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अपने भीतर सुप्त शक्ति को जाग्रत करने का पर्व है नवरात्रि

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पूरे विश्व में परमात्मा को पुरुष रूप से ही पूजा जाता है, लेकिन भारत एक ऐसा देश है, जहां ईश्वर को स्त्री रूप से भी पूजा जाता है। यहीं से दुर्गा की धारणा जुड़ी है। दुर्ग शब्द का अर्थ है- किला। इसपरे विश्व में परमात्मा को पुरुष रूप से ही पूजा जाता है, लेकिन भारत एक ऐसा देश है, जहां ईश्वर को स्त्री रूप से भी पूजा जाता है। यहीं से दुर्गा की धारणा जुड़ी है। दुर्ग शब्द का अर्थ है- किला। इस संसाररूपी दुर्ग को जो बना रही है, चला रही है, नष्ट कर रही है, उस शक्ति का नाम दुर्गा है। जिसकी शक्ति से शरीर, मन और बाहर प्रकृति बन रही है, चल रही है, मिट रही है, उस शक्ति का नाम दुर्गा है।
दुर्गा को दो रूप में कह सकते हैं- एक आकाररहित और दूसरी आकारसहित। जब यह स्थूल शरीर उत्पन्न हुआ और मन-बुद्धि उसमें क्रियमान हुए, तब ‘मैं हूं’ का एहसास आया। जिस चेतना से ‘मैं हूं’ का एहसास आया, अभी आपको उस चेतना के विषय में कुछ नहीं पता। इसी चेतना का जो परमरूप है, जिसे हम परमचेतना कहते हैं, वही दुर्गा है। इस तरह दुर्गा इस शरीर में, इस मन में, वनस्पतियों में भी है। यहां तक पूरे अंतरिक्ष में दुर्गा है। पर, जो इस विज्ञान को नहीं समझ पाते हैं, वे बस इतना ही समझ पाते हैं कि दुर्गा आठ भुजाओं वाली हैं, शेर की सवारी करती हैं, जिसने शृंगार किया हुआ है, उस देवी को दुर्गा कहते हैं।

पौराणिक कथा कहती है कि महिषासुर राक्षस ने तपस्या करके कई वरदान प्राप्त किए थे। उसके पास वरदान था कि उसे कोई भी देवता या राक्षस मार नहीं सकता। इसलिए वह सबको बहुत सताता था और आतंक मचाया करता था। तब देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि राक्षसों से कैसे बचें? तब उन्होंने कहा कि केवल देवी ही इसका एकमात्र उपाय हैं।
सबने मिलकर देवी की उपासना की, फिर उससे एक शक्ति उत्पन्न हुई, जिसका शरीर स्त्री का था, आठ भुजाएं थीं। आठ भुजाओं का मतलब, जिसकी आठों दिशाओं में शक्ति चले, वह दुर्गा है। इन आठ भुजाओं में आठ शस्त्र दिखाए गए हैं। ये शस्त्र देवताओं ने इनको दिए। ब्रह्मा जी ने कमल दिया। कमल आनंद का चिह्न है। शिवजी ने त्रिशूल दिया, इंद्र ने वज्र दिया, विष्णु जी ने अपना शंख दिया। शंख वाचक है ज्ञान का। किसी ने तलवार दी, किसी ने धनुष दिया, भाला दिया, शेर की सवारी दी, सुंदर रूप दिया। राक्षसों को मारने के लिए रौद्र रूप चाहिए। जब देवी रौद्र रूप धारण करती हैं तो उनका नाम ‘काली’ है। जब वह आशीर्वाद देती हैं, तो उसी का नाम ‘मंगला’ हो जाता है। जब अपने से सब कुछ उत्पन्न करती हैं, तो उनका नाम ‘कुष्मांडा’ हो जाता है। कार्तिकेय को जन्म देने से उनका नाम ‘स्कंधमाता’ हो जाता है। जब देवी ने महिषासुर का वध किया तो उनका रौद्र रूप देखकर सभी देवताओं ने उनसे प्रार्थना की- देवी! अब शांत हो जाइए। उनके शांत होने पर उनका नाम ‘कात्यायनी’ हुआ।
अगर तुम शक्ति का दुरुपयोग करते हो तो तुम भी राक्षस ही होते हो। धन एक शक्ति है, इसीलिए धनवान अकसर बिगड़ जाते हैं, उनमें अहंकार आ जाता है। शरीर का बल भी एक शक्ति है, जिसके पास पैसा नहीं, वह मार-पिटाई करके अपना वर्चस्व बनाने की कोशिश करता है। विद्या भी एक शक्ति है, जो ज्यादा पढ़-लिख जाए, उसका दिमाग भी कई बार खराब हो जाता है। अभिमान मतलब राक्षस। चाहे तुम बहुत सुंदर हो, फिर भी अपने स्वभाव से राक्षस हो सकते हो। अभिमान, ईर्ष्या, क्रोध, वैमनस्य राक्षस बना देता है।

