आलेख
अरुण पटेल
इस वर्ष के अन्त में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सत्ताधारी दल भाजपा और सत्ता में आने को आतुर कांग्रेस दोनों ही पूरी सक्रियता और संजीदगी के साथ अपनी-अपनी जमावट करने में भिड़ गए हैं। भाजपा को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्र का सहारा है तो वहीं कांग्रेस को प्रियंका गांधी के द्वारा दी जाने वाली गारंटियों के सहारे 2018 के विधानसभा के चुनाव के मुकाबले काफी अधिक सीटें जीतने का भरोसा है। किसका मंत्र और किसकी गारंटियों पर मतदाता अपने समर्थन की मोहर लगाते हैं यह तो दिसम्बर माह में चुनाव नतीजों के साथ पता चल सकेगा। लेकिन फिलहाल दोनों दल तू डाल-डाल तो मैं पात-पात की नीति पर चल रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों का ही सर्वाधिक ध्यान हारी हुई सीटों पर है जिसमें उलट-फेर कर दोनों ने सत्ता साकेत में नये सिरे से विचरण करने के मंसूबे पाल रखे हैं।
मोदी मंत्र के बाद सेवा, समन्वय और सक्रियता की थीम पर भाजपा की चुनावी रणनीति नये आकार ले रही हैं तो वहीं कांग्रेस प्रियंका गांधी की गारंटियों के सहारे और नेताओं में तालमेल बिठाने में लग गई है। भाजपा का सर्वाधिक ध्यान हारी हुई सीटों तथा कमजोर बूथों पर आकर टिक गया है और उन पर मजबूती प्रदान करने की हरसंभव कोशिश कर रही है। हर सीट पर नये सिरे से जीत की संभावनाओं की पड़ताल की जा रही है और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने हर सीट के कमजोर बूथों तक पहुंचने की रणनीति पर बिसात बिछाना आरंभ कर दिया है।
प्रदेश के बूथों पर अब 27 जून 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए मंत्र के आधार पर काम करना भाजपा ने प्रारंभ कर दिया है। मोदी के दौरे के 24 घंटे के भीतर ही इसका असर भोपाल के बूथों पर नजर आया और यही रणनीति प्रदेश के अन्य बूथों पर पार्टी अपनायेगी। राजधानी भोपाल में बूथ स्तरीय वाचनालय खोले जाने लगे हैं। इसके बाद अब हर बूथ पर सामाजिक कामों को प्राथमिकता देने की गाइड लाइन भी जारी कर दी गयी है। इस गाइड लाइन के अनुसार सामाजिक कामों में सक्रियता को लेकर बूथ कार्यकर्ताओं और नेताओं के प्रदर्शन का आंकलन भी किया जायेगा। इसके साथ ही नवाचार के कामों को लेकर अलग से मूल्यांकन होगा। स्थानीय समीकरणों व जातिगत संरचना को देखते हुए उम्मीदवार घोषित होने से पहले भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के दौरे भी होंगे। आकांक्षी विधानसभा सीटों के प्रभारियों से संबंधित सीट का फीडबैक लिया जायेगा। लेकिन भाजपा संगठन के सामने चुनिंदा सीटों पर समन्वय की चुनौती का सामना भी होगा। इन सीटों पर वरिष्ठ नेताओं के दखल के बाद ही समन्वय हो पायेगा, इस कारण वरिष्ठ नेता सीधी निगरानी भी इन सीटों की करने लगे हैं। इनमें वे सीटें शामिल हैं जहां पर स्थानीय वरिष्ठ नेताओं में खुलकर मतभेद सतह पर आ चुके हैं। खासकर ग्वालियर-चम्बल, मालवा अंचल, बुंदेलखंड और विध्य में बड़े नेताओं के मतभेद सामने आ रहे हैं, उनसे भी भाजपा के पार्टी संगठन को दो-चार होना होगा।
सत्ता वापसी के लिए करो या मरो की तर्ज पर प्रयासरत कांग्रेस एक पूरी रणनीति के तहत काम करने लगी है। संगठन को मजबूती देने के लिए गुटों व धड़ों में बंटी कांग्रेस को एक मंच पर लाने का प्रयास हो रहा है। वैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद से गुटबंदी काफी हद तक कम हुई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बीच पहले से ही हमेशा अच्छी ट्यूनिंग रही है। सुरेश पचौरी के भी कमलनाथ से मधुर संबंध हैं। कमलनाथ को केवल पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री अरुण यादव तथा युवा तुर्क नेता जीतू पटवारी को साध कर समन्वय करना होगा। अजय सिंह और अरुण यादव तो सक्रिय हो चुके हैं इसके अलावा अन्य नेताओं को जिन्हें जो काम दिया गया है वे भी कर रहे हैं। जीतू पटवारी अपने ढंग से पार्टी का जनाधार बढ़ाने की दिशा में सक्रिय हैं। जबलपुर की रैली में प्रियंका गांधी ने कांग्रेस सरकार बनने पर महिलाओं को प्रतिमाह 1500 रुपये देने, 500 रुपये में गैस सिलेंडर तथा 100 यूनिट तक बिजली बिल माफ और 200 यूनिट का बिल हाफ करने सहित पुरानी पेंशन योजना सहित जो गारंटियां दी हैं वह कांग्रेस के वचनपत्र में शामिल होंगी। कमलनाथ भी पूरी तरह से एक्शन मोड में आ चुके हैं और लगातार तीन या उससे अधिक बार हारी एक-एक सीट पर उनकी नजर है और वे वहां सभाएं तथा बैठकें कर रहे हैं। दिग्विजय सिंह संगठन की मजबूती पर फोकस किए हुए हैं और 66 से अधिक हारी हुई सीटों पर उनकी विशेष नजर है।
–लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं
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