देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत थी
माखनलालजी की लेखनी : प्रो. केजी सुरेश
भोपाल। दादा माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्र के अलावा कुछ सोचते ही नहीं थे। उन्होंने कवि, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी, अपने सभी रूपों एवं भूमिकाओं में राष्ट्रीय चेतना का जागरण करने का कार्य किया। यह विचार सुप्रसिद्ध पत्रकार एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति श्री अच्युतानंद मिश्र ने व्यक्त किए। वे माखनलाल चतुर्वेदी की पुण्य तिथि के प्रसंग पर 31 जनवरी को आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता ऑनलाइन उपस्थित थे। व्याख्यान का आयोजन एमसीयू ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि माखनलालजी की लेखनी देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत थी।
‘माखनलालजी के कृतित्व में राष्ट्रीय चेतना के स्वर’ विषय पर अपने उद्बोधन में श्री अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी पर गांधीजी का ही नहीं अपितु बाल गंगाधर तिलक का भी बहुत प्रभाव था। उनकी पत्रकारिता में इसकी झलक दिखती है। माखनलालजी का जीवन दर्शन राष्ट्रीयता को समर्पित था। श्री मिश्र ने कहा कि भरतपुर के आयोजन में माखनलालजी ने पत्रकारिता के सिद्धांतों की रूपरेखा प्रस्तुत की। यहीं उन्होंने सबसे पहले पत्रकारिता के प्रशिक्षण हेतु संस्थान की संकल्पना प्रस्तुत की थी। उनका मानना था कि पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाले पत्रकारों का प्रशिक्षण आवश्यक है। दादा माखनलालजी ने अपनी कलम से कभी समझौता नहीं किया।
कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि व्यापक राष्ट्र हित क्या है, आज के साहित्यकारों को इसका विचार करना चाहिए। सरकारों की नीतियों की आलोचना की जा सकती है लेकिन भारतीय सेना के पराक्रम पर प्रश्न चिन्ह खड़े करने पर राष्ट्रहित के प्रश्न उपस्थित होते हैं।
कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा कि दादा माखनलालजी बिल्कुल स्पष्ट थे कि उनकी कलम को क्या लिखना है। महात्मा गांधी को कोरा राजनीतिज्ञ, स्वामी विवेकानंद को कोरा संन्यासी और माखनलालजी को कोरा साहित्यकार या पत्रकार कहकर उनका ठीक मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। कुलपति प्रो. सुरेश ने महात्मा गांधीजी का स्मरण करते हुए कहा कि गांधीजी इस सदी के महान संचारकों में शामिल हैं। गांधीजी ने अपनी पत्रकारिता से समाज को दिशा देने का काम किया।
विशिष्ट अतिथि श्रीमती इंदिरा दांगी ने कहा कि माखनलालजी के उल्लेख के बिना हिन्दी साहित्य पर विमर्श नहीं किया जा सकता। हमारे यहां साहित्य के लिए जीवन बोध को प्रमुखता दी गई है। लेकिन नए साहित्य में जीवन बोध और राष्ट्रीय चेतना के स्वर कम हुए हैं। कई कविताएं तो भारत विरोध में लिखी जा रही हैं। हम राष्ट्रीय पर्वों पर महान कवियों की रचनाओं की जगह ऐसी कविताओं को उल्लेखित कर रहे हैं, जो भारतीयता की विरोधी हैं। श्रीमती दांगी ने माखनलालजी की कविताओं का पाठ करके बताया कि उनकी कविताओं में राष्ट्रीय चेतना का स्वर तीव्र है। उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में साहित्यकारों ने ऐसा वातावरण बना दिया कि लोक मंगल की कविताएं लिखने वालों को साहित्य से बाहर ही कर दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि आज हमें माखनलालजी चतुर्वेदी नहीं मिलते। इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है कि साहित्य में कैसे फिर से सांस्कृतिक चेतना का स्वर आएगा।
विषय प्रवर्तन करते हुए एडजंक्ट प्रोफेसर शिवकुमार विवेक ने कहा कि माखनलालजी को जानना भारत को जानने जैसा है। एक माखनलालजी के भीतर तीन व्यक्तित्व थे और तीनों का प्रखर स्वर राष्ट्रीय था। साहित्य के साथ ही पत्रकारिता उनके राष्ट्रीय भाव की वाहनी थी।
इस अवसर पर पत्रकारिता विभाग की विद्यार्थियों द्वारा माखनलाल चतुर्वेदी पर केंद्रित प्रायोगिक समाचार पत्र विकल्प के ‘पुण्य स्मरण विशेषांक’ का विमोचन किया गया। कार्यक्रम का संचालन सहायक कुलसचिव श्री विवेक सावरीकर और आभार ज्ञापन कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी ने किया। कार्यक्रम में विभागध्यक्ष, शिक्षक और अधिकारी उपस्थित रहे।