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लक्ष्य प्राप्ति के लिये पुरुषार्थ अनिवार्य है- आचार्य श्री विद्यासागरजी

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सुरेन्द्र जैन धरसीवा रायपुर

डोंगरगढ़ चन्द्रगिरी तीर्थ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महामुनिराज ने गुरुवार को अपने अनमोल वचन में कहा कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ अनिवार्य होता है।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक द्रव्य में अपने – अपने परिणमन प्रकृति के अनुसार होते हैं | जिस प्रकार द्रव्य का जो स्वभाव होता है उसका उसी प्रकार परिणमन होता है | अग्नि का स्वभाव उष्ण होता है और जल का स्वभाव शीत होता है | इसी प्रकार प्रकृति में प्रत्येक द्रव्य का अपना – अपना स्वभाव होता है | कभी – कभी किसी और द्रव्य के संयोग से विपरीत परिणमन भी होता है | जैसे जल का स्वभाव शीत है जब वह जल अग्नि के संयोग में आता है तो उसका स्वभाव बदलने लगता है और वह गर्म होने लगता है | उस समय उसका स्वभाव जलाने का हो जाता है | जब जल अग्नि के संयोग से अलग होता है तो वह पुनः अपने स्वभाव (ठंडा होने लगता है ) में आने लगता है | प्रकृति का स्वभाव जीव और पुदगल अलग – अलग होता है, इन्ही दोनों से मिलकर संसार बना हुआ है | इन्हें अलग करने का रास्ता भी है | एक गंजी में दूध रखा है उसे जब चूल्हे में गर्म करते हैं और गर्म होने के पश्चात् गंजी को चूल्हे से निचे उतार लेते हैं तो फिर दूध धीरे – धीरे ठंडा होने लगता है और उसमे पतली झिल्ली आने लग जाती है | जैसे – जैसे गर्म कम होता है तो मलाई जमने लगती है और उसमे घी चमकने लगता है | जब दूध धीरे – धीरे ठंडा हो जाता है तो उसमे जमी मलाई निकालकर उससे घी बनाने कि प्रक्रिया आपको मालूम है | कोई भी कार्य को करने के लिये पुरुषार्थ प्रत्येक क्षेत्र में अनिवार्य होता है | दूध में कोई भी घी बाहर से नहीं डालता है परन्तु वह दूध में विद्यमान रहता है और उसे प्राप्त करने के लिये विशेष विधि से पुरुषार्थ करने पर वह घी आपको प्राप्त हो जाता है | इसी प्रकार जीव और पुदगल (यहाँ पुदगल कर्म के रूप में है), कर्मों के योग से , राग – द्वेष आदि से आत्मा के साथ लग जाते हैं | जब मनुष्य तप, संयम आदि को अपने जीवन में लाता है अपने अन्तरंग में धारण करता है तो आत्मा में लगे अनेक प्रकार के कर्म कम होने लग जाते हैं | आप लोगो को घी बनाने में 12 घंटे लग जाते हैं जबकि 12 मिनट में ही वह आत्मिय शक्ति बाहर आने को अपने आप तैयार हो जाती है | संतो ने बताया है कि इस प्रक्रिया से आत्मा ऊपर ऊर्द्धगमन करने को तैयार हो जाती है | “मिले अनादी से, यतन से बिछड़े, पय और पानी”|

विश्वविद्यालयों में भी प्रत्येक विषय में प्रयत्न करने से सभी विषय में अच्छे अंक प्राप्त करने पर सबकी, सभी छात्र – छात्राओं कि दृष्टि उस विद्यार्थी कि ओर हो जाती है | इसी प्रकार प्रयत्न करने से आपका तप बढ़ता है जिस प्रकार दूध में मलाई आ जाती है उसी प्रकार भीतर आपकी चेतना जागृत हो जाती है | हर व्यक्ति में इसे प्राप्त करने कि क्षमता विद्यमान रहती है | आज इसे समझाने वाले गुरु भी मिल जाते हैं लेकिन जबतक श्रधान नहीं होगा तब तक आपको यह रहस्य समझ में नहीं आएगा | बढती उम्र के साथ गुणों में भी वृद्धि होना चाहिये | ओमकाराय नमो नमः |आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी पंकज दीदी, प्रीती दीदी अशोक नगर निवासी परिवार को प्राप्त हुआ

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