• विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलगुरु प्रो. अखिलेश कुमार पांडे का व्याख्यान
• सिकंदर से बड़े विजेता थे समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त और विक्रमादित्य
• गलत अर्थ वाले मुहावरे बदलने की जरूरत
सांची रायसेन। सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में स्वामी विवेकानंद जयंती “युवा दिवस”के अवसर पर दो दिन विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में योग विभाग की टीम ने रविवार और सोमवार को सूर्य नमस्कार और योगासन किये।
स्वामी विवेकानंद जयंती पर आयोजित विशेष व्याख्यान में सांची विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि विवेकानंद ने उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक ना रुकने का नारा युवाओं को ही दिया था। 1893 में शिकागों की धर्म संसद में मात्र एक मिनट के समय में स्वामी विवेकानंद ऐसा बोले कि घंटों तक उनका भाषण सुना गया। पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद कहते थे कि जब हम सबमें ब्रह्म का निवास है तो फिर कोई मनुष्य छोटा या बड़ा कैसे हो सकता है और स्वामी जी मानते थे कि श्रम ही शक्ति है श्रम ही भक्ति है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलगुरु प्रो. अखिलेश कुमार पांडे ने कहा कि स्वामी विवेकानंद कहते थे कि युवा को भविष्य के स्वप्न व उसको पूरा करने वाला, साहसी, चुनौती से न भागने वाला, जहां भी रहे अपने आस-पास के लोगों में विश्वास पैदा करने वाला और सामाजिक समरसता बनाने वाला होना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद के विरासत पर गर्व, त्याग, गुलामी से आज़ादी, अनेकता में एकता विषय पर प्रो. पांडे ने कहा कि पीपल, बरगद, तुलसी रात में भी ऑक्सीजन देते हैं और ये सब वैज्ञानिक रूप से साबित हो चुका है। प्रो. पांडे ने कहा कि एकल हो रहे परिवारों के बच्चों को मूल्य आधारित कहानियाँ सुनाना ज़रूरी है और बुज़ुर्ग मूल्य आधारित शिक्षा के शब्दकोश होते हैं।
प्रो. पांडे ने युवाओं से काम करने का आग्रह करते हुए कहा कि अगर कार्य करने की संस्कृति नहीं आएगी तो राष्ट्र का विकास कैसे होगा। उन्होंने कहा कि तकनीक का उपयोग करने के कारण लोगों की यादाश्त कम हो रही है। लेकिन जब हम हाथों से लिखने की आदत डालेंगे तो हमारी स्मरण शक्ति बढ़ेगी।
विश्वविद्यालय के कुलसचिव व अधिष्ठाता तथा अंग्रेज़ी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नवीन कुमार मेहता ने कहा कि महाराजा अजित सिंह ने नरेंद्रनाथ दत्त को स्वामी की उपाधि दी थी। उन्होंने कहा कि तीन ‘स’ से ही सफलता मिलती है- स्वचेतना, स्वावलंबन, स्वाध्याय जिसकी मूर्ति स्वयं स्वामी विवेकानंद थे।
कार्यक्रम का समन्वय कर रहे विश्वविद्यालय के भारतीय दर्शन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. नवीन दीक्षित ने स्वामी विवेकानंद की जीवनी के कुछ अंशों तथा मुख्य अतिथि प्रो. अखिलेश कुमार पांडे के बारे में उपस्थित लोगों को जानकारी दी। डॉ. नवीन दीक्षित ने विकास के “थ्री एच- हैड, हार्ट और हैंड” के स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत को भी समझाया जिसका की शिक्षा में समावेश होना चाहिए। स्वामी विवेकानंद मानते थे कि धर्म अनुभूति का नाम है न कि हठधर्मिता का।
व्याख्यान के बाद मुख्य अतिथि और कुलगुरु ने भारतीय ज्ञान परंपरा और स्वामी विवेकानंद पर आधारित एक पुस्तक दीर्घा का भी उद्घाटन किया जिसे कि विश्वविद्यालय की पुस्तकालय शाखा के सहायक लाइब्रेरियन डॉ. अमित ताम्रकार और लाइब्रेरी सहायक श्री हरीश असाटी के प्रयासों द्वारा प्रस्तुत किया गया था।