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सीहोर में पहली बार ऐसा सेमिनार-अखाड़ो का आधुनिकीकरण एवं शस्त्र उपलब्धता पर कार्यक्रम

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9 अक्टूबर को क्रिसेंट ग्रीन में आयोजन
– सभी अखाड़ो के उस्ताद और पहलवान शामिल होंगे

अनुराग शर्मा
सीहोर। नगर में पहली मर्तबा ऐतिहासिक आयोजन होने जा रहा है। जिसमे समस्त अखाड़ो का आधुनिकीकरण एवं शस्त्र की पर्याप्त उपलब्धता के लिए सेमिनार होगा। यह बड़ा और गरिमामयी कार्यक्रम 9 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे क्रिसेंट ग्रीन में होगा। कार्यक्रम को लेकर तैयारियां तेज कर दी गई है, इसके आयोजक जिले के वरिष्ठ समाजसेवी अखिलेश राय है।
अखाड़ा, यूं तो कुश्ती से जुड़ा हुआ शब्द है, मगर जहां भी दांव-पेंच की गुंजाइश होती है, वहां इसका प्रयोग भी होता है। पहले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। हालांकि, कुछ ग्रंथों के मुताबिक अलख शब्द से ही अखाड़ा शब्द की उत्पत्ति हुई है। ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी सिद्धपुर जिसे अब सीहोर कहा और जाना जाता है यहाँ के अखाड़ो का भी पुराना इतिहास है, इस गौरवशाली परंपरा को यहाँ के लोगो ने कड़ी मेहनत और लगन से कायम रखा है। हर बड़े त्यौहार पर अखाड़ो के खलीफाओं, उस्तादों, कलाकारों और पहलवानों ने आपका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन पर अपना लोहा मनवाया है। देश-विदेश में पहलवानों ने अपनी विजय पताका फेहरा कर सीहोर का गौरव बढ़ाया है। आज भी नई पीढ़ी कसरत और मजबूत शरीर के लिए प्रतिदिन अखाड़ो में जाकर वर्क आउट करती है। उल्लेखनीय है कि अखाड़ों से जुड़े संतों के मुताबिक जो शास्त्र से नहीं मानते, उन्हें शस्त्र से मनाने के लिए अखाड़ों का जन्म हुआ। इन अखाड़ों ने स्वतंत्रता संघर्ष में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
क्या होते हैं अखाड़े-अखाड़े संतों की उस सेना या संगठन को कहा जाता है जो धर्म की रक्षा के लिए विशेष पारंपरिक रूप से गठित किए गए हैं। अपनी धर्मध्वजा ऊंची रखने और विधर्मियों से अपने धर्म, धर्मस्थल, धर्मग्रंथ, धर्म संस्कृति और धार्मिक परंपराओं की रक्षा के लिए किसी जमाने में संतों ने मिलकर एक सेना का गठन किया था। वही सेना आज अखाड़ों के रूप में विद्यमान है। यह सीहोरवासियो के गर्व की बात है कि सीहोर में प्राचीन काल से लेकर आधुनिक दौर में भी अखाड़े अपना महत्वपूर्ण स्थान रखे हुए है।
यह है अखाड़े के महत्व-आदि शंकराचार्य ने सदियों पहले बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रसार और मुगलों के आक्रमण से हिंदू संस्कृति को बचाने के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी। शाही सवारी, हाथी-घोड़े की सजावट, घंटा-नाद, नागा-अखाड़ों के करतब और तलवार और बंदूक का खुले आम प्रदर्शन यह अखाड़ों की पहचान है। सीहोर में समय-समय पर निकलने वाले चल समारोह में अखाड़ो का हैरतअंगेज प्रदर्शन आज भी लोगो को दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर देता है।
यह होगा आयोजन– यह बड़ा और गरिमामयी सेमिनार कार्यक्रम रविवार 9 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे क्रिसेंट ग्रीन में अखाड़ो का आधुनिकीकरण एवं शस्त्र की पर्याप्त उपलब्धता के लिए सेमिनार होगा। जिसमे जिले के वरिष्ठ समाजसेवी श्री अखिलेश राय ने सभी अखाड़ो के उस्ताद और पहलवानो को सादर आमंत्रित किया है। इस बात का प्रयास किया जाएगा की अखाड़ो में परंपरागत दांव पेंच सीखने सिखाने के साथ मार्शल आर्ट, जूडो कराटे की ट्रेनिंग का भी समावेश किया जाएगा।

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