मुकेश साहू दीवानगंज रायसेन
स्थानीय खेड़ापति हनुमान माता मंदिर प्रांगण में चैत्र नवरात्र के पहले दिन से शुरू हो रही नौ दिवसीय श्रीराम कथा का आयोजन किया जा रहा है। जिसके लिए रविवार की सुबह हनुमान माता मंदिर में विधि -विधान से पूजन -अर्चन के बाद कलश यात्रा निकाली गई। 21 कलश लेकर छोटी-छोटी कन्याए और महिला अपने सर पर रखकर चल रही थी। यात्रा मंदिर से प्रारंभ होकर स्थानीय बाजार , गुफा मंदिर, गुसाई मोहल्ला, इच्छापूर्ति मंदिर, राम जानकी मंदिर, भवानी चौक और तालाब से होते हुए खेड़ापति हनुमान माता मंदिर पहुंची। पहुंचने के बाद 21 कलश स्थापित कर समाप्त हुई। इस दौरान ग्रामीणों में उत्साह देखने को मिला। ग्रामीण कलश यात्रा पर पुष्पों की वर्षा कर रहे थे। महिलाएं कलश के साथ नृत्य करते और मंगल गीत गाते चल रही थीं।
कथा के पहले दिन कथा वाचक पंडित चंद्र मोहन तिवारी ने तुलसीदास का वर्णन करते हुए कहा कि
तुलसीदास अपनी पत्नी रत्नावली से बहुत प्रेम करते थे। एक बार रत्नावली अपने मायके गईं। तुलसीदास से रहा नहीं गया। उस रात भारी बारिश थी। रत्नावली का घर नदी के उस पार के गांव में था। तुलसीदास, पत्नी से मिलने के लिए बारिश में निकल पड़े। नदी के पास कोई नाव नहीं थी, तब उनको वहां किनारे पर एक बहती लाश दिखाई दी। तुलसीदास ने उस लाश पर बैठकर जैसे-तैसे नदी पार की।
पत्नी के घर पर पहुंचकर दरवाजा खटखटाया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला। पत्नी दूसरी मंजिल पर सोती थी, इसलिए घर के पीछे जाकर ऊपर चढ़ने का रास्ता देखने लगे। घर के पीछे उनको एक मोटी रस्सी दिखाई दी, वो उस रस्सी से चढ़कर ऊपर आ गए और सीधा पत्नी के कमरे में पहुंचे। पत्नी हड़बड़ा गई और बोली इतनी रात बारिश में और वो भी ऊपर- आप कैसे आए! तुलसीदास बोले- रस्सी पकड़कर। पत्नी ने देखा रस्सी नहीं, सांप था।
पति की इस अथाह आसक्ति को देखकर पत्नी बोली हे नाथ मेरी देह से जितना प्रेम करते हो, इतना प्रेम यदि राम से करते, तो आपका जीवन धन्य हो जाता। पत्नी की ये बात तुलसीदास के हृदय में उतर गई। उसी समय तुलसीदास घर से निकल गए और चित्रकूट में एक कुटिया बनाकर रहने लगे, जिसके बाद तुलसीदासजी को भगवान राम और हनुमानजी का साक्षात्कार हुआ और भक्तिभाव में तुलसीदासजी ने रामचरित्र मानस, संकटमोचन, हनुमान चालीसा आदि अनेकों ग्रंथ की रचना की।