महिषासुर कौन है? तुम्हारा अवचेतन मन ही महिषासुर है। इस अवचेतन मन में सारे पाप-पुण्य हैं। महिष मतलब भय। वह असुर, जो महिष जैसा दिखता है। अज्ञान काले रंग का प्रतीक है। ज्ञान श्वेत, उज्ज्वलता का प्रतीक है। अज्ञान, हमारी आसक्ति, हमारे पाप ये सब महिषासुर ही तो हैं। इस महिषासुर को आदत है प्रताड़ित करने की। तुम्हें दुख कौन देता है? तुम्हारा भय। तुम्हारी वासनाएं तुम्हें दुख देती हैं। तुम्हारी आसक्तियां, तुम्हारा ममत्व तुम्हें दुख देता है। इसका नाश कैसे हो? इसलिए देवी उत्पन्न करनी पड़ेगी। इसी देवी को तंत्र में कुंडलिनी कहावह शक्ति, जिसके द्वारा आप अपने अवचेतन मन में पड़े हुए इस महिषासुर नामी राक्षस को मार सकते हो, उसको उत्पन्न करना पड़ता है। सबको अपने अंदर इस देवी को जगाना पड़ता है। देवी को जगाने की साधना करनी होती है। जब वह जगती हैं, फिर तुम्हारे इस अवचेतन मन में पड़े हुए अंधकार और भयरूपी महिषासुर को मारती है। जो शक्ति अभी सुप्त है, वह हमसे दूर है। जब वह शक्ति जाग्रत होती है, तब चक्रों का भेदन होता है। जिस व्यक्ति का स्वाधिष्ठान चक्र ख्ुाल गया, ऐसे व्यक्ति को कामवासना कभी छू नहीं सकती।

अगर वह अनाहत तक पहुंच गई तो इतना प्रेम जाग जाएगा कि हिंसक व्यक्ति भी उसके संपर्क में आने पर अहिंसक होने लग जाएगा। विशुद्धि चक्र जाग्रत हो गया, तो वाणी की सिद्धि हो जाएगी।

आज्ञा चक्र जाग्रत हो गया तो उसके समस्त ज्ञान के द्वार खुलने शुरू हो जाते हैं। वह विद्यावान हो जाता है। कुंडलिनी जाग्रत हुई और अपने शिवरूप चेतन से मिली तो महा आनंद की अनुभूति कराती है। तंत्र कहता है कि तुम यह अनुसंधान करो और शक्ति जाग्रत करो। वही शक्ति दुर्गा है, उस शक्ति को हम नमन करते हैं।

नवरात्रि के नौ दिन अनुसंधान और साधना के द्वारा अपने भीतर सुप्त शक्ति को जाग्रत करने का पर्व है। पूरे संकल्प व निश्चय से इन नौ दिनों में साधना के पथ पर अग्रसर होना चाहिए।

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