हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन का त्योहार मनाया जाता है। इसके अगले दिन चैत्र माह की प्रतिपदा के दिन लोग रंगोत्सव मनाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा गया है। इस साल होलाष्टक 10-17 मार्च तक हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक के दौरान शादी-विवाह, मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश, भवन निर्माण और नया व्यवसाय आदि मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। होलाष्टक के दौरान शुभ कार्यों पर रोक होने के पीछे ज्योतिषीय व पौराणिक दोनों ही कारण माने जाते हैं।
पौराणिक कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी। इससे नाराज होकर उन्होंने प्रेम के देवता को फाल्गुन की अष्टमी तिथि के दिन भस्म कर दिया था। इसके बाद कामदेव की पत्नी रति ने शिव की अराधना की और कामदेव को पुर्नजीवित करने की याचना की, जो उन्होंने स्वीकार कर ली। भगवान शिव के इस निर्णय को भक्तों ने धूमधाम से बनाया था। इसी कारण 8 दिन शुभ कार्य वर्जित होते हैं।
ज्योतिषीय कारण-
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव के होते हैं। ग्रह-नक्षत्र के कमजोर होने के कारण इस दौरान जातक की निर्णय क्षमता कम हो जाती है। जिससे गलत फैसले से हानि की संभावना रहती है।