देसी दियों का क्रेज़ बरकरार, दीपावली की तैयारी में जुटे कुम्हार बनाई जा रही लक्ष्मी जी की मिट्टी की मूर्तियां
सलामतपुर रायसेन से अदनान खान की रिपोर्ट
दीपों उत्सव का पर्व दीपावली नजदीक आ चुकी है। इस पर्व को धूमधाम से मनाने के लिए दीपों का अपना एक अलग ही महत्व है। आधुनिकता के युग में बिना तेल डालने वाले अनेक दीपक बाजार में विक्रय के लिए आ गए है। आधुनिक दीपों की तुलना में देसी दिए का अपना ही महत्व होता है। इसीलिए इन देसी दिए की मांग होने पर कुम्हार जाति के सदस्य देसी दिए को तैयार करते हैं। जिसमें लोग तेल और बाती डालकर दीपावली के दिन दीपों का अधिक उपयोग करते है। दीपावली पर पूजा स्थल पर मोमबत्ती के दिए की अपेक्षा देसी दियों में तिली का तेल डालकर बत्ती के साथ दीप प्रज्जवलित का महत्व होता है। यही कारण है कि कुम्हार समाज के सदस्यों को देसी दिए तैयार करके अपनी खाली हाथ को काम देते है।
इसी कड़ी में सांची जनपद के सलामतपुर व अम्बाड़ी सहित आसपास क्षेत्रों में कुम्हार मूर्तिकारों द्वारा दिए व लक्ष्मी जी की मूर्तियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। अम्बाड़ी निवासी विनोद प्रजापति का कहना है कि दीपावली त्यौहार की तैयारी चल रही है। जिसमें लक्ष्मी जी की मूर्तियां एवं मिट्टी के दीप बना रहे हैं। मिट्टी के दिए तैयार करने के लिए मिट्टी बड़ी मुश्किल से मिल रही है 2 साल कोरोना काल में उनका धंधा ठप रहा। इस साल धंधा अच्छा चलने की उम्मीद है। देसी दिए तैयार करने में सबसे पहले मिट्टी को तैयार करने में मेहनत करना पड़ती है। यदि मिट्टी में छोटा भी पत्थर रहता है तो दिया खराब हो जाता है। वहीं लक्ष्मी पूजा के लिए लक्ष्मी जी की मूर्ति अभी तैयार की जा रही है। जिसमें पूरा परिवार जुटा हुआ है। इस साल काम काज अच्छा चलने की उम्मीद जताई जा रही है।