संत रविदास का जन्म हिन्दू कैलेंडर के आधार पर माघ माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ था, इसलिए हर साल माघ पूर्णिमा को रविदास जयंती मनाते हैं. आइए जानते हैं संत रविदास के उपदेशों के बारे में.
1. व्यक्ति पद या जन्म से बड़ा या छोटा नहीं होता है, वह गुणों या कर्मों से बड़ा या छोटा होता है.रैदास जन्म के कारणै, होत न कोई नीच। नर को नीच करि डारि हैं, औछे करम की कीच।।
2. वे समाज में वर्ण व्यवस्था के विरोधी थे. उन्होंने कहा है कि सभी प्रभु की संतान हैं, किसी की कोई जात नहीं है.‘जन्म जात मत पूछिए, का जात और पात। रैदास पूत सम प्रभु के कोई नहिं जात-कुजात।
3. रविदास जी ने बताया है कि सच्चे मन में ही प्रभु का वास होता है. जिनके मन में छल कपट होता है, उनके अंदर प्रभु का वास नहीं होता है. संत रैदास ने कहा है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा.का मथुरा का द्वारका, का काशी हरिद्वार। रैदास खोजा दिल आपना, तउ मिलिया दिलदार।।
4. संत रविदास जी ने दुराचार, अधिक धन का संचय, अनैतिकता और मांसाहार को गलत माना है. उन्होंने अंधविश्वास, भेदभाव, मानसिक संकीर्णता को समाज विरोधी माना है.
5. संत रविदास जी भी कर्म को प्रधानता देते थे. उनका कहना था कि व्यक्ति को कर्म में विश्वास करना चाहिए. आप कर्म करेंगे, तभी आपको फल की प्राप्ति होगी. फल की चिंता से कर्म न करें
6. संत रैदास ने कहा है कि व्यक्ति को अभिमान नहीं करना चाहिए. दूसरों को तुच्छ न समझें. उनकी क्षमता जिस कार्य को करने की है, संभवत: वह आप नहीं कर सकते.
7. वे कहते हैं कि हम सभी यह सोचते हैं कि संसार ही सबकुछ है, लेकिन यह सत्य नहीं है. परमात्मा ही सत्य है.