शरद शर्मा बेगमगंज रायसेन
भारतीय संस्कृति भोग प्रधान नहीं योग प्रधान एवं साधना प्रधान हैं।जैन संस्कृति में साधनों को महत्व नहीं साधना को महत्व है।उक्त उदगार वातसल्य मूर्ती निर्यापक मुनि श्री समता सागर जी महाराज ने उत्तम तप धर्म पर व्यक्त किए ।
उन्होंने कहा कि आज की संस्कृति पाश्चात्य कल्चर में ढल करके भूख प्रधान संस्कृति को जन्म दे रही है । आत्म शांति, आत्म संतोष ,और आत्म शुद्धि का एक मात्र मार्ग तपस्या ही है। इस तपस चरण को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अपना आध्यात्मिक लक्ष्य बनाना पड़ेगा एवं खानपान की दिनचर्या से लेकर मर्यादित रहन सहन रखना पड़ेगा ।
मुनि श्री ने उपवास आदि की प्रेरणा देते हुए कहाकि खाने-पीने का त्याग कर उपवास तो बहुत किया है , इस बार 1 दिन विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक साधनों से दूर रहकर इस तरह से उपवास करना है । ताकि आप दिनभर निश्चिंत और निर्विकल्प रह सकें।
इस अवसर पर संघस्थ मुनि श्री महासागर जी ने कहा कि ‘”संसारी प्राणी इस संसार में विषयों में आसक्त होकर के असंयम में पड़ा हुआ है एवं मन के वशीभूत होकर इंद्रियों की सुख-सुविधाओं में दिन रात संलग्न रहता है।
उन्होंने कहाकि मन की इच्छाओं पर नियंत्रण करना ही तपस्या का एक सूत्रीय मार्ग है। तपस्या का मुख्य मार्ग तो संत साधकों के लिए है ,किंतु गृहस्थ भी तपस्चरण के मार्ग को अपनाते हैं। प्रातः कालीनबेला में शांति धारा एव दीपप्रज्वलन का कार्य बेगमगंज के पार्षदद्वय अजय जैन अज्जू एवं प्रवीण जैन पिंटू , पुष्पेंद्र जैन , अक्षय सराफ , राजकुमार जैन प्रिंस , शैलेंद्र जैन अलंकार , धर्मेंद्र जैन पीएस सहित अन्य कार्यकर्ताओं ने संपन्न किया। मुनि संघ को शास्त्र भेंट किए गए ।
प्रवचन के उपरांत जिनवाणी स्तुति पूर्वक सभा का विसर्जन किया गया ।