जीवन का निर्वाह और निर्माण हमारे हाथ में है,आयु के क्षय से मृत्यु निश्चित है-आचार्य श्री विद्यासागर महाराज
सुरेन्द्र जैन रायपुर
डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि जीव का बोध होने पर ज्ञात होता है | इसे इस उदाहरण से समझते हैं कि एक बड़ा वृक्ष आकाश को छू रहा है और दूसरी तरफ एक नया पौधा है जिसकी पत्तियां कोमल है, कोपलें अभी फूट रही है | यहाँ दोनों कि स्थिति विपरीत है | बड़ा वृक्ष धीरे – धीरे सूख रहा है वही छोटा पौधा पानी नहीं भी हो तो पानी के लिये निचे पचासों मीटर तक भी उसकी जड़ें चले जाती है | पाषाण आने पर उसे छोड़कर जहाँ – जहाँ मिटटी होती है वहाँ से निचे जाते जाती है और जब निचे पानी मिलता है तो वह जड़ें उस पानी को ऊपर भेजती है जहाँ कोपलें फूट रही हैं, ऊपर पत्ति लहलहा रही है और तना को मजबूत बना रही है | उसके पास अपनी शक्ति है | बड़ा वृक्ष सूख रहा है जिसे कुछ लोग इंधन बनाने के चक्कर में है | उसकी इतनी लम्बी – शक्तिशाली जड़ें होने पर भी सूख रहा है कोई उसमे मन्त्र तो नहीं फूक दिया जिससे एक सूख रहा है और दूसरा हरा – भरा हो रहा है | “आयु के क्षय से मरना निश्चित है |” चाहे कितनी भी चिकित्सा, आराधना, प्रार्थना करो कुछ काम नहीं आएगा | तो कुछ उपाय बताओ महाराज | खुद के पास है उपाय | आपका जीवन आपके हिसाब से चल रहा है | आगम में एक उदाहरण आता है लोध का पौधा (Money Plant) जो इतना नाजुक कमजोर होता है | वहां तक चले जाता है जहाँ धन का घड़ा (खजाना) गढ़ा हो| कुछ लोग इसके पीछे जाते हैं और खजाना प्राप्त कर लेते हैं | इसका कारण यह है कि कुछ वनस्पति में ऐसे तत्व होते हैं जो लोहा, चांदी, सोना आदि धातुवों का जिसपर प्रभाव पड़ता है | कई व्यक्ति ग्रह के अनुसार सोने में मोती, चांदी में नीलम, पुखराज आदि पहनते हैं जिससे उनके अन्दर के तत्व तेजी से प्रक्रिया करते हैं और वे उन्नति कि ओर अग्रसर हो जाते हैं | यह सिद्धांत – विज्ञान, कर्म सिद्धांत का बोध न होने के कारण अपव्यय कि ओर जाता है | भीषण गर्मी में भी वह पौधा, वनस्पति लहलहा रही है, हरी – भरी है | योग्य राशन कहाँ से मिल रहा है | यह सब प्रकृति में परिवर्तन होता है और मिटटी में भी तत्व बदलते हैं जिसके कारण यह सब होता है | वही दूसरी ओर बड़ा वृक्ष सूख रहा है | एक और उदाहरण है जिसमे एक सूखी रुखी सी लकड़ी है जिसके साथ पौधे को बांधा जाता है | उसी लकड़ी कि सहायता (support) से ऊपर – ऊपर पहुच जाता है | फिर लकड़ी गिर भी जाये तो भी वह पौधा खड़ा रहता है और आगे ही बढ़ता जाता है | प्रकृति में मृदु, मार्दव एवं राशन के अभाव में भी वह अपनी कूबत के कारण खड़े रहता है | दूसरी ओर जब दीपक बुझने वाला होता है तो उसे कितना भी सम्हालो, ऊपर से कितना भी तेल डालो कुछ असर नहीं होता और समय आने पर वह दीपक बुझ ही जाता है | यह संसार बहुत बड़ा है इसमें जिसने भी जन्म लिया है उसकी मृत्यु का टिकट कंफर्म है | कई लोग बड़ा – बड़ा ५ – 7 मंजिल का फाइव स्टार लेवल का घर खड़ा कर रहे हैं वह सब यही रह जायेगा कुछ भी साथ जाने वाला नहीं है | वहां तो २१ माला है जहाँ आपकी आरती लेकर खड़े प्रतीक्षा कर रहे हैं | आयु कर्म के साथ नाम कर्म का बंध अनिवार्य होता है | 1-2-3-4-५ इन्द्रिय जीव कोई भी हो उनकी मृत्यु निश्चित है | यहाँ से वहां जाना तय है | वहाँ कोई भी खजाना, मोटर, गाड़ी, बंगला आदि कुछ भी साथ नहीं जाएगा | आपका भाग्य नहीं है तो जमा पूंजी भी दूसरा भोगेगा।
यह संसार कि यात्रा है | धन्य है आप विपरीत होकर पर भी सब कर लेते हो | अकेले बैठ कर कभी रोते हो यदि ऐसा करते भी हो तो कभी किसी से कहना नहीं चाहिये | आप लोग दूसरों के दुःख कि बात करते हो पहले अपने दुःख को तो देख लो इसे कहते हैं “उपाय विचय धर्म|” आप लोग जिनवाणी को अलमारी में अच्छे से जमा लेते हो, उसमे कुमकुम, हल्दी आदि लगाकर नमस्कार कर लेते हो लेकिन कभी उसे पढ़ते नहीं हो इसी कारण आपको इधर – उधर भटकना पड रहा है | कल कि गर्मी इस शताब्दी कि सबसे ज्यादा गर्मी वाला दिन लग रहा था ४८ घंटे से लगातार शरीर से पसीना ही पसीना निकल रहा था और शाम होते ही ऐसी हवा चली और काले – काले बदल आ गए जो गर्जना करते रहे फिर बिजली चमक के साथ – साथ वर्षा हुई तो सारा का सारा वातावरण ठंडा हो गया और आज आप लोगो को ठंडक का अनुभव हो रहा है | ४८ घंटे गर्मी सहन करने के बाद यह ठंडक का आनंद आ रहा है | ऐसा ही कर्म का फल होता है कभी धुप तो कभी छाव| आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य भैया जी परिवार को प्राप्त हुआ |