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हरियाणा में SRK गुट पर भारी पड़े भूपेंद्र हुड्डा, राज बब्बर पर यूं ही कांग्रेस ने नहीं खेला दांव?

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कांग्रेस ने हरियाणा के गुरुग्राम लोकसभा सीट से अभिनेता से नेता बने राज बब्बर को चुनावी मैदान में उतारा है. हरियाणा प्रदेश कमेटी ने गुरुग्राम सीट पर दो नामों का पैनल राष्ट्रीय कमेटी को भेजा था. इसमें राज बब्बर और कैप्टन अजय सिंह यादव का नाम शामिल था. भूपेंद्र हुड्डा गुरुग्राम से राज बब्बर की पैरवी कर रहे थे तो कुमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी की तिकड़ी (एसआरके) गुट कैप्टन अजय यादव को चुनाव लड़ाना चाहते थे. कांग्रेस हाईकमान ने गुरुग्राम सीट से उम्मीदवार चयन के मामले में हुड्डा की पसंद का ख्याल रखा. इस तरह हरियाणा कांग्रेस की सियासत में ‘SRK’ गुट पर हुड्डा भारी पड़े हैं.

हरियाणा में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ‘इंडिया गठबंधन’ के तहत मिलकर चुनावी मैदान में उतरी हैं. प्रदेश की 10 में से 9 सीट पर कांग्रेस और एक सीट कुरुक्षेत्र से आम आदमी पार्टी मैदान में है. गुरुग्राम सीट पर राज बब्बर के नाम पर मुहर लगने के साथ ही कांग्रेस ने अपने कोटे की सभी 9 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. कांग्रेस के 9 में से 8 टिकट पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी नेताओं को मिले हैं, जबकि एसआरके गुट से कुमारी शैलजा को ही लोकसभा का टिकट मिल सका है.

हरियाणा में कांग्रेस दो गुटों में बटी हुई है, जो जगजाहिर है. एक गुट हुड्डा का है तो दूसरा एसआरके गुट है. भूपेंद्र हुड्डा के खिलाफ कांग्रेस की दिग्गज नेता कुमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी ने एक जुट हुए, जिन्हें ‘SRK’ गुट के नाम से जाना जाता है. हरियाणा की सभी 9 लोकसभा सीटों पर भूपेंद्र हुड्डा और एसआरके गुट अपनी-अपनी पसंद के नेताओं को कांग्रेस से टिकट दिलाना चाहते थे, जिसके लिए बकायदा दोनों ही गुटों ने पूरी ताकत के साथ पैरवी भी किया था. कांग्रेस हाईकमान ने भूपेंद्र हुड्डा को खास तवज्जो दी है और 9 में से 8 सीट पर उनकी पसंद के कैंडिडेट को टिकट दिया है, तो एसआरके गुट के हिस्से में सिर्फ एक सीट आई है.

राज बब्बर पर यूं ही नहीं खेला दांव

कांग्रेस ने हरियाणा की 9 से 8 सीट पर पिछले ही सप्ताह उम्मीदवार घोषित कर दिए थे, लेकिन गुरुग्राम लोकसभा सीट को लेकर हुड्डा और एसआरके गुट के बीच पेंच फंसा हुआ था. कांग्रेस की प्रदेश कमेटी ने गुरुग्राम सीट पर राज बब्बर और अजय यादव का नाम राष्ट्रीय कमेटी को भेजा था. कांग्रेस के अन्य गुट स्वराज इंडिया पार्टी के संयोजक योगेंद्र यादव का नाम आगे बढ़ा रहे थे. SRK गुट अजय को टिकट दिलाना चाहता था, तो हुड्डा राज बब्बर के टिकट की पैरवी कर रहे थे. कांग्रेस हाईकमान ने गुरुग्राम के सियासी समीकरण को देखते हुए हुड्डा की पसंद पर मुहर लगाया.

कांग्रेस ने राज बब्बर को गुरुग्राम से प्रत्याशी बनाकर स्थानीय समीकरण साधने के साथ-साथ बीजेपी सांसद और मोदी सरकार के मंत्री राव इंद्रजीत के सियासी वर्चस्व को तोड़ने का दांव चला है. गुरुग्राम सीट पर बड़ी संख्या में पंजाबी और मुस्लिम वोटर हैं. राज बब्बर पंजाबी समुदाय से आते हैं, जबकि पहली पत्नी मुस्लिम थी. इस तरह राज बब्बर दोनों ही समुदाय के वोट के साथ ही सिने स्टार राज बब्बर को अपने फिल्मी फैन का साथ भी मिल सकता है. मेवात का इलाका गुरुग्राम सीट के तहत आता है, जो राज बब्बर के पीछे मजबूती से खड़ा हो सकता है.

कांग्रेस के खांटी वोटर भी गुरुग्राम सीट पर अपना अलग वजूद रखते हैं, लेकिन अपनी पार्टी के ही कुछ नेताओं का भितरघात उन्हें परेशान कर सकता है. ऐसे में असंतुष्ट नेताओं मनाना भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के राव इंद्रजीत को 881546 वोट मिले थे और कांग्रेस प्रत्याशी कैप्टन अजय सिंह यादव को 495290 वोट से संतोष करना पड़ा था. इसलिए कांग्रेस ने एसआरके गुट की कोशिशों के बाद भी अजय यादव के बजाय हुड्डा खेमे के राज बब्बर को अहमियत दी है.

