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धान निकलते ही पराली को जलाने का सिलसिला चालू , जिससे चारों ओर धुंआ ही धुंआ आने लगा  नजर

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मुकेश साहू  दीवानगंज रायसेन

नेशनल ग्रीन ट्रव्यूबनल ने खेतों में खरपतवार अथवा पराली को जलाने पर रोक लगा रखी है। इसके बाद किसान खुलेआम पराली और खेत में बचे ठूंठों को जला रहे हैं। इससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान हो रहा है बल्कि खेतों की उर्वराशक्ति भी प्रभावित हो रही है। रायसेन जिले के अंतर्गत आने वाले कई गांव मैं किसान आग लगाकर खेतों का ठूंठ जला रहे हैं। सबसे चौकाने वाली बात यह है कि इस पर रोक लगने के बावजूद अब तक एक भी मामले में कार्रवाई नहीं हुई है। इससे साफ है कि जिला प्रशासन इसे लेकर बिल्कुल भी सजक नहीं है।
पिछले कुछ सालों में मध्य प्रदेश में धान की फसल को पकने के बाद हाथों से न काटकर मशीन के जरिए काटा जा रहा है। यह मशीन धान की फसल को एक से डेढ़ फिट ऊपर से काटती है। इससे खेत में काफी मात्रा में ठूंठ बच जाता है। जबकि जो किसान हाथ से फसल की कटाई करते हैं उनके खेतों में यह समस्या नहीं आती है। मशीन से कटाई करने वाले किसान खेत से ठूंट को हटाने के लिए पहले उसके ऊपर पराली को डालते हैं और फिर आग लगा देते हैं। इससे खेत की उर्वरा शक्ति छीड़ होने के साथ ही पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। पराली के सही निस्तारण के लिए इंदिरागांधी विश्वविद्यालय सहित कृषि विभाग ने नए-नए प्रयोग किए हैं, लेकिन किसानों में जागरूकता न होने के चलते वह आज भी खेतों में आग लगाना अधिक आसान समझते हैं।


प्रशासनिक दावों की बात करें तो वह नवंबर माह के शुरूआत से ही पराली न जलाने को लेकर किसानों को जागरूक करना शुरू कर देते हैं। इसके साथ कुछ एनजीओ भी यह काम करते हैं। इसके बावजूद खेतों में जल रही पराली इस बात का संकेत देता है कि किसान इसे लेकर जागरूक नहीं हो रहा है। किसानों को प्रशासन की कार्रवाई व जुर्माने का डर भी दिखाया जाता है, लेकिन फिर भी पराली जलाने का सिलसिला निरंतर जारी है।
पराली जलाने से बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए एनजीटी ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है। पराली जलाने पर प्रति घटना के हिसाब से जुर्माने का प्रावधान है। कृषि और राजस्व विभाग के मैदानी अमले की उदासीनता से अब तक किसी भी किसान के ऊपर जुर्माना नहीं लगाया गया है।

पराली को जलाने से होने वाले नुकसान
1- इससे पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ रहा है, जो कि सभी के लिए काफी हानिकारक है।
2- फसल की सुरक्षा के लिए कुछ सहायक कीट जो कि खेत में रहते हैं वह भी मर रहे हैं। इसका खामियाजा कम उत्पादन के रूप में भुगतना पड़े रहा है।
3- खेत में आग लगाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है, जिससे उत्पादन में असर पड़ता है।
4- जल्द दूसरी फसल लेने के लिए किसान उठा रहे भारी नुकसान।
इस तरह हो सकता है समस्या का समाधान
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के मुताबिक पराली के सही उपयोग के लिए विश्वविद्यालय ने कई ऐसे प्रयोग किए हैं, जिससे किसान फायदा भी कमा सकता है। पराली को जलाने के बजाय किसान ट्राइकोडर्मा बैक्टीरिया वाले कैप्सूल का उपयोग करके काफी कम समय में खाद तैयार कर सकता है। इतना ही नहीं इस कैप्सूल की लागत पांच रुपए है, इससे इसकी लागत भी काफी कम आती है। इसके बाद भी किसान चाहें तो पराली को गोठानों में दान कर सकते हैं। इसके साथ ही कृषि विश्वविद्यालय में एक प्रोजेक्ट चालू किया गया है। यहां पराली की मदद से कप प्लेट, चटाई जैसी कई चीजें बनाई जा रही है। यहां एक बेलर मशीन भी है। यह मशीन पराली को इकट्ठा करके उसे बड़े गोले में बदल देती है। इसका उपयोग आवश्यकता पडऩे सूखा चारा या अन्य चीजों में किया जा सकता है। बॉल बनने से पराली को आसानी कम जगह में रखा जा सकता है। इससे यह फैलता नहीं है।

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