रिपोर्ट-सुरेन्द्र जैन धरसींवा रायपुर
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोई ।
जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख काये को होये
बुधवार को तीर्थ क्षेत्र डोंगरगढ़ चन्द्रगिरी में विराजमान पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महामुनिराज ने उक्त पंक्तियों के साथ अपने अनमोल वचनों से श्रावकों को शुभ सन्देश दिया।
अपने अनमोल वचन में आचार्य श्री ने कहा कि जब हवा सामने से आती है तूफ़ान के रूप में तो बड़े – बड़े वाहन चालक को भी हिला देती है और उसे वही रुकना पड़ता है | पैदल चलने वाला भी दो कदम पीछे हो जाता है | तब उन्हें भगवान कि याद आती है और वे इस प्रतिकुलता से बचने के लिये आँख बंद करके भगवान से प्रार्थना करने लगते हैं | अच्छा समय जल्दी निकल जाता है और बुरा समय बहुत बड़ा कालखंड लगता है | यहाँ तीन कि महत्वता ज्यादा है देव, शास्त्र और गुरु | प्रत्यक्ष देव के दर्शन आज दुर्लभ है इसलिए हमें स्थापित देव से ही काम चलाना है | शास्त्र जो भगवान के समवशरण में गणधर परमेष्ठी ओमकार ध्वनि सुनकर उसको खोलकर हमें देते है जो आज भरपूर मात्रा में हमारे पास उपलब्ध है | जिसका स्वाध्याय कर ज्ञानार्जन किया जा सकता है | और गुरु का सानिध्य मिल जाना मतलब मोक्षमार्ग का द्वार खुलने जैसा है | हमारी तो यही भावना है कि जब हम अपने गुरु जी के पास जायेंगे तो उनसे पूछेंगे कि आपने हमको याद किया कि नहीं | वो अवश्य ही इन सोलह स्वर्गों में ही होंगे और वहाँ आचार्य कुंद – कुंद देव, आचार्य समन्तभद्र, आचार्य ज्ञानसागर महाराज सभी से वहाँ मिलना होगा | जब भगवान महावीर स्वामी का समवशरण लगा था तो सभी करोडो देवी देवता वहाँ उपस्थित थे लेकिन भगवान कि दिव्य ध्वनि नहीं खीरी जब गणधर परमेष्ठी इंद्रभूति वहाँ पहुंचे उन्होंने भगवान से हाँथ जोड़कर माफ़ी मांगी कि मै थोडा विलंभ से आया तत्पश्चात भगवान महावीर स्वामी कि दिव्य ध्वनि खीरी जो उनके सर्वांग से ओमकार ध्वनि गुंजायमान हो रही थी तो वहाँ उपस्थित गणधर स्वामी उस ध्वनि को सुनकर उसे खोलते जाते हैं और इस प्रकार हमें पुराण ग्रंथों और शास्त्रों के माध्यम से तीर्थंकर भगवान कि देशना प्राप्त होती है | गुरु जी हमें पीछे से हवा कि तरह आगे बढ़ने के लिये उत्साहित करते रहते हैं और हमारे प्रत्येक कदम को उठाते हैं और उस कदम को हम इर्यापथ पूर्वक आगे बढाकर रखते हैं |
अहिंसा शाकाहार की शक्ति
आचार्यश्री ने आगे कहा कि कुण्डलपुर के बड़े बाबा जब नये मंदिर में विराजमान हुए थे तो उस समय हमको भी यह दृश्य देखने को मिला था कि वह सोलह वर्ष का सरदार बालक जैसे ही संकल्प पूर्वक आजीवन मांसाहार और मदिरा का त्यागकर गेयर लगाता है तो बड़े बाबा फूल कि तरह उठकर नये मंदिर में विराजमान हो जाते हैं और वहाँ एक बाल का भी अंतर नहीं आता है | अच्छे कार्य में हम हमेशा समय पर उपस्थित रहते हैं कभी चुकते नहीं हैं | हम यदि हर दिन भगवान कि आराधना करते हैं तो प्रतिकूल या विपरीत परिस्थिति आती है तो उस समय हमें कोई विकल्प नहीं होता है |
ब्रह्मचारिणी बहिन के परिवार को मिला आहार दान का पुण्य
आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी नीलम दीदी प्रतिभास्थली डोंगरगढ़ गुना निवासी परिवार को प्राप्त हुआ