ऊर्दू साहित्यिक संस्था अदबी इदारे सलामी द्वार काव्य गोष्ठी का आयोजन
धीरज जॉनसन दमोह
दमोह जिले की ऊर्दू साहित्यिक संस्था अदबी इदारे सलामी की एक काव्य गोष्ठी नशिस्त का आयोजन हुआ इस संस्था के संस्थापक रहे प्रसिद्ध शायर नैयर दमोही जिन्होंने दमोह की ऊर्दू शायरी को ना सिर्फ हिंदुस्तान तक सीमित रखा बल्कि अंतराष्ट्रीय मंचो पर भी मध्यप्रदेश को पहचान दिलाई, के द्वारा स्थापित ऊर्दू साहित्यिक संस्था इदारे सलामी के शायरों ने बीती रात एक तरही काव्य गोष्ठी नशिस्त में शायरो ने एक से बढ़कर एक गज़लें सुनाई और ख़ूब वाहवाही लूटी।
कार्यक्रम में कोविड प्रोटोकॉल के तहत संस्था के शायरों ने ही हिस्सा लिया। गोष्ठी संस्था के अध्यक्ष शायर मंज़र दमोही के निवास पर आयोजित हुई जिसमें बज़्म के सभी शायरों ने तरही मिसरा ” इक मुसाफ़िर मिरा हम सफर हो गया ” पर अपना कलाम सुनाया जिसमें शायर राशिद दमोही ने कहा ” माँ के कदमों में ख़म जिसका सर हो गया। समझो जन्नत में उसका भी घर हो गया”। वहीं शायर अहसन दमोही ने वर्तमान के हालात को अपनी शायरी में इस अंदाज़ से बयां किया के
उपस्थित लोगों की जमकर वाहवाही लूटी उन्होंने बड़े सादगी भरे लहज़े में कहा “जब से रहबर बना है मिरा राहज़न, ज़िंदगी के लिए दर्दे सर हो गया” इसके अलावा ऊर्दू शायरी के माध्यम से अपने पिता शायर नैयर दमोही की तरह दमोह और मध्यप्रदेश का नाम राष्ट्रीय स्तर पर रौशन कर रहे शायर ताबिश नैयर ने अपने सुरीले अंदाज़ में अपनी गज़ल पेश करते हुए कहा “मैं तो तन्हा ही निकला था घर से मगर ,इक मुसाफ़िर मिरा हमसफ़र हो गया।
शायर कबीर अख़्तर दमोही ने पढ़ा “सच जो बोला क़लम उसका सर हो गया , बोलकर झूँठ वो ताजवर हो गया। शायर मंज़र दमोही ने अपनी ग़ज़ल में कहा “आप जब से हुये मेरे घर जलवागर,नूर से मेरा मामूर घर हो गया “महफ़िल की अध्यक्षता कर रहे साजिद दमोही ने अपनी ग़ज़ल में ज़िंदगी की असल सच्चाई बयाँ करते हुए कहा
“जब जवानी से आया ज़ईफ़ी तरफ़ ,मुझको साजिद यकीं मौत पर हो गया। मुशायरे का सफल संचालन मंज़र दमोही ने किया
न्यूज स्रोत:डॉ अनिल जैन