आलेख
अजय बोकिल
मप्र के छतरपुर जिले के गढ़ा ग्राम स्थित बागेश्वर धाम के स्वयंभू पीठाधीश पं.धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने अपने इलाके में ‘पहला हिंदू ग्राम’ बसाने का ऐलान कर नई बहस को हवा दे दी है। 29 वर्षीय संत बागेश्वर धाम खुद को कट्टर हिंदू के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं और पिछले माह उनके बागेश्वर धाम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हे अपना ‘छोटा भाई’ बताकर उनका का राजनीतिक सिंहासन भी ऊंचा कर दिया है। बाबा बागेश्वर जनरेशन जेड के हिंदू बाबा हैं, इसलिए उनके विचार, प्रस्तुति, अभिव्यक्ति भी वर्सटाइल है। वो नई प्रौद्योगिकी से भी वाकिफ हैं और िक्रकेट भी खेलते हैं। उनका दावा है कि उन्हें दिव्य सिद्धी प्राप्त है। वो अपने आराध्य बालाजी ( हनुमानजी) की कथा सुनाते हैं। साथ में समकालीन राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर भी विवादित टिप्पणियां कर हेडलाइन भी ‘मैनेज’ करते रहते हैं। बाबा अपना दरबार लगाते हैं, जहां पीडि़तों की अर्जी पर सुनवाई होती है। कहा जाता है कि बाबा पर्ची के आधार पर लोगों का भूत और भविष्य बता देते हैं। बाबा बागेश्वर के अनुयायियों की संख्या लाखों में हैं, जिनमें ज्यादातर हिंदू ही हैं। बाबा की यही फैन फालोइंग राजनेताअो के लिए पाॅलिटिकल मटेरियल भी है। लेकि बाबा सीधे तौर पर किसी पार्टी या संगठन में नहीं हैं।
बहुतों का मानना है कि बाबा में दिव्य शक्ति हो न हो, लेकिन उनका सार्वजनिक आचरण, अभिव्यक्ति और कार्यशैली ऐसी है, जो हिंदुत्ववादियों के अनुकूल है। कई बार तो ऐसा लगता है कि उन्होंने भाजपा की अघोषित फ्रेंचाइजी ले रखी है। वे भारत को कट्टर हिंदू राष्ट्र बनाने और सभी हिंदुअों को एक होने के साथ साथ जात-पात मिटाने जैसी प्रगतिशील बात भी करते हैं। बहरहाल बाबा बागेश्वर द्वारा अपने धाम के नजदीक एक हिंदू ग्राम बसाने के ऐलान का कई साधु संतों ने स्वागत किया है। समझा जा रहा है कि यही हिंदू ग्राम भविष्य के हिंदू राष्ट्र की आधार शिला होगा। यहां एक हजार हिंदुअों को बसाने का प्लान है। बाबा ने इसका भूमि पूजन भी किया। यह हिंदू ग्राम दो साल में बनकर तैयार होगा। इस बारे में बाबा का तर्क बहुत सीधा है। कई हिंदू ग्रामो से मिलकर हिंदू जिले बनेंगे। हिंदू जिलो से हिंदू प्रांत और हिंदू प्रांतों का देश हिंदू राष्ट्र होगा। अगर ऐसा होता है तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि सारा देश हिंदू और वो भी सनातनी हिंदू बन जाए। बाकी के लोग, जिनमें गैर सनातनी हिंदू और गैर हिंदू देश में रहे ही नहीं।
बाबा की यह कल्पना आरएसएस की सामाजिक समरसता वाले हिंदू राष्ट्र की कल्पना से अलग है। दूसरे, भारत जैसे बहुसांस्कृतिक, बहुभाषी और बहुजातीय देश में क्या सचमुच कोई ठेठ हिंदू ग्राम, िजला या राष्ट्र व्यावहारिक रूप से संभव है? क्योंकि ऐसा देश शुद्ध देसी घी की तरह भारत तो क्या, पाकिस्तान और सऊदी अरब तक नहीं बन सका है, वो भी अपने यहां से सभी गैर सुन्नी और गैर मुसलमानों को भी बेदखल नहीं कर पाए हैं।
