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भोपाल गैस त्रासदी सम्बन्धी अवमानना याचिका पर हाईकोर्ट में बुधवार को तय होगी सजा

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जबलपुर। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के उपचार और पुनर्वास संबंधी आदेश का पालन नहीं करने के मामले में अतिरिक्त मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के दो अधिकारी अवमानना के आरोप में घिरे हैं। इन्हें अवमानना के प्रकरण में सजा होगी या राहत मिलेगी, इसका फैसला मंगलवार, 16 जनवरी को होना था।

युगलपीठ के एक सदस्त कि अनुपस्थिति के कारण सुनवाई एक दिन टल गई। अब बुधवार को सुनवाई होगी। दरअसल, उक्त अधिकारियों ने उनके विरुद्ध लगे अवमानना के आरोपों से मुक्त करने का आवेदन कोर्ट को दिया है। कोर्ट इस पर अगली सुनवाई के दौरान विचार करेगी।

हाईकोर्ट के जस्टिस शील नागू और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ के समक्ष अवमानना मामले की सुनवाई हो रही है। इस मामले में न्यायमित्र नमन नागरथ ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने मॉनिटरिंग कमेटी के वकील को सरकार स्वीकृति नहीं दे रही है।

उन्होंने दलील दी कि कमेटी सरकार के अधीन नहीं है। कमेटी कोर्ट के आदेश पर जांच कर रिपोर्ट पेश करती है, इसलिए सरकार और कमेटी का एक ही वकील नहीं हो सकता। कोर्ट ने सरकार को इस संबंध में अगली सुनवाई पर जवाब पेश करने के निर्देश दिए।

यह है पूरा मामला

 

सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन सहित अन्य की याचिका की सुनवाई की थी। गैस पीडि़तों के उपचार और पुनर्वास के संबंध में 20 निर्देश दिए थे। इनका क्रियान्वयन सुनिश्चित कर मॉनिटरिंग कमेटी गठित करने के आदेश दिए थे।

इस कमेटी को हर तीन माह में अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट के सामने पेश करने को कहा था। साथ ही रिपोर्ट के आधार पर केंद्र और राज्य सरकारों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए जाने थे। मॉनिटरिंग कमेटी की अनुशंसाओं पर कोई काम नहीं होने का आरोप लगाते हुए अवमानना याचिका दाखिल की थी।

सरकारी अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है। अवमानना याचिका में कहा गया कि गैस पीडि़तों के हेल्थ कार्ड तक नहीं बने हैं। अस्पतालों में आवश्यकता अनुसार उपकरण व दवाएं उपलब्ध नहीं हैं।

बीएमएचआरसी के भर्ती नियम तय नहीं होने से डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ स्थाई तौर पर सेवाएं प्रदान नहीं कर रहे हैं। इस कारण पीडि़तों को उपचार के लिए भटकना पड़ रहा है। पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट की युगल पीठ ने कहा था कि कम्प्यूटीकरण और डिजिटलीकरण की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र की थी।

प्रक्रिया पूरी करने की जिम्मेदारी अतिरिक्त मुख्य सचिव मोहम्मद सुलमान की थी। युगल पीठ ने पूर्व में पारित आदेश का हवाला देते हुए कहा कि आदेश के बाद भी मॉनिटरिंग कमेटी को स्टेनोग्राफर तक उपलब्ध नहीं कराया है। बीएमएचआरसी को एम्स में नहीं बदला गया।

बीएमएचआरसी के लिए स्वीकृत 1,247 पदों में से 498 पद रिक्त पड़े हैं। राज्य सरकार के रवैये से नाराज था कोर्ट युगलपीठ ने आदेश में कहा था कि इन अधिकारियों ने गैस पीडि़तों को बेसहारा छोड़ दिया है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेश के परिपालन में तत्परता व ईमानदारी से काम नहीं हुआ है।

गैस पीडि़तों के प्रति असंवेदनशीलता दिखाई गई है। इस मामले में ढिलाई बरती जा सकती है। युगल पीठ ने अवमानना के तीनों दोषियों को जवाब पेश करने के निर्देश जारी किए थे।

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