होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस बार होलिका दहन 17 मार्च और रंग 18 मार्च को खेला जाएगा। होली के आठ दिन पूर्व फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक होलाष्टक रहेंगे। इन दिनों में मांगलिक कार्य निषेध माने गए हैं। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक होलाष्टक रहते हैं। होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। इसका अर्थ होता है होली से पहले के आठ दिन।
होलाष्टक के समय सभी ग्रह उग्र स्वभाव में होते हैं, इसलिए इस दौरान जो शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका उत्तम फल प्राप्त नहीं होता। इसी कारण मांगलिक कार्य न करने की सलाह दी जाती है।
शास्त्रानुसार होलाष्टक में व्रत, पूजन व दान करना विशेष फलदायी होता है। ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है। श्री सूक्त, विष्णुसहस्रनाम, हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। ज्योतिष मान्यतानुसार इस दिन से मौसम परिवर्तन होता है, सूर्य का प्रकाश तेज हो जाता है और साथ ही हवाएं भी ठंडी रहती हैं। ऐसे में व्यक्ति रोग की चपेट में आ सकता है और मन की स्थिति भी अवसाद ग्रस्त रहती है।
पौराणिक कथा के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति से दूर करने के लिए आठ दिन तक कठिन यातनाएं दी थी। आठवें दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रहलाद को जलाने के लिए गोद में लेकर बैठी थी, लेकिन भक्त प्रहलाद तो भगवान विष्णु के आशीर्वाद से बच गए थे और होलिका जल गई थी।इस साल होलाष्टक 10 मार्च से प्रारंभ होकर 17 मार्च को समाप्त होंगे। होलिका दहन 17 मार्च को होगा और अगले दिन 18 मार्च को रंग वाली होली मनाई जाएगी।