अभिषेक असाटी बक्सवाहा
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में रक्तदान शिविर लगाया गया जिसमें नगर के साथ-साथ क्षेत्र के लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
खंड चिकित्सा अधिकारी ललित उपाध्याय ने बताया कि देश की अगर 1 प्रतिशत आबादी भी ब्लड डोनेट करे तो खून की जरूरतों को आराम से पूरा किया जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक फिलहाल 95 लाख भारतीय हर साल रक्तदान करते हैं जो जरूरत के आंकड़े से करीब 30 लाख कम है। WHO के अनुसार दुनियाभर में हर साल प्रेग्नेंसी या प्रसव के दौरान 2.8 लाख से ज्यादा महिलाओं की मौत हो जाती है। इनमें 99 फीसदी मामले विकासशील देशों में सामने आते हैं। WHO का कहना है कि ब्लड उपलब्ध कराकर इनकी जान बचाई जा सकती है।
कब पड़ती है खून की जरूरत
बड़े हादसों के बाद या सर्जरी के समय मरीजों को खून की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है क्योंकि उनके शरीर का काफी खून निकल जाता है। प्रसव या मिसकैरेज के बाद भी मां या नवजात की जान बचाने के लिए खून की जरूरत पड़ती है। ऐसे मरीज जो खून की भारी कमी, ब्लड कैंसर, हीमोफीलिया, थैलसीमिया जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं उन्हें लगातार खून की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा कुछ और परिस्थितियों में भी खून की जरूरत पड़ सकती है।

सड़क दुर्घटना में 100 यूनिट्स तक ब्लड की जरूरत और औसतन हर ओपन हार्ट सर्जरी के लिए 6 यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है जबकि सड़क दुर्घटना में घायल शख्स को 100 यूनिट्स तक ब्लड की जरूरत पड़ सकती है। WHO के डेटा के मुताबिक अस्पताल में भर्ती किए जाने वाले हर 10 लोगों में से 1 को ब्लड की जरूरत पड़ती है। एक यूनिट ब्लड (450ml) कम से कम 3 जिंदगियां बचा सकता है। दिल्ली जैसे शहरों में ब्लड जरूरत से 200 फीसदी ज्यादा उपलब्ध होता है जबकि बिहार जैसे राज्यों में 85 फीसदी खून की कमी है। इसकी सबसे बड़ी वजह भ्रांतियों के कारण लोगों का ब्लड डोनेट न करना है।
भारत में हर साल करीब 4 करोड़ यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है, इनमें से केवल 40 लाख यूनिट ही उपलब्ध हो पाता है। अस्पतालों की ओर से सबसे ज्यादा O ग्रुप के ब्लड की मांग होती है।हमारे बॉडी वेट में ब्लड का शेयर केवल 7 फीसदी होता है। हर 2 सेकंड में किसी को ब्लड की जरूरत पड़ती है।