-सलामतपुर सहित अन्य क्षेत्रों में कुम्हार समाज जीवन यापन के लिए कर रहे है जद्दोजहद
सलामतपुर रायसेन से अदनान खान की रिपोर्ट।
क्षेत्र में भीषण गर्मी बढ़ने के साथ ही मिट्टी से बने मटकों की मांग भी बढ़ गई है। लेकिन इसके साथ ही इस बार मटकों के दामों में इजाफा भी हुआ है। कोरोना काल में लोगों ने ठंडे पानी से परहेज किया। लेकिन पिछले साल की तुलना में इस साल मटकों के दाम लगभग दोगुने हो गए हैं। मटका विक्रेता इसे महंगाई का असर बता रहे हैं। वहीं ग्राहकों का कहना है कि मटकों के दाम दोगुने हो गए हैं। मटके की कीमत 90 से 100 रुपए, झाल 200 से 220 रुपए तथा कलश की कीमत 30 रुपए हो गई है।बता दें कि इस बार की गर्मी ने शुरुआत में ही अपना प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर दिया है। आलम यह है कि तापमान अभी 44 डिग्री के पार पहुंच गया हैं। मय में ये हालात है तो जून के महीने में कितनी प्रचंड गर्मी पड़ेगी। वहीं गर्मी का मौसम शुरू होते ही शहर के बाजार में मटको की दुकानें लग चुकी हैं। जिनकी मांग भी बनी हुई है। लेकिन इस बार मटकों की कीमतों ने लोगों का पसीना निकाला हुआ है। पिछले साल की तुलना में इस साल मटके के दाम दोगुने हो गए हैं। बाजार में मटके के खरीदार राजेश ने बताया कि पिछले साल की तुलना में इस बार मटके काफी महंगे बिक रहे हैं।
वहीं मटका खरीद रहे दूसरे ग्राहक अरविंद ने बताया कि वे दो मटके खरीदने आए थे। लेकिन मटकों के अधिक दाम को देखते हुए एक ही मटका खरीद कर ले जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि छोटे से मटके की कीमत पहले 50 रुपए होती थी। इस बार 90 रुपए के हिसाब से बिक रहे हैं। वहीं मटका विक्रेता यादराम, दाताराम, गुरुदयाल आदि का कहना है कि कोरोना के बाद से सभी चीजों के दाम बढ़ गए हैं। जिसके चलते ही मटकों के दाम भी बढ़े हैं। गर्मी को देखते हुए बाजार में मटके की मांग बनी हुई है। महंगाई की मार से देसी फ्रिज कहे जाने वाले मटके भी अछूते नहीं हैं। मटके के निर्माण के लिए मिट्टी, पैरा व लकड़ी सभी सामग्री खरीदनी पड़ती है। सभी के दामों में बढ़ोतरी हुई है। पहले गांव में मिट्टी ही मिल जाती थी। अब बहरोड़ के पास चार हजार रुपए किराया देकर मिट्टी मंगा रहे हैं। मटका तैयार होने के बाद पकाने के लिए पदाड़ी भी 400 रुपए क्विंटल लेनी पड़ती हैं। इसलिए मटके के दाम भी बढ़ना स्वभाविक है।