जहां तक बाबा बागेश्वर का इसके पहले हिंदू ग्राम होने का दावा है तो सही इसलिए नहीं है, क्योंकि गुजरात यहां भी बाजी मार चुका है। क्योंकि केन्द्र शासित प्रदेश दीव से गुजरात के ऊना के बीच कई गावों में बोर्ड लगे हैं कि ‘हिंदू राष्ट्रनुं गांव मा आपनुं हार्दिक स्वागत करे छे।’’ ( हिंदू राष्ट्र के गांव में आपका हार्दिक स्वागत है)। ये बोर्ड इन गावों के युवाअों ने लगाएं हैं। ऐसे ही एक गांव देलवाडा के लोगों का कहना है कि भारत हिंदू राष्ट्र बने, न बने, उन्होंने तो अपने गांव को हिंदू गांव घोषित कर दिया है। हालांकि इस गांव में एक चौथाई आबादी मुसलमानों की भी है।
मुसलमानों का कहना है कि हिंदू राष्ट्र के बोर्ड से उन्हे कोई परेशानी नहीं है। वो यहीं रह रहे हैं आगे भी रहेंगे। देलवाडा के पास समुद्र किनारे एक और गांव अोलवान है। यहां भी ‘हिंदू राष्ट्र’ का बोर्ड लगा है। यहां कोई मुसलमान नहीं रहता। अलबत्ता यहां के हिंदू ग्रामीणों का विश्वास है कि भारत अगले पांच सालों में हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। गांव में हजरत पीर का कोठा (दरगाह) भी है, जिस पर हिंदू भी मन्नत मानते हैं। ऐसे में गांव को हिंदू राष्ट्र लिखने का क्या मतलब है? इस सवाल का जवाब मिलता है कि हमे हिंदू होने पर गर्व है, इसलिए। ऐसा ही एक और गांव है पालडी। इस पर भी हिंदू राष्ट्र का बोर्ड का लगा है। यहां सभी हिंदू ही रहते हैं।
वैसे बाबा का जो प्लान है, उसमें जमीन ही सनातनी हिंदुअों को उपलब्ध कराई जाएगी। मकान हिंदुअों को अपने खर्चे से बनाना होगा। हिंदू धर्म की रक्षा के लिए इतनी कीमत तो चुकानी ही होगी। यह हिंदू ग्राम फ्लैट सिस्टम वाला होगा। जिसमें ग्राउंड फ्लोर 17 लाख, फर्स्ट फ्लोर 16 लाख तथा सेकंड फ्लोर 15 लाख रू. में मिलेगा। 5 लाख रू. एडवांस देने होंगे। पहले चरण में 50 मकान देने की बात है। मकान निर्माण बागेश्वर धाम जनसेवा समिति कराएगी। हालांकि इससे यह संदेश जाने का खतरा भी है कि यह यह हिंदू ग्राम विकास है या प्रोफेशनल काॅलोनाइजिंग? इस संदर्भ में बाबा बागेश्वर का कहना है कि यह मकान बेचने या खरीदने के लिए नहीं होंगे। यानी इन्हें ‘इन्वेस्टमेंट’ के उद्देश्य से नहीं खरीदा जा सकता।
कुछ लोगों का मानना है कि अगर बाबा बागेश्वर हिंदू और सनातन धर्म के लिए इतना कुछ कर रहे हैं तो उनके विरोधियों के पेट में दर्द क्यों होना चाहिए? बात सही भी है। अगर कुछ बस्तियों, नगरों, जिलों, प्रांतो के नाम हिंदू होने से देश हिंदू राष्ट्र बन सके तो हिंदू राष्ट्र बनाने का इससे किफायती तरीका दूसरा हो नहीं सकता। वैसे बाबा ने यह भी कहा है कि इस हिंदू ग्राम में सनातनी और वैदिक धर्म को मानने वाले हिंदू ही रह सकेंगे। मुमकिन है आगे चलकर इस पर भी विवाद हो कि गैर सनातनी हिंदू जैसे कि आर्य समाजी, कबीरपंथी, ब्रह्म समाजी, राधास्वामी सत्संग, रविदासी पंथी आदि भी हिंदू ग्राम में रहना चाहें तो क्या उन्हें इजाजत मिलेगी?
