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चाणक्य नीति-राजनीत‍ि और जीवन से जुड़े हर क्षेत्र में आज भी राह द‍िखाने वाला है

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आचार्य चाणक्य वैसे तो गुप्‍त काल में हुए थे, लेक‍िन उनके सूत्र आज तक प्रासंंग‍िक हैं। उनकी रचनाओं का सार राजनीत‍ि और जीवन से जुड़े हर क्षेत्र में आज भी राह द‍िखाने वाला है। उनके कुछ सूत्र यहां हम दे रहे हैं। इन्‍हें पढ़ कर आप पाएंगे क‍ि आज भी ये क‍ितने सटीक बैठते हैं। राज्‍य और राज चाहने वालों के बारे में चाणक्‍य के कुछ सूत्र इस प्रकार हैं- इंद्रियों पर विजय राज्य का आधार बनता है। इंद्रियों पर विजय का आधार विनय और नम्रता होता है। विद्वान व्यक्तियों के प्रति समर्पण से विनय की प्राप्ति होती है और विनयशीलता से ही अधिकतम कार्य करने की निपुणता भी आती है।


चाणक्‍य सूत्र के मुताब‍िक- यह अनिवार्य है की राज्याभिलाषी लोग अपने कर्तव्यों का पालन अधिक क्षमता के साथ करें। लेकिन इसके लिए राज्य के पदाधिकारिओं को अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना सीखना होगा साथ ही अपनी आतंरिक क्षमता का विकास करना होगा। चाणक्य का यह भी कहना है कि हर मित्रता के पीछे कोई न कोई स्वार्थ छिपा होता है यह एक कड़वा सत्य है।
आत्मवर्गं परित्यज्य परवर्गं समाश्रयेत् ।
स्वयमेव लयं याति यथा राजाऽन्यधर्मत:।।

अर्थ: जो मनुष्य अपने वर्ग के लोगों को छोड़कर दुसरे वर्ग का सहारा लेता है, वह उसी प्रकार स्वयं नष्ट हो जाता है जैसे अधर्म का आश्रय लेने वाला राजा।

यथा चतुर्भि: कनकं परीक्ष्यते निघर्षणं छेदनतापताडनै:।
तथा चतुर्भि: पुरुषं परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा।।

अर्थ: चाणक्य नीति के पांचवें अध्याय के दूसरे श्लोक के अनुसार सोने को परखने के लिए उसे रगड़ा जाता है, काटकर देखा जाता है, आग में तपाया जाता है, पीटकर देखा जाता है कि सोना शुद्ध है या नहीं। सोने में मिलावट होती है तो इन चार कामों से वह सामने आ जाती है। इसी तरह किसी भी व्यक्ति के भरोसेमंद होने का पता आप चार बातों के आधार पर लगा सकते हैं। पहला यह कि उस व्यक्ति में त्याग भावना कितनी है। क्या वह दूसरों की खुशी के लिए अपने सुख का त्याग कर सकता है। फिर उसका चरित्र देखना चाहिए। यानी दूसरों के लिए वो इंसान क्या भावनाएं रखता है। तीसरी बात उसके गुण और अवगुण देखने चाहिए और आखिर में उसके कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। क्या सामने वाला गलत तरीकों में लिप्त होकर धन अर्जित तो नहीं कर रहा।
धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसे वसेत॥
अर्थ: जहां कोई सेठ, वेदपाठी विद्वान, राजा और वैद्य न हो, जहां कोई नदी न हो, इन पांच स्थानों पर एक दिन भी नहीं रहना चाहिए।

 

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