आलेख
अरुण पटेल
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अब पूरी तरह से अपनी कमर कस चुकी हैं और कांग्रेस को भी खुलकर हिंदुत्व की राह पर चलने से अब कोई परहेज नहीं रहा है। यहां तक कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने सवाल पूछा है कि क्या भगवा रंग का ठेका भाजपा ने ले लिया है। रविवार 02 अप्रैल के दिन प्रदेश कांग्रेस कार्यालय का नजारा कुछ बदला-बदला नजर आया जब कांग्रेस कार्यालय में भी भगवा रंग की प्रमुखता दिखाई दी और धर्म संवाद में ऐसा ही कुछ नजर आया जिसको लेकर सवाल उठने लगे।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने धर्म संवाद में कहा कि भगवा (हिन्दू धर्म) का ठेका क्या भाजपा ने ले लिया है। जब हम मंदिर जाते हैं, पूजा करते हैं तो भाजपा को दर्द होता है लेकिन मैं गर्व से कहता हूं कि मैं हिन्दू हूं पर बेवकूफ नहीं। कांग्रेस पार्टी ने रविवार के दिन को मठ-मंदिर स्वायत्तता दिवस के रुप में मनाया है।
कमलनाथ ने कहा कि धर्म दिखावे की चीज नहीं है यह व्यक्तिगत मामला है। वहीं दूसरी ओर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णु दत्त शर्मा तंज कसने से नहीं चूके और उन्होंने नहले पर दहला लगाते हुए कहा कि कांग्रेस कार्यालय को भगवा गमछों से सजाना और पुजारियों के साथ बैठक करना दिखावा है। कांग्रेस का मूल चरित्र तुष्टिकरण का है, पार्टी के नेता देश के प्रति क्या भाव रखते हैं यह किसी से छिपा नहीं है।
कांग्रेस अब बहुसंख्यक वर्ग को साधने का प्रयास कर रही है, इसीलिए पुजारियों को आमंत्रित करने के साथ ही कार्यालय को भी भगवा गमछों और बैनरों से सजाया गया। धर्म संवाद और मठ-मंदिर स्वायत्तता दिवस में मठ-मंदिर पुजारी भी शामिल हुए। वैसे यह पहला अवसर नहीं है जब कांग्रेस में इस प्रकार का बदलाव आया है। 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले से ही वह अपनी छवि बदलने का लगातार प्रयास करती रही है जिसका फायदा उसे 2018 के चुनाव में मिला भी जब उसने डेढ़ दशक की भाजपा सत्ता को मध्यप्रदेश में उखाड़कर कमलनाथ के नेतृत्व में अपनी सरकार बनाई। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पिछले विधानसभा चुनाव के पूर्व नर्मदा परिक्रमा की थी, भले ही यह गैर-राजनीतिक थी लेकिन उसका चुनावी लाभ कांग्रेस को मिला।
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी राहुल गांधी ने महाकाल के दर्शन के साथ ही नर्मदा पूजन भी किया और कांग्रेस नेता भागवत कथा भी करा चुके हैं। मजेदार बात यह है कि राजनीति में धर्म के इस्तेमाल पर भारतीय जनता पार्टी को नसीहत देती रही कांग्रेस को भी अब धर्म सम्मेलनों से परहेज नहीं है और परहेज हो भी क्यों जब चुनाव सिर पर हो तथा मुकाबला सीधे भाजपा से हो। ऐसे में कांग्रेस के पास भी कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा सिवाय इसके कि वह भी भगवाई रंग में सराबोर नजर आये। कांग्रेस ने पहली बार प्रदेश में पुजारियों के माध्यम से एक बड़े वर्ग को साधने के लिए मंदिर-पुजारी प्रकोष्ठ का गठन किया है। इसका उद्देश्य मंदिरों के संचालकों या फिर पुजारियों को जो समस्यायें आती हैं उन्हें जानना और राज्य में फिर कांग्रेस की सरकार बनती है तो उनका समाधान करने के साथ ही तुष्टिकरण के आरोपों से मुक्ति पाना है। कांग्रेस यह भलीभांति जान गई है कि यदि सत्ता में वापसी करना है तो उसके लिए बहुसंख्यकों यानी हिंदुओं को भी साधकर चलना जरुरी है, इसीलिए उनसे जुड़ने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
इस प्रकार एक तरफ कांग्रेस कार्यालय जहां भगवाई दुपट्टों से सजाधजा नजर आया तो वहीं दूसरी ओर नवाबी दौर में जो नाम प्रचलित हो गये थे उन्हें बदलने का सिलसिला शिवराज सिंह चौहान सरकार ने प्रारंभ कर दिया है। होशंगाबाद नर्मदापुरम बन चुका है, तो वहीं ताजी कड़ी में रविवार को ही सीहोर के नसरुल्लागंज का नाम बदलकर भेरुंदा कर दिया गया है, जिसकी घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस नगर के गौरव दिवस के अवसर पर की। लोग लम्बे समय से नाम बदलने की मांग कर रहे थे और रविवार को लोगों की वह मंशा भी पूरी हो गई। नसरुल्लागंज के इतिहास पर ध्यान दिया जाए या विचार किया जाए तो इसका संबंध भोपाल के नवाब परिवार से है। नवाब सुल्तानजहां बेगम ने अपने तीनो पुत्रों को भोपाल के पास की जागीर बांट दी थी और सबसे बड़े बेटे नसरुल्ला खां को यह जागीर दी गयी थी तथा उसका नाम उस समय भेरुंदा से बदलकर नसरुल्लागंज हो गया था जो अब फिर से भेरुंदा हो गया है। भगवाई चमक-दमक चुनाव आते-आते कितनी और चटक होती है और कमलनाथ या शिवराज में से किसको इसका लाभ मिलता है यह चुनाव परिणामों से ही पता चल सकेगा।
-लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं
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