अनुराग शर्मा सीहोर
सीहोर जिले की एक ऐसी जगह है जहां किसी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री जाने से डरते हैं. कहा जाता है कि जो इस जगह गया है उसे अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा है. फिर चाहे यहां कोई बड़ा कार्यक्रम हो या फिर कोई बैठक, मुख्यमंत्री रहते हुए यहां कोई नहीं जाना चाहता. इतिहास में ऐसी कई रोचक घटनाएं दर्ज हैं, जिससे नेताओं के डर का अंदाजा लगाया जा सकता है.
अपनी 15 साल की सत्ता के दौरान सीएम शिवराज ने बतौर मुख्यमंत्री रहते हुए आज तक यहां कदम नहीं रखा है. जबकि सीहोर जिले के आष्टा सीहोर, बुधनी, सहित आसपास आते हैं लेकिन इछावर नगर में नहीं आते हैं. यह जगह राजधानी भोपाल से महज 57 किलोमीटर दूर है. वहां के लोगों के मुताबिक, इछावर के चारों तरफ बावड़ी और शमशान घाट हैं. जिसके चलते यह किसी भी मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने का कारण बन जाता है और यही कारण है कि कोई भी मुख्यमंत्री यहां जनसभाएं नहीं करते.
कई मुख्यमंत्री कर चुके हैं मिथक को तोड़ने का प्रयास
इछावर के मिथक को तोड़ने का प्रयास कई मुख्यमंत्री कर चुके हैं लेकिन जितने भी मुख्यमंत्रियों ने यहां कदम रखा, उन सभी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. साल 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इस मिथक को तोड़ने के लिए 15 नवंबर, 2003 को आयोजित सहकारी सम्मेलन में शामिल होने इछावर आए थे. इस दौरान दिग्विजय सिंह ने अपने भाषण में कहा था कि “मैं मुख्यमंत्री के रूप में इछावर के इस मिथक को तोड़ने आया हूं” और उनकी इस यात्रा के बाद मध्य प्रदेश में हुए चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा था. इसी तरह वीरेंद्र कुमार सकलेचा, उमा भारती भी आई थीं और अपने कुर्सी पद से हटना पड़ा था.
क्या कहते हैं इतिहासकार?
इतिहासकार राजेश शर्मा बताते हैं कि इसका इतिहास बहुत पुराना है. इछावर का नाम पहले लक्ष्मीपुर हुआ करता था. चारों कोनों पर चार शमशान, चार बावड़ी, चार मजारे, चार गेट विभिन्न नामों से हुआ करते थे. समय के साथ यह स्मृति खत्म होती गई. कालखंड में गोंड राजा की बस्ती हुआ करती थी. उनका बुर्ज भी था. उनकी मीनारें भी थीं. जो भी मुख्यमंत्री आए हैं उनकी कुर्सी चली गई है. यह बात सही है.