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पप्पू यादव पूर्णिया से आज भरेंगे पर्चा, कांग्रेस का मिलेगा हाथ या अकेले लड़ेंगे अपनी लड़ाई

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लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन से टिकट मिलने की उम्मीदों पर पानी फिरने के बाद भी राजेश रंजन (पप्पू यादव) ने पूर्णिया का सियासी मैदान नहीं छोड़ा. लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के आखिरी दिन गुरुवार को पप्पू यादव पूर्णिया सीट से अपना नामांकन दाखिल करेंगे. यह बात साफ नहीं है कि पप्पू यादव कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे या फिर निर्दलीय किस्मत आजमाएंगे. कांग्रेस का साथ पप्पू को नहीं मिलता है, तो उन्हें अपनी लड़ाई अकेले ही लड़नी होगी?

इंडिया गठबंधन में पूर्णिया लोकसभा सीट लालू यादव के हिस्से में गई है, जहां से बीमा भारती आरजेडी के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं. बीमा भारती ने बुधवार को अपना पर्चा भर कर दिया है. बीमा भारती के नामांकन में पहुंचे तेजस्वी यादव ने पप्पू यादव का नाम लिए बगैर कहा, ‘जो हमारे खिलाफ हैं, वो बीजेपी के साथ मिले हैं.’ वहीं, अब गुरुवार को पप्पू यादव नामांकन करेंगे, जिसके बाद पूर्णिया में मुकाबला काफी दिलचस्प होने जा रहा है.

पांच बार के सांसद रहे पप्पू यादव अपने समर्थकों के साथ शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए वे नामांकन पर्चा दाखिल करने पहुंचेंगे. नॉमिनेशन प्रक्रिया पूरी होने के बाद पप्पू यादव एक जनसभा को संबोधित करेंगे. पप्पू यादव को लेकर कांग्रेस ने खामोशी अख्तियार कर रखी है. निर्दलीय चुनाव लड़ने के सवाल पर पप्पू यादव ने कहा कि उनके पास कांग्रेस का झंडा है और वक्त बताएगा.

पूर्णिया सीट पर प्रेशर पॉलिटिक्स

राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने 20 मार्च को अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था. इसके बाद माना जा रहा था कि पूर्णिया लोकसभा सीट कांग्रेस के खाते में जा सकती है क्योंकि पप्पू यादव पूर्णिया सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. कांग्रेस ने पप्पू यादव के लिए लालू यादव और तेजस्वी यादव से पूर्णिया की सीट की मांग रखी थी.

हालांकि, लालू प्रसाद यादव ने पूर्णिया जिले की रुपौली से जेडीयू विधायक बीमा भारती को आरजेडी में शामिल कराकर टिकट दे दिया था. कांग्रेस की डिमांड को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया था. वहीं, प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव चलते हुए पप्पू यादव ने कहा था कि दुनिया छोड़ दूंगा, पूर्णिया नहीं छोडूंगा. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का विश्वास मेरे साथ है. पूर्णिया की सीट आरजेडी के खाते में जाने के बाद से ही पप्पू यादव ने फ्रेंडली फाइट का ऐलान कर दिया था और अब नामांकन दाखिल करेंगे.

पप्पू यादव पूर्णिया सीट से क्यों लड़ना चाहते हैं चुनाव?

पप्पू यादव ने बहुत ही सोच-समझकर पूर्णिया सीट को चुनाव लड़ने के लिए चुना है क्योंकि यहां के समीकरण उनके पक्ष में हैं. आरजेडी ने उनके लिए सीट नहीं छोड़ी, तो भी वह चुनावी मैदान में उतर रहे हैं. कांग्रेस चुप है और वो यह भी नहीं बता रही है कि पप्पू यादव पार्टी के कैंडिडेट हैं कि नहीं. पप्पू यादव खुद को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का सिपाही बता रहे हैं और कांग्रेस को जिताने का दावा कर रहे हैं. इसके बावजूद कांग्रेस पूरी तरह से चुप है क्योंकि आरजेडी ने पूर्णिया सीट पर अपना रुख कड़ा कर रखा है.

पप्पू यादव भले ही पहली बार विधायक मधेपुरा जिले से बने थे, लेकिन लोकसभा पहुंचने के लिए पूर्णिया को चुना था. पप्पू यादव साल 1990 में पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मधेपुरा की सिंहेश्वर सीट से विधायक चुने गए और एक साल के बाद 1991 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पूर्णिया से न केवल चुनाव लड़े बल्कि जीतकर सांसद बने. 1996 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव समाजवादी पार्टी की टिकट पर पूर्णिया से दूसरी बार जीतने में सफल रहे. 1999 के चुनाव में पप्पू यादव फिर से पूर्णिया सीट से निर्दलीय मैदान में उतरे और तीसरी बार सांसद बनने में सफल रहे.

पूर्णिया लोकसभा सीट का सामाजिक समीकरण

पप्पू यादव पांच बार सांसद रहे हैं, लेकिन पूर्णिया सीट से तीन बार चुने गए थे. इसमें दो बार निर्दलीय और एक बार सपा से लोकसभा सांसद रहे हैं इसलिए 2024 के चुनाव में पूर्णिया सीट से हर हाल में चुनाव लड़ना चाहते हैं. आरजेडी से भले ही बीमा भारती ने नामांकन दाखिल कर दिया हो, पर पप्पू यादव अपने स्टैंड पर कायम हैं और पूर्णिया से ताल ठोक दी है.

पप्पू यादव पूर्णिया सीट छोड़ने के लिए किसी भी शर्त पर तैयार नहीं हैं, तो इसकी वजह यहां का सामाजिक समीकरण है. पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में 60 फीसदी हिन्दू और 40 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पौने दो लाख से ज्यादा यादव और सवा लाख से ज्यादा सवर्ण आबादी है. इसके अलावा बड़ी संख्या में पिछड़ा, अति-पिछड़ा और दलित मतदाता हैं. पिछड़ों में कोइरी वोटर भी अहम हैं. पप्पू यादव के चुनावी मैदान में उतरने से पूर्णिया का मुकाबला काफी दिलचस्प हो सकता है.

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