नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन मन सहस्त्रार चक्र में स्थित होने के कारण, साधना करने वाले के लिए सम्पूर्ण ब्रह्मांड के दरवाजे खुल जाते हैं. ध्यान पूर्णतः माता में केंद्रित रहता है. समस्त दुख ताप, विध्न, दुष्ट दानव भूत–प्रेत समाप्त हो जाते हैं. किसी भी प्रकार की पीड़ा समाप्त हो जाती है.
मां कालरात्रि देवी दुर्गा के 9 स्वरूपों में से एक हैं, मां कालरात्रि का रंग कृष्ण वर्ण का है, काले रंग के कारण उनको कालरात्रि कहा गया है. चार भुजाओं वाली मां कालरात्रि दोनों बाएं हाथों में क्रमश: कटार और लोहे का कांटा धारण करती हैं. मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का संहार करने के लिए अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था.
नवरात्रि के सातवें दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर मां कालरात्रि का स्मरण करें, फिर माता को अक्षत्, धूप, गंध, पुष्प और गुड़ का नैवेद्य श्रद्धापूर्वक चढ़ाएं. मां कालरात्रि का प्रिय पुष्प रातरानी है, यह फूल उनको जरूर अर्पित करें. इसके बाद मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करें तथा अंत में मां कालरात्रि की आरती करें.
माता की अर्चना नियमानुसार, मन वचन और शुचिता के साथ करना चाहिए. क्योंकि ये शुभ फल देनेवाली हैं इसलिए इन्हें ’शुभंकरी’ नाम से भी जाना जाता है. आज से दिन 8 कुमारी कन्याओं को भोजन कराया जाता हैं और स्त्रियां आज के दिन नीला साड़ी पहनती हैं.
सातवें दिन की अधिष्ठात्री देवी हैं मां कालरात्रि. इनके शरीर का रंग बिल्कुल काला है. ये दिखने में अति भयावह प्रतीत होती हैं. उनके केश अस्त व्यस्त हैं. गले में बिजली के सम्मान कौंधती माला है. चेहरे पर निरन्तर ज्वाला बरसाती तीन आंखें हैं. प्रत्येक श्वास विद्युत की लपटों के सम्मान है. इनका वाहन गधा है. दाहिना ऊपरवाला हाथ वर मुद्रा में और नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है. दूसरे हाथ में ऊपर नीचे लोहे का कांटा और कटार है