बता दें कि राज बब्बर 1989 में सियासत में कदम रखा और अभिनेता से नेता बने. राज बब्बर ने वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल से जुड़े और बाद में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. ठाकुर अमर सिंह के चलते उन्होंने सपा को छोड़ दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए. वो तीन बार लोकसभा सांसद और दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे हैं. 2009 में राज बब्बर ने फिरोजाबाद सीट पर डिंपल यादव को हरा दिया था. इसके बाद से उन्हें चुनावी जीत नहीं मिल सकी, जबकि उन्होंने कई सीट पर किस्मत आजमाई. अब वो गुरुग्राम सीट पर राव इंद्रजीत के सामने ताल ठोंकेंगे. राव 2014 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गए हैं. इस तरह पूर्व कांग्रेसी और मौजूदा कांग्रेसी के बीच फाइट होगी.

एसआरके गुट पर भारी पड़े हुड्डा

हरियाणा में भूपेंद्र हुड्डा ने जिस तरह से अपने करीबी नेताओं को टिकट दिलाने में सफल रहे हैं, उससे एसआरके गुट के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. अंबाला, सोनीपत और हिसार में हुड्डा की पसंद पर मुहर लगी है. अंबाला सीट से मुलाना के विधायक वरुण मुलाना पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खास समर्थक हैं, जिन्हें पार्टी ने टिकट दिया है. यहां से एसआरके गुट रेणु बाला के लिए पैरवी कर रहा था. हिसार में जय प्रकाश जेपी कई बार चुनाव लड़कर हार चुके हैं, लेकिन पार्टी ने फिर से टिकट दिया है. जय प्रकाश को हुड्डा का करीबी माना जाता है, जबकि एसआरके गुट उनके नाम पर बिल्कुल भी सहमत नहीं था. हिसार में एसआरके गुट चंद्रमोहन बिश्नोई और बृजेंद्र सिंह का नाम की पैरवी कर रहा था.

सोनीपत लोकसभा सीट से सतपाल ब्रह्मचारी को प्रत्याशी बनाया है. करनाल सीट से यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष दिव्यांशु बुद्धिराजा, भिवानी-महेंद्रगढ़ से राव दान सिंह और फरीदाबाद सीट से पूर्व कैबिनेट मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह को टिकट दिया गया है. हुड्डा ने करनाल और सोनीपत में पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा के नाम की भी लॉबिंग की थी, मगर पार्टी कुलदीप को टिकट देने के लिए राजी नहीं हो पाई है. इसके बाद सतपाल ब्रह्मचारी के नाम को आगे बढ़ाकर मुहर लगवा दी, जबकि एसआरके गुट सोनीपत से चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे के लिए लॉबिंग कर रहे थे.

भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से एसआरके गुट हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे बंसीलाल की पोती और किरण चौधरी की बेटी पूर्व सांसद श्रुति चौधरी भी टिकट की पैरवी कर रही थीं, लेकिन सफल नहीं हो सकीं. यह पहली बार है जब बंसीलाल का परिवार चुनावी मैदान में नहीं होगा. किरण चौधरी की हुड्डा के आगे नहीं चल सकी. इस तरह रोहतक और करनाल सीट पर एसआरके गुट अपने करीबी नेताओं को टिकट चाहता था, लेकिन कांग्रेस हाईकमान की पसंद हुड्डा के करीबी बने हैं.

हुड्डा के आगे किसी की नहीं चली

हरियाणा में कांग्रेस की सियासत भूपेंद्र सिंह हुड्डा के इर्द-गिर्द घिरी हुई है. हरियाणा में कांग्रेस के किसी भी नेता ने हुड्डा को चुनौती दी, वो कभी पार नहीं पा सका. अशोक तंवर से लेकर कुलदीप बिश्नोई तक ने मोर्चा खोलकर देख लिया, लेकिन हुड्डा के आगे टिक नहीं सके. अशोक तंवर तो राहुल गांधी के करीबी माने जाते थे, लेकिन जिस दिन हुड्डा के खिलाफ मोर्चा खोला, उसके बाद से हाशिए पर चले गए और कांग्रेस छोड़कर जाना पड़ा. चौधरी बीरेंद्र सिंह से लेकर राव इंद्रजीत तक ने इसीलिए कांग्रेस छोड़ी, क्योंकि उनकी हुड्डा से सियासी अदावत रही. कुलदीप बिश्नोई और हुड्डा के बीच सियासी वर्चस्व की जंग सार्वजनिक रही है, लेकिन उन्हें भी कांग्रेस छोड़ना पड़ा.

भूपेंद्र हुड्डा के हरियाणा कांग्रेस में बढ़ते सियासी दबदबे को चुनौती देने के लिए किरण चौधरी, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला को आपस में हाथ मिलाना पड़ा. इस तरह से एसआरके गुट ने अपनी एक अलग लॉबिंग कर रहे थे. लोकसभा चुनाव में उन्होंने सभी सीटों पर अपनी पसंद के उम्मीदवारों के नाम भेजे थे, लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने हुड्डा की पसंद पर भरोसा किया. इस तरह 2024 के लोकसभा चुनाव में हुड्डा ने साबित कर दिया कि कांग्रेस की सियासत के बेताज बादशाह हैं.

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