रिपोर्ट धीरज जॉनसन,दमोह
दमोह जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर बालाकोट ग्राम में इन दिनों दर्जनों लोगों को एक मैदान में कुदाल, गैती,हंसिया से खुदाई करते हुए देखा जा सकता है जो जमीन में कीमती पत्थरों की खोज कर रहे है इनमे से कुछ लोगों को सफलता भी मिली है। यहां खरीददार भी पहुंच चुके है जो मनमानी कीमत पर ग्रामीणों से इन पत्थरों को खरीद रहे है।
मैदान में दिखाई दे रहे गड्ढे
बालाकोट ग्राम की सीमा पर बने मैदान में वैसे तो छोटे बच्चों को खेलते हुए देखा जाता है, पर इन दिनों उनके खेल मैदान के आस पास छोटे छोटे गड्ढे दिख रहे है क्योंकि लोग चमकीले पत्थरों को खोजने में यहां समय बिता कर रहे है छोटे बच्चें,महिलाए, युवा और बुजुर्ग भी धनवान होने के लिए मेहनत करते प्रतीत हो रहे है और बुजुर्ग किस्से कहानियां सुना रहे है पर छोटे बच्चों को चिंता है कि खुदाई करने वाले उनके मैदान तक न पहुंच जाए।
ग्रामीणों ने बताया कि करीब एक सप्ताह पहले
जिले के एक गांव से कुछ लोग आए और यहां खुदाई करके पत्थर ले गए इसके बाद ग्रामीणों ने भी यहां गड्ढे खोदना शुरू कर दिए, कुछ लोगों को पत्थर प्राप्त हो चुके है जिसमें से कुछ बहुत छोटे तो कुछ बड़े है कुछ में धारिया बनी हुई है इन्हे खोजने के लिए झाड़ियों की जड़ो को खोद कर उनमें भी इन्हे ढूंढा जा रहा है।
खरीददार पहुंच रहे गांव
खास बात यह है कि गांव के लोगों के बीच ही व्यापारियों को भी देखा जा रहा है जो खुदाई में मिले हुए चमकीले पत्थरों को औने पौने दामों में खरीद रहे है। हालांकि इस क्षेत्र की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी है जहां प्राचीन दीवार थी और 1857 की गदर के समय लोग बागी भी हुए थे।
बालाकोट का इतिहास
दमोह तहसील में दमोह से १२ मील नैऋत्य दिशा में है । इस गाँव के चारों ओर एक पत्थर की दीवाल बनी थी, अब बिलकुल नष्ट हो गई है। इसी कोट के कारण इस गाँव का नाम बालाकोट पड़ा। सन् 1857 के गदर के समय यहाँ लोग बागी हो गये थे। उनके दमन करने के लिये एक फौज भेजी गई थी। उसने वहां जाकर किले को पूरी तरह से विध्वंस कर डाला था ।