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रायसेन की चिट फंड कंपनी श्रद्धा सबूरी कमोडिटीज प्रायवेट लिमिटेड फिर सुर्ख़ियो में

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-कंपनी 51% के शेयर होल्डर है अभिषेक भार्गव और डारेक्टर भी

-हाई कोर्ट से बरी किये गए गोपाल भार्गव के पुत्र अभीषेक भार्गव पर फिर कस सकता है कानून का शिकंजा

मामले के एक अन्य आरोपी नितिन वलेचा ने ही सुप्रीम कोर्ट में लगाई अर्जी

रायसेन पुलिस की मंत्री पुत्र को बचाने की साजिश

भोपाल। मप्र के लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक भार्गव पर क़ानून का शिकंजा दुबारा कस सकता है।

करोड़ों रुपये का ग़बन करने वाली चिट फंड कंपनी श्रद्धा सबूरी कमोडिटीज प्रायवेट लिमिटेड में अभिषेक डायरेक्टर हैं इस बात का ख़ुलासा हुआ है।करोड़ों के ग़बन में पुलिस द्वारा ‘कंपनी’ और अभिषेक को आरोपी नहीं बनाये जाने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुंच गया है।
इस मामले में जेलमें दो साल रह चुके एक अन्य आरोपी नितिन वलेचा ने ही इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है।

सन 2012 के बाद रायसेन,भोपाल, सागर, जिलों में श्रद्धा सबूरी कमोडिटीज प्रायवेट लिमिटेड कंपनी ने पैर पसारे।कंपनी ने ज्यादा ब्याज़ का लालच देकर लोगों से कई करोड़ रुपये जमा करवा लिये।

समय आने पर जब निवेशकों ने अपना पैसा वापस मांगना शुरू किया तो कंपनी के कर्ताधर्ता ऑफिस बन्द करके ग़ायब हो गए। लंबे समय तक निवेशक भटकते रहे लेकिन कहीं से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। बताया जाता है कि निवेशकों से क़रीब 80 करोड़ रुपया जमा करवाया गया था।

थक हार कर निवेशकों ने अक्टूबर 2015 में रायसेन कोतवाली घेर ली। निवेशकों की फरियाद पर तब कुछ लोगों के ख़िलाफ़ धोखाधड़ी, जालसाज़ी का मुक़दमा दर्ज़ किया गया।
यह मामला क़रीब पांच करोड़ 34 लाख के ग़बन का है। हैरानी की बात यह है कि पुलिस ने कंपनी का नाम आरोपियों में शामिल नहीं किया जबकि निवेशकों के जमा धन को वसूल करने के लिये कंपनी को शामिल करना ज़रूरी था।

पुलिस ने कंपनी के मैनेजर बसंत उपाध्याय ,नितिन वलेचा ,बीपेंद्र भदौरिया आदि को शामिल करके आरोपी बनाया।
बसंत उपाध्याय सात महीने जेल में रहा और नितिन वलेचा क़रीब दो साल जेल में रह कर सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत पर छूटा। बसन्त का मुखर्जी नगर रायसेन स्थित मकान भी नीलाम हो चुका है।गिरफ़्तार आरोपियों में से एक बसंत उपाध्याय ने सन 2016 में जेल से ही धारा 319 का आवेदन सेशन कोर्ट में लगाया कि कंपनी के असली कर्ताधर्ता अभिषेक भार्गव हैं।
इस आवेदन पर रायसेन की चतुर्थ अपर सत्र न्यायाधीश तृप्ति शर्मा की अदालत ने अभिषेक भार्गव को भी धारा 420,467,468,471, 120 बी और मप्र निवेशकों के हितों का संरक्षण क़ानून की धारा 3/6 के तहत आरोपी बनाया।

अभिषेक के ख़िलाफ़ इस अदालत से ग़ैर जमानती वारंट जारी हुआ। अभिषेक ने सितंबर 2016 में अदालत में सरेंडर किया। उन्हें 50 हज़ार रुपये के मुचलके और बीस लाख रुपये की एफडी जमा करने पर तत्काल जमानत दी गयी। अभिषेक उस समय भारतीय जनता युवा मोर्चा के पदाधिकारी भी था।

जमानत मिलने के बाद अभिषेक भार्गव ने धारा 482 के तहत हाईकोर्ट जबलपुर में फरियाद की। हाईकोर्ट ने रायसेन पुकिस से केस डायरी मांगी।
स्थानीय पुलिस ने बड़ी चतुराई से रायसेन कोतवाली में दर्ज़ एफआईआर की कॉपी पेश कर दी जिसमें अभिषेक भार्गव का नाम था ही नहीं।

