जल संरक्षण के दूरगामी सोच को प्रदर्शित करता पहाड़ पर पत्थरों का जाल
रिपोर्ट धीरज जॉनसन,दमोह
दमोह जिले के अधिकतर स्थानों में प्राचीन समय में जल संग्रहित करने के विभिन्न तरीके आज भी दिखाई देते है, कुछ बावड़ी, कुएं यथावत है और उनके पानी का इस्तेमाल भी किया जाता है,तो कुछ समय के साथ अपना स्वरूप खोते जा रहे है, पर प्राचीन तकनीक और दूर दृष्टि का नायाब तरीका बंसीपुर ग्राम में दिखाई देता है जहां प्राचीन समय में एक बड़े तालाब के पानी के प्रवाह को रोकने के लिए पहाड़ों पर बना पत्थरों का बांध आश्चर्यचकित करता है जिसके पत्थर सैकड़ों वर्षों बाद भी कहीं कहीं सलामत दिखाई देते है।
वैसे तो सैकड़ों साल पहले के जल संग्रह के बेहतर उदाहरण मौजूद हैं और उनमें आज भी पानी रहता है जिसका इस्तेमाल लोगों द्वारा किया जाता है,परंतु कहीं कहीं इनकी देखरेख न होने से वे अपने अस्तित्व को खोते जा रहे है, जबकि वर्तमान में जल संकट की स्थिति निर्मित होने लगी है और प्राचीन धरोहरों को सुरक्षित रखने की आवश्यकता प्रतीत होती है जिन्हे पूर्वकाल में परिश्रम और भविष्य की पीढ़ी को ध्यान में रखकर बनाया गया था।
प्राचीन समय में जल संरक्षण का एक ऐसा ही बेहतरीन उदाहरण शहर से करीब 42 किमी की दूरी पर ग्राम बंशीपुर के निकट देखने मिलता है जहां पहाड़ पर एक समान आकार के हजारों पत्थरों का समूह काफी दूरी और ऊंचाई तक दिखाई देता है। कहते है कि वर्तमान में जिस स्थान पर दर्जनों गांव बसे है यहां एक बड़ा तालाब था और पहाड़ों के बीच पत्थरों से एक बड़ा बांध बनाया गया था जो अब टूटा हुआ दिखाई देता है। पास में ही दो पहाड़ों के मध्य से तालाब का अतिरिक्त पानी निकलता था और आगे जाकर ब्यारमा नदी में मिल जाता था। इसे देखकर आश्चर्य और प्राचीन समय के लोगों की दूरदृष्टि का अंदाजा लगाया जा सकता है कि लगभग एक आकार के हजारों पत्थरों को सलीके से पहाड़ की ढलान तक जमाया गया था जहां पानी ठहरता होगा।आश्चर्य यह भी है कि इन पत्थरों को यहां तक कैसे लाया गया होगा जबकि पहले तकनीक और सुविधाओं की कमी थी,परंतु उस समय के लोगों ने यह अंदाज जरुर लगाया होगा कि यह स्थान बहुत बड़े क्षेत्रफल में चारों ओर पहाड़ से घिरा हुआ है इसलिए यहां जल को रोका जा सकता है और जहां पानी ढलान पर आता होगा वहां पहाड़ पर पिचिंग वर्क किया गया और पानी को रोकने का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया।
पहाड़ पर दिखाई देते मठ
ग्राम वंशीपुर के निकट ही एक पहाड़ी पर मठ के अवशेष आज भी देखे जा सकते है जिनके कक्षों का अधिकांश हिस्सा भग्न हो चुका है. देखने पर वह मालूम होता है वे दो तल में बना हुआ था। अभी कुछ भग्न प्रतिमायें यहां देखी जा सकती है यहां से प्राप्त प्रतिमा दमोह के संग्रहालय में रखी हुई है यहां के स्थापत्य अवशेष से यह संकेत मिलता है कि आरम्भ में यह बौध्द भिक्षुओं का मठ था।