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80 लाख रुपए की लागत का आमखेड़ा स्टेडियम बना चारागाह, सफेद हाथी साबित हो रहा निर्माण कार्य

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-24 घंटे डला रहता है ताला, अभ्यास के लिए खिलाड़ी परेशान

सलामतपुर रायसेन से अदनान खान की ग्राउंड रिपोर्ट।
टोक्यो ओलिंपिक में भारत को मिले सोने की चमक से देशवासियों व खिलाड़ियों के चेहरे भले ही दमक रहे हों, लेकिन रायसेन जिले में स्थित खेल मैदानों में ऊग रही कचरा घास से खेल मैदान मवेशियों का तबेला बनकर रह गए हैं। जिससे युवाओं की खेल प्रतिभा निखारने में बाधा बनी हुई है। मध्यप्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों को बढ़ावा देने के लिए खेल मैदान और स्टेडियम निर्माण की कई योजनाएं बनाई, जिनके अंतर्गत जिले में कई निर्माण भी हुए।

लेकिन इन निर्माणों में सरकारी पैसे का जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है। जिसकी वजह से स्टेडियम का निर्माण सफेद हाथी साबित होता नजर आ रहा है। ऐसा ही एक निर्माण विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल सांची से करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित आमखेड़ा गांव में हुआ है। यहां पर करीब 80 लाख रुपए की लागत से 5 साल पहले स्टेडियम का निर्माण कराया गया था। जिसका उद्घाटन तत्कालीन मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने किया था। लेकिन आज ये स्टेडियम मवेशियों की चारागाह में तब्दील होता नजर आ रहा है। उद्घाटन के बाद से यहां बांउड्री वॉल के अलावा कोई निर्माण नहीं कराया गया है। शासन प्रशासन की लापरवाही से बच्चे गांव की गलियों और खेतों में खेलने को मजबूर हैं। योजनाओं के नाम पर सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया है। वहीं इस बारे में ताइक्वांडो खिलाड़ी विकास जायसवाल ने बताया कि जब से यह स्टेडियम बना है। तब से इसमें ताला ही डाला रहता है और इसमें एक भी टूर्नामेंट नहीं खेला गया है। स्थानीय खिलाड़ी खेतों और गलियों में प्रैक्टिस करते हैं। यही वजह है कि यहां सलामतपुर, साँची और आसपास क्षेत्र में कई खिलाड़ी हुआ करते थे। मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलने के कारण सिर्फ नाम के खिलाड़ी बचे हैं। साँची के खेल शिक्षक एवं पूर्व खिलाड़ी शुभम सेन ने बताया कि साँची के पास आमखेड़ा में स्टेडियम बनवाने के लिए हमने पूर्व में काफी संघर्ष किया है। इसके बाद यह स्टेडियम बना तो हमें काफी उम्मीद थी। मगर 5 साल बाद भी इस स्टेडियम को खेल मैदान का रूप नहीं दिया जा सका है। यहां हमेशा ताला डला रहता है। स्टेडियम गाय भैंस के लिए चारागाह बन गया हैं। सिर्फ चारदीवारी ही बनाई गई है।स्टेडियम का फर्श पर बेस भी तैयार नहीं है। जिसमें पत्थर पड़े हुए हैं। बड़ी-बड़ी कचरा घास ऊग रही है।

