डोंगरगढ़ चन्द्रगिरि से सुरेन्द्र जैन धरसीवा
छत्तीसगढ़ की पावन पवित्र धरा डोंगरगढ़ चन्द्रगिरि तीर्थ क्षेत्र में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागरजी महामुनि राज ने शुक्रवार को अपने अनमोल वचन में कहा कि डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है।
आचार्य श्री ने कहा कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थ प्रत्येक व्यक्ति इनमे से किसी ना किसी कार्य में लगा रहता है। ऐसे ही एक व्यक्ति अर्थ के लिये अधिक व्यापार करने कि दृष्टि से विदेश चले जाता है और वहाँ खूब धनार्जन के साथ – साथ बहुमूल्य वस्तुयें भी एकत्रित कर लेता है। अब वह अपने देश वापस आना चाहता है जिसके लिये वह समुद्र पार करने के लिये एक जहाज में बैठ जाता है वहीँ उसको एक व्यक्ति मिलता है
जिससे उसकी मित्रता हो जाती है और वे दोनों जहाज के ऊपर जाकर समुद्र का निरीक्षण करते करते वार्तालाप करते रहते हैं तभी अचानक जहाज के ऊपर कि पट्टी को दूसरा व्यक्ति तोड़ देता है जिससे पहला व्यक्ति समुद्र में गीर जाता है | वह सोचता है कि अब यह बचने वाला नहीं है समुद्र में रहने वाले बड़े – बड़े जीव जंतु उसे खा लेंगे और उसका इतने बड़े समुद्र से निकल पाना असंभव है उसकी मृत्यु तो निश्चित है | वह सारा का सारा धन और कीमती वस्तुयें अपने पास रख लेता है | जो व्यक्ति समुद्र में गीरा था वह सोचता है कि मैंने पूर्व में कोई पाप किया होगा जिसकी वजह से वह इस प्रकार से कष्ट झेल रहा है और वह अरहंत सिद्ध का जाप करने लग जाता है तभी उसको वहाँ एक लकड़ी कि पटिया मिल जाती है जिसके सहारे वह समुद्र में तैरता हुआ किनारे तक पहुच जाता है कहते भी है कि “डूबते को तिनके का सहारा” मिल गया | वह जब
समुद्र के किनारे पहुँचता है तो वहां एक व्यक्ति दोनों हाँथ जोड़कर उसको नमस्कार करता है और अपने साथ चलने को कहता है | वह व्यक्ति उससे पूछता है कि आप मुझे जानते नहीं हो और साथ चलने के लिये कह रहे हो तो वह कहता है कि यहाँ के राजा कि प्रतिज्ञा है कि जो व्यक्ति अकेले समुद्र पार करके यहाँ आएगा उससे वह पानी कन्या कि शादि करेगा और अपने राज्य का आधा राज उसे देदेगा | देखो उस व्यक्ति का पुण्य कहाँ से कहाँ पहुच गया | एक ओर मित्र ने धोखा दिया तो दूसरी ओर अनजान व्यक्ति हाथ जोड़कर आने को कह रहा है | इस प्रकार यदि व्यक्ति अपने जीवन में थोडा भी अच्छा कर्म (पुण्य कार्य) करता है तो उसका फल उसको अवश्य ही प्राप्त होता है | जब वह राजा के पास पहुचता है तो राजा उसको अपनी बेटी के साथ विवाह करने और अपना आधा राज्य देने कि बात कहता है जिसे वह स्वीकार कर लेता है | फिर वहाँ गाँव के कुछ लोग आते हैं और राजा से कहते हैं कि आप जिस लड़के से अपनी बेटी का विवाह करवा रहे हैं वह लड़का हमारे गाँव का है और हमारी जाती का ही है जो भांड है और पैसे कमाने के लिये कुछ वर्ष पूर्व विदेश चला गया था जो अब यह सब आपकी बेटी के साथ विवाह करने के लिये और आपका राज्य हड़पने के लिये ढोंग कर रहा है | भांड एक बहुत बड़ी गाली है | जिसे सुनकर किसी का भी पारा चढ़ सकता है | यह सब वह व्यक्ति कोने में खड़ा सुन रहा था पर उसने वहाँ कुछ कहा नहीं | वह व्यक्ति लंबा – चौड़ा बलवान था लेकिन वह सब शान्ति से सुन रहा था | राजा ने यह सब सुनकर उस व्यक्ति को मृत्यु दण्ड दे दिया | जब उस व्यक्ति को मृत्यु दण्ड के लिये फांसी पर लटकाया गया तो देवी – देवताओं द्वारा उसके पैरों के नीचे कमल कि रचना कि गयी और उसपर पुष्प वर्षा कि गयी और उसे फांसी से बचा लिया गया | यह सब देख राजा और वहाँ खड़े उन्ही लोगो को आत्मग्लानी हुई और उन्होंने उस व्यक्ति से माफ़ी मांगी और अपनी बेटी से विवाह करने के लिये निवेदन करने लगे | उसने उस राजा का राज्य लेने से मना कर दिया और विवाह उपरांत वहाँ से कुछ दिन पश्चात स्त्री को समझा भूजा कर चला गया | यह थी श्रीपाल राजा कि कहानी | वह जहाँ भी जाता वहाँ का राजा अपनी बेटी का विवाह उससे करता और अपना सारा राज्य उसे दे देता और फिर वह वहाँ से कही और चला जाता | ऐसा वह कई स्थानों में करता है परन्तु कहीं भी रुकता नहीं है चलते रहता है | यह कहानी हमारे पुराण ग्रंथों में मिलती है जिसको मैंने एक – दो बार सुना है और एक बार पढ़ा भी है | आप लोग भी धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया करो | आप लोगो को धार्मिक पुराण ग्रंथों को पढ़ना चाहिये फिर उसका चिंतन मनन करना चाहिये और तद्नुसार उसका अनुशरण करना चाहिये | आप लोग आज कल जो उपन्यास पढ़ते हैं जिसको सुबह पढो तो शाम तक दूसरा संस्करण भी बाज़ार में आ जाता है | इस प्रकार हमें इस संसार रुपी समुद्र से पार होने के लिये धर्म कर्म करते रहना चाहिये और अपने पुण्य में वृद्धि करते रहना चाहिये | यह सब श्रीपाल राजा का पूर्व पुण्य ही था जो उसे इतना वैभव मिला | यदि आप अच्छे भाव से एक राई के दाने के बराबर भी धर्म कर्म करते हैं तो आपको पहाड़ जितना बड़ा पुण्य बंध होता है |
आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्रीमती माला जी जैन, श्री अमित – साक्षी जैन, श्री सचिन – समीक्षा जैन डोंगरगढ़ निवासी “दाऊ” परिवार को प्राप्त हुआ जिसके लिए चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन, चंद्रकांत जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी|
श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है | यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है | यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |