहे हैं व विलुप्त होने को बढ़ावा मिल रहा है ।

शिकार और अवैध शिकार

– इस जिले में जानवरों का शिकार खुलकर जारी है कई बार शिकारियों को यहाँ पकड़ा भी गया है पर उनके विरुद्ध ये कार्यवाही न काफी है मनोरंजन के लिए जानवरों का शिकार करना या उनका अवैध तरह से शिकार का कार्य वास्तव में घिनौना है क्योंकि ऐसा करने का मतलब है अपने मनोरंजन और कुछ उत्पाद प्राप्त करने के आनंद के लिए जानवरों को फंसाना और उनकी हत्या करना। जानवरों के कुछ उत्पाद बेहद मूल्यवान हैं, उदाहरण त्वचा, सींग, आदि। जानवरों को बंदी बनाने या उनका शिकार करने और उन्हें मारने के बाद उत्पाद हासिल किया जाता है। यह बड़े पैमाने पर वन्यजीवों के विलुप्त होने के लिए अग्रणी है, जिसका एक उदाहरण सों चिरैया व शिवपुरी में लुप्त होते जा रहे काले हिरण हैं ।

फार्म हॉउस मालिकों के शिकारी कुत्ते

जिले में जंगल की सीमा से लगे कई फार्महाउस मालिकों ने दैत्याकार शिकारी कुत्ते पाल रखे हैं जो वन्य जीवों का शिकार भी करते हैं ये फार्म हाउस मालिक कभी भी बाजार से गोस्त खरीदते नहीं दीखते जिससे सहज समझा जा सकता है कि आखिर इनकी खुराक खान से पूरी होती है .

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