2017 में सलामतपुर, सांची में 500 खिलाड़ी करते थे अभ्यास–

क्षेत्र में लगभग पांच सौ खिलाड़ी अन्य जगहों पर खेल का अभ्यास करते थे। लगभग डेढ़ सौ बच्चे नेशनल भी खेल चुके हैं। आज वही खिलाड़ी कहीं मजदूरी कर रहे हैं या प्राइवेट जॉब कर रहे हैं। अगर इन बच्चों को अच्छा प्लेटफार्म खेल मैदान मिले तो काफी खिलाड़ी नेशनल और स्टेट में आगे पहुंचेंगे। शासन ने एक दशक पूर्व प्रत्येक हायर सेकंडरी व हाईस्कूल तथा ग्राम पंचायत में खेल मैदान स्वीकृत किए थे। करीब एक लाख रुपये प्रत्येक ग्राम पंचायत को खेल मैदान विकसित करने के लिए राशि भी आवंटित की थी। लेकिन अब न तो स्कूलों में कही खेल मैदान नजर आते हैं और न ही ग्राम पंचायतों में खेल मैदान दिखाई दे रहे हैं। कुछ ग्राम पंचायतों में चरनोई की शासकीय भूमि पर खेल मैदान बनाए गए थे, लेकिन अब वहां भी अतिक्रमण होना नजर आता है।

कई राष्ट्रीय व प्रदेश स्तरीय खिलाड़ी मौजूद हैं—

जिले में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं हैं। खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के लिए शासन ने जिला मुख्यालय पर स्टेडियम, मंडीदीप में हाकी फीडर कोर्ट, सांची में ताइक्वाडो कोर्ट, बरेली में हैंडबाल, उदयपुरा में कबड्डी, सिलवानी में फुटबाल मैदान का निर्माण कराया है। यही कारण है कि मंडीदीप से करीब 50 हाकी खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर तक खेल चुके हैं। सांची से ताइक्वांडो में 12, बरेली से हैंडबाल में दो, उदयपुरा से कबड्डी में दो, रायसेन से फुटबाल में दस और सिलवानी से फुटबाल में दो खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके हैं। वर्तमान में करीब 40 युवा मंडीदीप में, 15 बरेली में, 25 उदयपुरा में, रायसेन में 40 व सांची में 20 युवाओं का पंजीयन खेल विभाग के पास है।

इनका कहना है-
खेल विभाग के अधिकारियों से चर्चा कर शीघ्र ही आमखेड़ा स्टेडियम के ताले खुलवाकर खिलाड़ियों के लिए खेल मैदान प्रारंभ किया जाएगा।
नियति साहू, नायब तहसीलदार सांची।

आमखेड़ा स्टेडियम में ताले क्यों डले हैं। इसकी जानकारी मुझे नही है। में सचिव को निर्देशित कर दिखवाता हूं।
प्रदीप छलोत्रे, सीईओ जनपद सांची।

पहले यह स्टेडियम दीवानगंज क्षेत्र में बन रहा था। स्टेडियम को आमखेड़ा पर बनवाने के लिए हमने बहुत संघर्ष किया है। लेकिन स्टेडियम की खस्ता हालत के चलते यह जंगल में परिवर्तित हो चुका है। अगर क्षेत्र के खिलाड़ियों को सही प्लेटफार्म उपलब्ध कराया जाए तो वह खेल के माध्यम से भारत का नाम रोशन कर सकते हैं।
शुभम सेन, खेल शिक्षक।

ये आमखेड़ा स्टेडियम सिर्फ नाम का ही स्टेडियम है। इसको लगभग 80 लाख रुपए की लागत से बनाया गया था। और बने हुए लगभग पांच से छह साल हो गए हैं। यहां पर प्लेयर तो नही खेल पाते लेकिन मवेशी यहां ज़रूर चरते रहते हैं।
विकास जायसवाल, स्थानीय ताइक्वांडो खिलाड़ी।

हमारे गांव में स्टेडियम बना तो ऐसा लगा कि अब गांव के युवाओं को खेल के लिए एक अच्छा प्लेटफार्म उपलब्ध हो जाएगा। लेकिन बनने के बाद से ही इसमें 24 घंटे ताला डला रहता है। यहां पर गाय भैंस तो चरती ही हैं। और उसके साथ ही रात्रि में अपराधिक प्रविर्ती के लोग शराब आदि पीते रहते हैं।
सौरभ लोधी, स्थानीय खिलाड़ी आमखेड़ा।

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