Let’s travel together.

असम में मकर संक्रांति की तरह मनाया जाता है भोगाली बिहू त्योहार

0 349

 

बिहू असम में फसल कटाई का प्रमुख त्योहार है। यह फसल पकने की खुशी में मनाया जाता है। इसी त्योहार को पूर्वोत्तर क्षेत्र में भिन्न-भिन्न नाम से मनाते हैं। एक वर्ष में यह त्योहार तीन बार मनाते हैं। पहला सर्दियों के मौसम में पौष संक्रांति के दिन, दूसरा विषुव संक्राति के दिन और तीसरा कार्तिक माह में मनाया जाता है। पौष माह या संक्राति को भोगाली बिहू, विषुव संक्रांति को रोंगाली बिहू और कार्तिक माह में कोंगाली बिहू मनाया जाता है। आओ जानते हैं कि किस तरह मनाते हैं भोगाली बिहू।

बिहू का अर्थ : असम में भोगाली बिहू त्योहार मकर संक्राति की तरह ही मनाया जाता है या यह कहें कि यह मकर संक्राति का ही स्थानीय रूप है। बिहू शब्द दिमासा लोगों की भाषा से है। ‘बि’ मतलब ‘पूछना’ और ‘शु’ मतलब पृथ्वी में ‘शांति और समृद्धि’ है। यह बिशु ही बिगड़कर बिहू हो गया। अन्य के अनुसार ‘बि’ मतलब ‘पूछ्ना’ और ‘हु’ मतलब ‘देना’ हुआ।

भोगाली बिहू क्या है : बिहु असम में फसल कटाई का प्रमुख त्योहार है। यह फसल पकने की खुशी में मनाया जाता है। इसी त्योहार को पूर्वोत्तर क्षेत्र में भिन्न भिन्न नाम से मनाते हैं। पौष माह या संक्राति को भोगाली बिहू मनाते हैं, जो कि जनवरी माह के मध्य में अर्थात मकर संक्रांति के आसपास आता है। इसे माघ (Magh Bihu festival) को बिहू या संक्रांति भी कहते हैं। इसे भोगाली इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें भोग का महत्व है अर्थात इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है और तरह-तरह की खाद्य सामग्री बनाई और खिलाई जाती है।

कैसे मनाते हैं ये त्योहार ( Bihu festival In Asam ) :

1. भोगाली या माघ बिहू के पहले दिन को उरुका कहते हैं। इस दिन लोग खुली जगह में धान की पुआल से अस्थायी छावनी बनाते हैं जिसे भेलाघर कहते हैं।

2. इस छावनी के पास ही 4 बांस लगाकर उस पर पुआल एवं लकड़ी से ऊंचे गुम्बज जैसे का निर्माण करते हैं जिसे मेजी कहते हैं। गांव के सभी लोग यहां रात्रिभोज करते हैं।

3. उरुका के दूसरे दिन स्नान करके मेजी जलाकर बिहू का शुभारंभ किया जाता है। गांव के सभी लोग इस मेजी के चारों ओर एकत्र होकर भगवान से मंगल की कामना करते हैं।

4. अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए लोग विभिन्न वस्तुएं भी मेजी में भेंट चढ़ाते हैं। बिहू उत्सव के दौरान वहां के लोग अपनी खुशी का इजहार करने के लिए लोकनृत्य भी करते हैं।

5. इस दिन नारियल के लड्डू, तिल पीठा, घिला पीठा, मच्छी पीतिका और बेनगेना खार के अलावा अन्य पारंपरिक पकवान भी पकाकर खाए जाते हैं।

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.

TODAY :: राशिफल शनिवार 27 जुलाई 2024     |     जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण की तैयारियों के लिए कार्यशाला आयोजि     |     सांची के शमशान को नही मिल सकी सडक,दलदल से होकर गुजरती हे शवयात्राएं     |     पूर्व प्रदेश अध्यक्ष श्री प्रभात झा के निधन से भाजपा संगठन में शोक की लहर: अपूरणीय क्षति, अनमोल योगदान की सदैव रहेगी स्मृति     |     महामाया चौक सहित, कई कलोनियों में जलभराव, बीमाऱी हुई लाइलाज,विधायक जी के निवास के आसपास भी जलभराव     |     नाले में अधिक पानी आने से ऑटो बह गया चालक ने कूद कर बचाई जान,विद्यार्थियों को स्कूल छोड़कर वापस आ रहा था ऑटो     |     बाग प्रिंट कला: मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर,श्रीमती सिंधिया ने मध्यप्रदेश के हस्तशिल्पियों को सराहा     |     पौधे लगाने के बाद बची पॉलीथिन थेली को एकत्र कराकर बेचने से प्राप्त राशि से पौधों की रक्षा के लिए खरीदेंगे ट्री गार्ड     |     उप-मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने श्री प्रभात झा के निधन पर व्यक्त किया शोक, कहा राजनैतिक जगत और समाज के लिए अपूरणीय क्षति     |     कांजी हाउस में 3 दिन भूख से तड़प करीब सौ गौवंश     |    

Don`t copy text!
पत्रकार बंधु भारत के किसी भी क्षेत्र से जुड़ने के लिए इस नम्बर पर सम्पर्क करें- 9425036811