सनातन धर्म में वेद-पुराणों का सर्वाधिक महत्त्व है। भविष्योत्तर पुराण में पापमोचिनी एकादशी के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार, संसार का कोई ऐसा प्राणी नहीं है, जिससे जाने-अनजाने कोई पाप न हुआ हो। ईश्वरीय विधान के अनुसार, पाप दंड से बचा जा सकता है, अगर पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखें। पाप से मुक्ति व सर्वकामना सिद्धि के लिए यह व्रत बहुत आवश्यक है। पुराणों के अनुसार, चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी पापमोचिनी एकादशी है अर्थात् पापों को नष्ट करने वाली है। यह व्रत इस वर्ष 28 मार्च, सोमवार को है।
इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा फल मिलता है। इसलिए रात्रि में भी निराहार रहकर भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें। जिन लोगों को शारीरिक व मानसिक कष्ट है या जो गलत कार्यों से दूर रहना चाहते हैं, उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए। जिन भाई-बहनों के जीवन में दरिद्रता व दुख थमने का नाम नहीं ले रहा है, उन्हें भी इस व्रत को अवश्य करना चाहिए, ताकि जीवन में सुख-शांति व समृद्धि आ सके।
विधि: एकादशी से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद भोजन न लें। सुबह उठकर स्नान करें और फिर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु के सामने धूप-दीप जलाएं। विष्णुजी को चंदन का तिलक लगाएं और पुष्प, सात मोती, प्रसाद अर्पित करें। इसके बाद विष्णुजी की आरती करें और व्रत की कथा पढ़ें। पूरे दिन विष्णुजी का ध्यान करें। दूसरे दिन द्वादशी को सुबह पूजन के बाद ब्राह्मण या गरीबों को भोजन कराएं, दान-दक्षिणा दें, फिर स्वयं भोजन करें और व्रत का समापन करें।