मुकेश साहू दीवानगंज रायसेन
खेड़ा जमुनिया में चल रही
श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन श्रीमद्भागवत का रसपान पाने के लिए भक्तों का सैलाब कथा स्थल पर उमड़ पड़ा। कथावाचक संतोष महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा का समापन करते हुए कई कथाओं का भक्तों को श्रवण करवाया, जिसमें प्रभु कृष्ण के 16108 शादियों के प्रसंग के साथ, सुदामा प्रसंग और परीक्षित मोक्ष की कथाएं सुनाई। उन्होंने बताया सुदामा जी के पास कृष्ण नाम का धन था। संसार की दृष्टि में गरीब तो थे, लेकिन दरिद्र नहीं थे। अपने जीवन में किसी से कुछ मांगा नहीं। पत्नी सुशीला के बार-बार कहने पर सुदामा अपने मित्र कृष्ण से मिलने गए। भगवान के पास जाकर भी कुछ नहीं मांगा। भगवान अपने स्तर से सब कुछ दे देते हैं। सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने दोस्ती की मिसाल पेश की और समाज में समानता का संदेश दिया। इसके उपरांत दत्तात्रेय जी के चौबीस गुरुओं के बारे में बताया।
कथा समापन के दौरान संतोष महाराज ने भक्तों को भागवत को अपने जीवन में उतारने की बात कही, जिससे सभी लोग धर्म की ओर अग्रसर हो। साथ ही भक्तों को बताया कि श्रीमद्भागवत कथा का सात दिनों तक श्रवण करने से जीव का उद्धार हो जाता है, तो वहीं इसे करवाने वाले भी पुण्य के भागी होते है।
आगे कथा व्यास ने राजा परीक्षित के मोक्ष का वर्णन किया। परीक्षित मोक्ष की कथा सुन श्र्रोता भाव विभोर हो गए।
आगे बताया कि एक बार राजा परीक्षित आखेट करते हुए वनों में काफी दूर चले गए। उनको प्यास लगी पास तो ऋषि के आश्रम में पहुंचे और बोले ऋषिवर मुझे पानी पिला दो।वह पानी नहीं पिला सके परीक्षित ने सोचा की इसने मेरा अपमान किया है। इस पर राजा ने मरा हुआ सर्प ऋषि के गर्दन में डाल दिया। ऋषि के बेटे को जानकारी हुई तो उन्होंने श्राप दिया कि जिसने पिता की गर्दन में सांप डाला है आज से सातवें दिन तक्षक नाग के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि यह तो धर्मात्मा राजा परीक्षित है और यह अपराध इन्होंने कलयुग के वशीभूत होकर किया है। यह सूचना परीक्षित को दी कि आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प तुम्हें डसेगा। यह सुनकर परीक्षित दुखी नहीं हुए और अपना राज्य अपने पुत्र जन्मेजय को सौंप कर गंगा के तट पर पहुंचे। वहां पर बड़े-बड़े ऋषि मुनि देवता पहुंचे और अंत में सुखदेव वहां पहुंचे। सुखदेव संसार में भागवत का ज्ञान देने के लिए ही प्रकट हुए हैं। मोक्ष की प्राप्ति के लिए राजा को श्रीमद्भागवत कथा सुनाई गई। राजा परीक्षित मोक्ष की कथा सुन दर्शक भाव विभोर हो गए।
कथा की समाप्ति पर विशाल भंडारा का आयोजन हुआ जो देर रात तक चलता रहा।