-देवउठनी ग्यारस पर कराया तुलसी का विवाह
अभिषेक असाटी बक्सवाहा
भारतीय संस्कृति के अनुसार देवउठनी एकादशी में नगर व ग्रामीण क्षेत्रों में देवउठनी ग्यारस के दिन धूम के साथ माता तुलसी भगवान विष्णु स्वरूप सालिगराम के साथ विवाह किया गया जिसमें महिलाओं, युवतियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया सभी ने माता तुलसी के पेड़, पौधे व सालिगराम भगवान के साथ गांठ जोड़ी उसके बाद कदंब के पेड़ को जल चढ़ाकर पूजा अर्चना की
पंडित बृज किशोर दुबे ने बताया कि देवउठनी ग्यारस के दिन कदंब के पेड़ पर जल चढ़ाने का व दीपदान करने का विशेष महत्व है इसलिए शुद्ध घी के दीपक जलाकर तुलसी व कदंब के पेड़ के नीचे रखें गए हैं उसके बाद भगवान को भोग लगाया गया और आरती की गई हिंदुओं के प्रसिद्ध त्योहारो में से एक दीपावली के बाद बाजार में देवउठनी ग्यारस के दिन रौनक देखने को मिली हालांकि इस देवउठनी एकादशी को विवाह मुहूर्त नहीं था लेकिन मान्यता के अनुसार यह दिन स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है जिसके चलते अनेकों परिवार में देवउठनी ग्यारस के दिन विवाह में संपन्न हुए देवउठनी को देव प्रबोधिनी एकादशी कहा गया है महिलाओं के अलावा पुरुषों ने भी दीपदान प्रज्वलित किया नगर से 2 किलोमीटर दूर धनवंतरी दो मील देवता पर सुबह 5 बजे पहुंच कर धर्म प्रेमियों एवं उनके साथियों द्वारा दीपों को जलाकर पूजा अर्चना की गई सभी नगर व ग्रामीण क्षेत्रों में तुलसी व कदंब की पूजा अर्चना की गई
कदंब के नाम से लगता है मेला
बक्सवाहा नगर में देव प्रबोधिनी एकादशी पर तीन दिवसीय कदंब के नाम से मेला लगता है जो कई वर्षों से चला आ रहा है मेले का आनंद लेने के लिए नगर के साथ-साथ आसपास के गांव से अधिक मात्रा में लोग पहुंचते हैं मेले में दुकानों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के झूले जिनमें से कुछ झूले इस परंपरागत मेले में पहली बार देखने को मिले जो आकर्षण का केंद्र रहे पिछले वर्ष से अधिक नृत्य टोलियां व कतकारिया व दिवाली नृत्य टोलियों का विशेष महत्व है मेले में सुबह से ही कतकारियों व नगर की महिलाओं द्वारा कदंब की पूजा का सिलसिला जारी हो गया था जो शाम तक चलता रहा