दमोह से धीरज जॉनसन
दमोह शहर और आस पास के तालाबों में इन दिनों लंबे-लंबे बांस लगे दिखाई देने लगे है इन्हे देखकर ऐसा लगता है कि तालाब में जहां तक जल भराव है उसे विभाजित किया गया है परंतु इसकी वजह यहां सिंगाड़े की खेती का प्रारंभ होना है जहां सिंगाड़े लगाने वालों ने नाप करके व बांस लगाकर जलीय क्षेत्र में इसका काम शुरू कर दिया है जिसकी फसल ठंड के मौसम में बाजार में बिकने के लिए तैयार होती है।
स्थानीय फुटेरा तालाब में भी काम कर रहे महेंद्र,पप्पू,बाबू,बलराम ने बताया कि सिंगाड़े तोड़ते समय ही बीज की तैयारी कर लेते है मार्च में बीज प्रस्फुटित हो जाता है तो उसे तोड़कर लगाते जाते है इसके पनपने के बाद इनकी लता लगाते जाते है जो क्रमशः बढ़ते और फैलते जाते है परंतु इनमे कीड़े लग जाते है उन्हे साफ करना पड़ता है इसके लिए दवाइयों का छिड़काव लगातार करना पड़ता है करीब छह माह मेहनत के बाद एक से डेढ़ महीने तक फसल मिलती है दो चार व्यक्ति तो प्रतिदिन यहां सफाई के लिए जरूरी है। आठ दिन के अंतराल से दवाई डालना पड़ती है छह महीने में करीब सात आठ लीटर दवाई का छिड़काव हो जाता है जिसका मूल्य करीब पच्चीस से तीस हजार रुपए तक होता है। यदि इसके पत्ते साफ रहेंगे तो उसका रस फल में जाता है अगर पत्तों में कीड़े लग जाते है तो फल कम होता है।
न्यूज स्रोत:धीरज जॉनसन