Let’s travel together.

काशी के मणिकर्णिका घाट पर खेली गई चिता की भस्म से होली

0 434

होली रंग-राग, आनंद-उमंग और प्रेम-हर्षोल्लास का उत्सव है. देश के अलग-अलग हिस्सों में होली अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है लेकिन मोक्ष की नगरी काशी की होली अन्य जगहों से अलग अद्भुत, अकल्पनीय व बेमिसाल है. वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर शिव भक्त महाश्मशान की राख से तैयार भस्म से होली खेलते हैं.  होली से पहले बनारस में मंगलवार को मणिकर्णिका घाट पर मसान की होली खेली गई. मसान की यह होली बनारस में काफी चर्चित है. मणिकर्णिका घाट पर श्मशान नाथ बाबा के श्रृंगार और भोग से इस पर्व की शुरुआत होती है.


यहां खेली जाने वाली होली इसलिए भी खास होती है क्योंकि यह होली भगवान शिव को अतिप्रिय है. ऐसा माना जाता है कि यहां साल के 365 दिन मसान से उड़ने वाली धूल लोगों का अभिषेक करती रहती है.इसके अलावा, हरिश्चन्द्र घाट पर भी मसान की होली मनाई जाती है लेकिन मणिकर्णिका घाट की इस होली का खास महत्व होता है. इतिहास में विश्वनाथ से भी पुरानी जगह मणिकर्णिका घाट है.मणिकर्णिका घाट में हजारों सालों से चिताएं जलती रही हैं. मसान की इस होली में जिन रंगों का इस्तेमाल होता है, उसमें यज्ञों-हवन कुंडों या अघोरियों की धूनी और चिताओं की राख का इस्तेमाल किया जाता है. काशी की होली में राग-विराग दोनों है.पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, काशी के मणिकर्णिका घाट पर शिव ने मोक्ष प्रदान करने की प्रतिज्ञा ली थी. काशी दुनिया की एक मात्र ऐसी नगरी है जहां मनुष्य की मृत्यु को मंगल माना जाता है.मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन पार्वती का गौना करने के बाद देवगण और भक्तों के साथ बाबा होली खेलते हैं. लेकिन भूत-प्रेत,पिशाच आदि जीव-जंतु उनके साथ नहीं खेल पाते. इसलिए अगले दिन बाबा मणिकर्णिका तीर्थ पर स्नान करने आते हैं और अपने गणों के साथ चिता की भस्म से होली खेलते हैं. काशी में महादेव ने ना सिर्फ अपने पूरे कुनबे के साथ वास किया बल्कि हर उत्सवों में यहां के लोगों के साथ महादेव ने बराबर की हिस्सेदारी की. किसी भी उत्सव में शिव अपने गणों को नहीं भूलते.मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ तारक का मंत्र देकर सबको तारते हैं. माना जाता है कि मसान की होली में शामिल होना किसी सौभाग्य से कम नहीं है.
मसान की होली में इस साल बाकी सालों की तुलना में कम अघोरी और नागा बाबा शामिल हुए.

बनारस में इस साल मसान होली के आयोजक  बताते है कि,”जो अघोरी हुआ करते थे, वो ऐसे लोग थे जिनका अपने घर परिवार और गृहस्थ जीवन से मन भर जाता था. वे लोग शिव और उनकी भक्ति में विलीन हो जाना चाहते थे. लेकिन आज का युवा वर्ग सब कुछ करना चाहता है. आज की यंग जेनरेशन के लोग धर्म भी करना चाहते हैं और कर्म भी. आज के युवाओं में देश प्रेम भी है और परिवार प्रेम भी. उन्होंने बताया कि इतनी बड़ी कोरोना महामारी के बावजूद भी भारत के लोग धर्म और अध्यात्म की मजबूती से अपने परिवार के साथ स्वस्थ और मंगल तरीके से रह रहे हैं.”

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.

जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण की तैयारियों के लिए कार्यशाला आयोजि     |     सांची के शमशान को नही मिल सकी सडक,दलदल से होकर गुजरती हे शवयात्राएं     |     पूर्व प्रदेश अध्यक्ष श्री प्रभात झा के निधन से भाजपा संगठन में शोक की लहर: अपूरणीय क्षति, अनमोल योगदान की सदैव रहेगी स्मृति     |     महामाया चौक सहित, कई कलोनियों में जलभराव, बीमाऱी हुई लाइलाज,विधायक जी के निवास के आसपास भी जलभराव     |     नाले में अधिक पानी आने से ऑटो बह गया चालक ने कूद कर बचाई जान,विद्यार्थियों को स्कूल छोड़कर वापस आ रहा था ऑटो     |     बाग प्रिंट कला: मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर,श्रीमती सिंधिया ने मध्यप्रदेश के हस्तशिल्पियों को सराहा     |     पौधे लगाने के बाद बची पॉलीथिन थेली को एकत्र कराकर बेचने से प्राप्त राशि से पौधों की रक्षा के लिए खरीदेंगे ट्री गार्ड     |     उप-मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने श्री प्रभात झा के निधन पर व्यक्त किया शोक, कहा राजनैतिक जगत और समाज के लिए अपूरणीय क्षति     |     मप्र भाजपा के पूर्व अध्यक्ष प्रभात झा का लम्बी बीमाऱी के बाद मेदांता अस्पताल में निधन     |     ग्राम अम्बाड़ी में गिरी कच्चे घर की दीवार बाल बाल बचा बड़ा हादसा     |    

Don`t copy text!
पत्रकार बंधु भारत के किसी भी क्षेत्र से जुड़ने के लिए इस नम्बर पर सम्पर्क करें- 9425036811