सुरेन्द्र जैन रायपुर
डोंगरगढ़। संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है। आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि काल घूम कर के आता है या हम घुमते हैं यह प्रश्न जानने योग्य है।यद्यपि बहुत सारे पदार्थों का ज्ञान विज्ञान के माध्यम से होता है। पहले विज्ञान था ही नहीं ऐसी आज के युग कि धारणा बनी हुयी है। उसमे उनकी अपनी धारणा हो सकती है। यह धारणा विज्ञान के द्वारा होती है।जरुरी नहीं कि सभी धारणा सही हो।प्रत्येक दुकान में द्रव्य को अच्छे ढंग से जमाकर रखा जाता है और उसमे पट्टी लगी होती है कि इसमें कौन सा द्रव्य है, उसका क्या मूल्य है और उस द्रव्य में कौन – कौन सी सामग्री मिली हुई है उसकी सूचि आदि लिखी रहती है। किन्तु वह पर का ज्ञान है स्व का ज्ञान नहीं हें। आज ज्ञेय का ज्ञान है परन्तु इसे जानने वाला कौन है इसके बारे में न तो प्राथमिक कक्षा में, न ही माध्यमिक कक्षा में, न ही उच्च माध्यमिक कक्षा में, न ही महा विद्यालय में और न ही अंतिम कक्षा में इसके बारे में बताया जाता है।बच्चा पढ़ – लिखकर प्रमाण पत्र लेकर आ जाता है उत्तीर्ण हो जाता है। पिता पुत्र से कहते हैं कि तुम पढ़े लिखे हो गए हम तो आज तक बिना पढ़े लिखे ही चल रहे है। चलता है या चलाया जाता है। 4 पहिया गाडी चलती है या चलाई जाती है।गाड़ी अपने आप नहीं चलती है इसके अन्दर बैठा ड्राईवर इसे चलाता है। आज का युग वैज्ञानिक है जो इसको चला रहा है उसको वह मानता है परन्तु जो इसको चला रहा है इसके पीछे कौन है इसका रहस्य विज्ञान के पास भी नहीं है।द्रव्य का मूल्य बढाया जा रहा है मूल्यांकन करने वाला कौन है और मूल्यांकन करने वाले का मूल्यांकन करने वाला कौन है इसके बारे में कोई नहीं जानता।ज्ञाता, दृष्टा, ज्ञेय और दृष्य क्या है और कौन है।ज्ञाता जो जानने वाला होता है। आप अपने आपको अपने शरीर के रूप में मानते हो इसी को बहुत अच्छे ढंग से व्यवस्थित करते रहते हो। हर कोई अपने आप को सुखी मानता है। देने वाला और लेने वाला दोनों ही अपने आप को सुखी मानते हैं। देने वाला पढ़ा – लिखा है और लेने वाला पढ़ा – लिखा नहीं है।वह शिक्षित है और वो नहीं है।ज्ञेय और दृष्टा दोनों का मूल्यांकन करने वाले का मूल्यांकन कौन करेगा। जो जान रहा है उसे जानने वाला कौन है।बोध तो आप करते हैं लेकिन अपना बोध क्या है इसे जानना आवश्यक है। बोध को जो भार मानता है उसका हम आभार नहीं मानते।वो तो बोझ भार मानता है। यह तो अध्यात्म द्वारा ज्ञान में आता है।आप अपनी दुकान को अच्छे से सजाते हो लेकिन यहाँ नहीं लाते क्योंकि यहाँ उसमे रखे द्रव्य कि कोई आवश्यकता नहीं है इसलिए उसका कोई विज्ञापन भी आप यहाँ नहीं करते हैं। अब कौन – कौन ज्ञाता है और कौन – कौन ज्ञाता नहीं है। दूध वाला आता है और दूध देता है तो लेने वाला व्यक्ति कहता है कि आज दूध कुछ अलग लग रहा है जरुर इसमें पानी मिलाया है तो दूध वाला कहता है कि ऐसा हो ही नहीं सकता मै कभी दूध में पानी नहीं मिलता हूँ।फिर वह व्यक्ति दूध को हाथ में लेकर दीवाल में छिटता है तो वह फिसलकर निचे आ जाता है और दूसरा दूध जो पहले से रखा था उसको हाथ में लेकर दीवाल में छिटता है तो वह निचे नहीं सरकता है। वह दूध १०० प्रतिशत सोने कि तरह शुद्ध है। वह व्यक्ति दूध वाले को कहता है कि ददा आपके दूध में तो पानी मिला है। दूध पानी से कहता है कि तुम हमारे पास नहीं रह सकते। पदार्थ का मूल्य दीख रहा है पर इसका मूल्यांकन करने वाला नहीं दिख रहा है।एक चम्मच दूध में कितना पानी मिला है नहीं जान सकते।अपने बच्चे को समझाये कि सही दूध क्या है और पानी मिला दूध कैसा होता है ताकि उसको ज्ञान हो जाये और वह कभी भी सही दूध कि पहचान कर सके। जो बोध को बोझ मानते हैं भार मानते हैं मै उनका आभार नहीं मान सकता।आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य माँ सुलोचना जी जैन, ललित जी जैन, मीना जी जैन, उषा देवी जी, गौरव जी जैन, अलका जी, श्रद्धा जी जैन राजनान्दगाँव (छत्तीसगढ़) निवासी परिवार को प्राप्त हुआ।