गांधी जयंती पर सारे संसार ने राष्ट्रपिता को याद किया। मैंने भी किया । मेरे लिए यह दिन कुछ कारणों से ख़ास था। मेरे पिता श्री रमेश चंद्र बादल क़रीब पचास साल से लगातार लिख रहे हैं और व्याख्यानों में जाते रहे हैं।गांधीवादी हैं। स्वभाव से वे मोटिवेशनल स्पीकर और लेखक हैं।अब उनकी अवस्था नब्बे पार है।हाल ही में उनकी नई किताब – सपने देखो,सफलता पाओ प्रकाशित होकर आई है। यह किताब इन दिनों उत्तर भारत के हिंदी भाषी क्षेत्रों में धूम मचा रही है।नई पीढ़ियों को प्रेरणा देने वाला काफी कंटेंट इसमें है। पी पी पब्लिकेशन्स के निदेशक मेरे छोटे भाई पंकज चतुर्वेदी ने इस बेजोड़ पुस्तक को प्रकाशित किया है।
बचपन से मैं पिताजी को आर्दश शिक्षक के रूप में ही देखता रहा हूँ।उन्होंने स्कूल में मुझे भी पढ़ाया है और उनके डंडे की मार भी मैंने बहुत खाई है। जब यह अवसर आया कि गांधी जयंती पर मध्यप्रदेश के महामहिम राज्यपाल उनकी शैक्षणिक सेवाओं के लिए गांधी भवन में सम्मानित करेंगे तो मैं कह सकता हूँ कि पिताजी की प्रसन्नता से अधिक मेरे लिए ख़ुशी की बात थी। जब कार्यक्रम शुरू हुआ तो राज्यपाल सारा प्रोटोकॉल तोड़ते हुए पिताजी के पास पहुँचे और उन्हें सम्मानित किया।
पुरानी पीढ़ी के लिए उनका आदर भाव सचमुच प्रेरक है।इसके बाद किताब का विधिवत लोकार्पण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जाने माने गांधीवादी और महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति आचार्य गिरीश्वर मिश्र ने किया। इस मौके पर मेरे लिए ,मेरी 48 साल की पत्रकारिता के सफर में उत्प्रेरक की भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ संपादक और माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय के संस्थापक अध्यक्ष पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर के अध्यक्ष के रूप में उपस्थिति बहुत ख़ास मायने रखती है।उन्होंने इस किताब की भूमिका लिखी है। मुझे तो इसके लिए उनका आभार या धन्यवाद देने का हक़ भी नहीं है।
सबसे बड़ी बात ज़िंदगी में पहली बार मैं अपने पिताजी के साथ किताब के लोकार्पण मंच पर उनके साथ ही खड़ा था।कोई भी पुत्र अपने पिता को क्या दे सकता है ? उनके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव से बड़ा कुछ भी नहीं है। अब मैं उनसे आग्रह कर रहा हूँ कि वे आत्मकथा लिखें। इतिहास का एक जिज्ञासु पत्रकार और प्राध्यापक होने के नाते मैं चाहता हूँ कि जिन लोगों ने भारत की आज़ादी से ठीक पहले के दस बारह साल अपने होश में देखे हैं ,वे उस दौर के भारतीय समाज की मानसिकता पर कुछ ज़रूर लिखें। भारत में इस कालखण्ड पर इतिहासकारों के अलावा बहुत गंभीर लेखन नहीं हुआ है। यहाँ इस आयोजन के कुछ चित्र हैं। आपको शायद पसंद आएँ .
-लेखक देश के ख्यात वरिष्ठ पत्रकार हे।