पुलिस ने सेशन कोर्ट द्वारा अभिषेक को आरोपी बनाए जाने और ग़ैर जमानती वारंट जारी होने वाला तथ्य ही पेश नहीं किया। नतीजा ये हुआ कि हाईकोर्ट ने अभिषेक को सम्मन किये जाने से मुक्त कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता महेश कुमार कहते हैं कि ऐसे मामलों में पब्लिक फंड की लायबिलिटी कंपनी और उसके डायरेक्टर्स पर होती है इसलिये धारा 319 में कंपनी और डायरेक्टर आरोपी बनाए जाने का निर्धारित प्रावधान है।

जिस श्रद्धा सबूरी कमोडिटीज प्रायवेट लिमिटेड कंपनी ने उपरोक्त ग़बन किया है अभिषेक भार्गव बाकायदा उस कंपनी के डायरेक्टर हैं। अभिषेक ने जमानत मिलने के बाद भोपाल में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दावा किया था कि उनका इस कंपनी से कोई लेना देना नहीं।अभिषेक भार्गव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कैमरे के सामने कहा था कि अगर वो दोषी साबित होंगे तो आत्महत्या कर लेंगे।

हक़ीक़त ये है कि भारत सरकार के कंपनी मामलों के मंत्रालय के अंतर्गत रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ में इस कंपनी के तीन डायरेक्टर के नाम आज भी देखे जा सकते हैं। इसमें अभिषेक भार्गव पुत्र गोपाल भार्गव का नाम आज भी दर्ज है।अन्य डायरेक्टर कमल नैन वलेचा और बसन्त उपाध्याय है।यह कंपनी 23 मार्च 2012 को आरओसी ,दिल्ली में रजिस्टर्ड करवाई गई थी।

कंपनी की कैपिटल वेल्यु दो करोड़ एक लाख रुपये है जिसमें से एक करोड़ दो लाख की शेयर होल्डिंग अभिषेक भार्गव के पास है।यानी अभिषेक 51 फीसदी का शेयर होल्डर है।

मज़ेदार बात यह भी है कि श्रद्धा सबूरी कमोडिटीज़ प्रायवेट लिमिटेड को ट्रेडिंग का लाइसेंस मिला ही नहीं था। जबलपुर में एक अन्य आपराधिक प्रकरण में डायरेक्टर अभिषेक भार्गव का नाम शामिल होने के कारण पुलिस वेरिफिकेशन क्लियर नहीं हुआ था।
ट्रेडिंग का लायसेंस नहीं होते हुए भी कंपनी ने निवेशकों से करोड़ों रुपये जमा करवा लिए थे।

इस पूरे घोटाले में पुलिस जिसे मास्टरमाइंड बता कर पेश करती रही उसका नाम न कंपनी के डायरटेक्टर्स में शामिल है और न कर्मचारियों में।
नितिन वलेचा नाम के इस आरोपी को पुलिस ने 17 जुलाई 2017 को गिरफ़्तार किया था और वह जुलाई 2019 में सुप्रीम कोर्ट से जमानत पर छूटा है।

वलेचा का दावा है कि सन 2012 से पहले वो सागर(मप्र) में एक अन्य कंपनी में काम करता था तब अभिषेक भार्गव से सम्पर्क हुआ था। उसके बाद अभिषेक ने श्रद्धा सबूरी के रजिस्ट्रेशन के बाद नितिन को जॉब के लिये ऑफर दिया था।

चूंकि श्रद्धा सबूरी को ट्रेडिंग का लायसेंस ही नहीं मिला तो नितिन ने इसमें काम नहीं किया।
उसकी अभिषेक भार्गव से जान पहचान,मित्रता ज़रूर बनी रही लेकिन इस घोटाले में उसका कोई रोल नहीं है।
जिस दौर में ये घोटाला हुआ उस समय नितिन विदेश में था जिसे उसके पासपोर्ट, वीसा से भी साबित किया जा सकता है।
नितिन को एक पारिवारिक विवाद में हरियाणा में गिरफ़्तार किया गया था। बाद में प्रोडक्शन वारंट पर रायसेन पुलिस उसे लेकर आई और वो दो साल जेल में रहा।
पुलिस का दावा है कि निवेशकों से धन जमा करने में नितिन कलेक्शन एजेंट की भूमिका में था।

नितिन वलेचा ने इस पूरे मामले को रीओपन करवाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दाख़िल की है।नितिन की ओर से दाख़िल याचिका में कंपनी और डायरेक्टर पर पब्लिक फंड की लायबिलिटी तय करने की फरियाद की गई है। डायरी नम्बर 12/2022 पर यह दाख़िल हो गयी है।नितिन सीबीआई से जांच करने की गुहार लगा रहा है।

 

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