भोपाल, भाजपा ने इस बार 200 से अधिक सीटें जीतने का जो लक्ष्य बनाया उसमें आकांक्षी (पिछले चुनाव में हारी)सीटों का बड़ा योगदान रहेगा। इसलिए पार्टी का सबसे ज्यादा ध्यान आकांक्षी विधानसभा सीटों पर है। यह वह सीटें हैं जिनमें पार्टी को पिछली बार पराजय मिली थी। अब इन सीटों के हर बूथ में 51 प्रतिशत मत पाने के लिए पार्टी ने रणनीति तैयार की है। इस रणनीति के तहत इन क्षेत्रों में पार्टी ने अपने पुराने वरिष्ठ नेता-कार्यकर्ताओं को प्रभारी बनाया है। लेकिन क्षेत्रीय नेताओं के साथ तालमेल के अभाव में आकांक्षी सीटों को जीतने की रणनीति कमजोर पड़ रही है।
गौरतलब है कि भाजपा ने आकांक्षी सीटों पर जीत सुनिश्चित करने नई रणनीति पर काम शुरू करने का संकल्प लिया है। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा को 121 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था, इन क्षेत्रों में पार्टी ने अपने पुराने वरिष्ठ नेता-कार्यकर्ताओं को प्रभारी बनाया है। इन आकांक्षी सीटों के प्रभारियों को दायित्व के क्षेत्र में तालमेल और गृह जिले में पूछ-परख के संकट का सामना करना पड़ रहा है। इन प्रभारियों में कई लोग टिकट के दावेदार भी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी दो दिन पहले संगठन के नेताओं को समन्वय बढ़ाने की समझाइश दे चुके हैं। सत्ता-संगठन पदाधिकारियों के साथ आकांक्षी सीटों के प्रभारियों की अब तक 4-5 बैठकें हो चुकी हैं। इन बैठकों में भी तालमेल का मामला उठ चुका है।
बेहतर तालमेल नहीं बन पा रहा
संगठन के सामने सबसे बड़ी चिंता यह है कि बार-बार की समझाइस के बाद भी नेताओं में तालमेल नहीं बन पा रहा है। कई जिलों का प्रभारियों का कहना है कि संबंधित विधानसभा क्षेत्र में प्रभारी मंत्री, जिले के जनप्रतिनिधि, अध्यक्ष और संभागीय प्रभारियों के बीच बेहतर तालमेल नहीं बन पा रहा। इन क्षेत्रों में पार्टी ने दूसरे जिलों के नेता, पूर्व संगठन मंत्री, निगम- मंडलों के अध्यक्ष और पूर्व सांसद- विधायकों को प्रभारी बनाकर भेजा गया है। पन्ना जिले के बबलू पाठक को राजनगर सीट का प्रभार मिला है। इसी तरह छतरपुर जिले के पुष्पेंद्र गुड्डन पाठक पर सागर जिले की देवरी सीट की जवाबदारी है। पन्ना के संजय नागाइच को दमोह सीट संभाल रहे हैं जबकि जयप्रकाश चतुर्वेदी को महाराजपुर पर दायित्व है। विनोद गोटिया को डिंडोरी जिले की सीट दी गई है। पार्टी ने पुष्पेंद्र सिंह को बंडा सीट जिताने को कहा है। इनके अलावा संगठन ने जिन नेताओं को आकांक्षी सीटों का प्रभार सौंपा है उनमें जितेंद्र लिटोरिया, केशव सिंह भदोरिया, आलोक संजर, प्रहलाद भारती, संतोष जैन, गुड्डन पाठक, चेतन सिंह, राजो मालवीय, डॉली शर्मा, हरिशंकर जायसवाल, वसंत माकोड़े, अजीत पवार और विक्रम बुंदेला जैसे वरिष्ठ नेता शामिल हैं। इन सीटों पर बूथ स्तर पर त्रिदेवों अर्थात बूथ अध्यक्ष, महामंत्री और बीएलए को पूर्व में दिया गया प्रशिक्षण याद दिलाकर नए सिरे से सक्रिय किया जा रहा है। भाजपा हाईकमान ने बूथ समितियों को एक्टिव कर वोट शेयर बढ़ाकर 51 फीसदी सुनिश्चित करने का टारगेट दिया है।
100 सीटों के लिए विशेष रणनीति
भाजपा ने इन 121 सीटों में से करीब 100 ऐसी सीटें चिह्नित की हैं जिन पर विशेष रणनीति के तहत काम शुरू करने की जरूरत बताई गई है। ऐसी हारी हुई सीटों और जिन बूथों पर भाजपा प्रत्याशी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था वहां पन्ना प्रमुख के साथ हितग्राहियों से संपर्क का काम सघन करने को कहा गया है। सत्ता-संगठन के सर्वे में ग्वालियर- चंबल, महाकोशल अंचल से लेकर विध्य, बुंदेलखंड और मालवा-निमाड़ की कई सीटों पर मैदानी स्थितियां अब भी सुधार के संकेत नहीं दे रही । आकांक्षी सीटों के जो प्रभारी स्वयं अपने लिए टिकट की दौड़ में हैं उनका फोकस अपने जिले के समीकरण साधने पर बना हुआ है। प्रभार के जिले में बेहतर समन्वय और अपेक्षित तवज्जो न मिलने से भी मैदानी कार्यकर्ताओं से उनका तालमेल नहीं बन पाया जिससे उनके प्रवास बढ़ नहीं पा रहे।
कम मार्जिन वाली सीटों पर नजर
गौरतलब है कि भाजपा ने उन सीटों पर फोकस करने का प्लान बनाया है, जिनमें कांग्रेस प्रत्याशियों की जीत का मार्जन बहुत कम था। प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा का कहना है कि पार्टी इस बार वोट बैंक में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी चाहती है। बता दें कि 2018 के चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत 41 प्रतिशत था। प्रदेश में 10 सीटें ऐसी हैं, जहां जीत-हार का अंतर 1000 वोट का था। ये सीटें ग्वालियर चंबल की हैं। 18 सीटें वे हैं जहां भाजपा के कैंडिडेट 2000 वोट के अंतर से हारे। इसी तरह 30 सीटें हैं जहां पर जीत का अंतर 3,000 से कम रहा। वहीं 45 सीटें ऐसी हैं जहां जीत का अंतर 5,000 से कम रहा है। भाजपा इन सीटों को आकांक्षी सीटें मान रही है। ऐसी सीटों को मिला लिया जाए तो 100 के आसपास का आंकड़ा पार्टी की नजर में है। भाजपा को लग रहा है कि यदि इन सीटों को जीत लिया तो उसका मिशन 2023 पूरा हो जाएगा।
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