वैसे दुनिया में धर्म के आधार पर किसी काॅलोनी, नगर, प्रांत और देश का नामकरण अपवाद स्वरूप ही हुआ है। अगर शहर की बात करें तो दुनिया में शायद दो ही उदाहरण मिलेंगे। एक था ‘इस्लाम नगर’, जो भोपाल रियासत की पुरानी राजधानी था और अब एक खंडहर है। दूसरा है इस्लामाबाद, जिसे इस्लाम के नाम पर ही बसाया गया और जिस देश पाकिस्तान की वह राजधानी है, उस का आज क्या हाल है, सबको पता है। और तो और जिन स्थानों पर किसी विशिष्ट धर्म वालों को ही रहने या प्रवेश की इजाजत है, उनके नाम भी सम्बन्धित धर्म के नाम पर नहीं हैं। मसलन मुसलमानों का सबसे पवित्र स्थल मक्का में गैर मुसलमानों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है, लेकिन उसका नामकरण इस्लाम पर नहीं है। इसी तरह कैथोलिक ईसाइयों के सबसे पावन शहर ‘वेटिकन सिटी’ में गैर कैथोलिको को रहने की अनुमति नहीं है। बावजूद इसके इस शहर का नाम किसी ने ईसा या क्रिश्चियन सिटी नहीं रखा। सिखों की पवित्र नगरी अमृतसर का नाम भी सिख नगर नहीं है। क्योंकि धर्म के आधार पर नाम रखने से उस धर्म की परंपराअो, दर्शन और कर्मकांडो का शास्त्रोक्त पालन हो, यह जरूरी नहीं है। अगर ऐसा नहीं होता और वह व्यावहारिक रूप से संभव होता भी नहीं है तो उस धर्म की पवित्रता पर ही प्रश्नचिन्ह लगने लगता है, जोकि सही नहीं है।
रहा सवाल बाबा की राजनीतिक उपयोगिता का तो बाबा के प्रभाव की असली सियासी टेस्टिंग बिहार चुनाव में होनी है। बाबा को वहां धुर हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण के काम में लगाया गया है। घोर जातिवाद से ग्रस्त बिहार में अगर वहां भाजपा अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब रही तो बाबा का सियासी ग्राफ भी ऊपर जाएगा। वो मप्र के ‘योगी आदित्यनाथ’ भी हो सकते हैं। लेकिन नतीजा कुछ और आया तो बाबा की हिंदू राष्ट्र की उड़ान बागेश्वर के हिंदू ग्राम तक भी सिमट सकती है।
यूं बाबा बागेश्वर की इस ‘हिंदू ग्राम’ की घोषणा से सियासी घमासान भी शुरू हो गया है। भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने बाबा की योजना का दिल खोलकर स्वागत किया है तो मप्र कांग्रेस प्रवक्ता हाफिज अब्बास ने सवाल किया कि अगर कल को मुसलमान भी अलग ‘मुस्लिम ग्राम’ बनाने की इजाजत मांगेंगे तो क्या सरकार देगी? कल को संविधान के ‘सर्व धर्म समभाव’ के आधारभूत सिद्धांत के आधार पर हर धर्मावलंबी अपने धर्मों के हिसाब से अलग शहर बसाने लगेंगे तो फिर हिंदू राष्ट्र का क्या होगा? और अगर सरकार बाबा बागेश्वर जैसे लोगों को ही शहर बसाने की अनुमति देती है तो ‘सबका साथ’ का क्या होगा? यूं अभी भी धर्म विशेष, सम्प्रदाय बहुल तथा एक ही समुदाय की कुछ काॅलोनियां अस्तित्व में हैं। लेकिन उनका नामकरण अक्सर उनके आराध्यों, महापुरूषों अथवा क्षेत्रीय या जातीय पहचान के आधार पर ही होता है। केवल गांव का नाम हिंदू कर देने से हिंदू राष्ट्र कैसे बन जाएगा, यह समझना मुश्किल है। हिंदू समाज भी तभी एकजुट होगा, जब वह जातीय विद्वेष और ऊंच नीच के दुराग्रह से मुक्त होगा। इसके लिए हिंदू बस्ती से ज्यादा बड़े दिल की जरूरत है।
‘राइट क्लिक’
-लेखक “सुबह सवेरे” कार्यकारी प्रधान संपादक हें।