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भ्रामक विज्ञापन मामला: सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव को पेशी से दी छूट, उत्तराखंड सरकार को लगाई फटकार

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पतंजलि आयुर्वेद भ्रामक विज्ञापन मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुनवाई कर रहा है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की ओर से उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी दी. पतंजलि की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि हमने माफी संबंधी विज्ञापन दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये हमारे आदेश का अनुपालन नहीं है. आपने विज्ञापन की वास्तविक प्रति नहीं दाखिल की, आखिर ऐसा क्यों किया गया. रोहतगी ने कहा कि मैं आपके सामने अखबार की प्रति लेकर सामने हूं. यह मैं आपको यहीं दे रहा हूं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपकी ओर से ई-फाइलिंग प्रति दी गई, वास्तविक नहीं, मसला ये है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने हलफनामा दाखिल किया. उसमें वास्तविक प्रति नहीं लगाई. कैसे पता चलेगा कि विज्ञापन का आकार क्या है? हमने पिछली सुनवाई में विज्ञापन को लेकर स्पष्ट आदेश दिया था. तब भी आप अखबार की प्रति हमें कोर्ट रूम में दे रहे हैं. फाइल क्यों नहीं की. जस्टिस ए अमानुल्लाह ने कहा कि पिछली बार की तुलना में आपने अच्छा विज्ञापन माफीनामे के तौर पर दिया है. हम इसकी सराहना करते हैं. रोहतगी ने कहा कि ठीक है. हम बिना हलफनामे के अखबार की प्रति रजिस्ट्री में दाखिल कर देंगे, जिसमें विज्ञापन है. इस मामले में बहुत ही गलत साक्षात्कार सामने आया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को लेकर भी कहा गया है.

बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई में पेश नहीं होना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने छूट दी है. हालांकि स्पष्ट किया कि अभी सिर्फ अगली सुनवाई के लिए छूट दे रहे हैं. अगली सुनवाई 14 मई को होगी. जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. शीर्ष अदालत इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है. इस मामले में पिछली बार 23 अप्रैल को सुनवाई की गई थी.

सुप्रीम कोर्ट से उत्तराखंड सरकार को फटकार

वहीं, उत्तराखंड सरकार ने दवाओं के भ्रामक विज्ञापन को लेकर उठाए गए कदमों पर हलफनामा कोर्ट के सामने पढ़ा. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई है. कोर्ट ने पूछा कि पिछले नौ माह से क्या कर रहे थे? राज्य सरकार की हम मौखिक कोई बात नहीं मानेंगे. सिर्फ हलफनामे में सबकुछ बताइए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य प्राधिकार का रवैया बहुत ही शर्मनाक है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को नया और सही हलफनामा दाखिल करने के लिए 10 दिनों का समय दिया.

पिछली सुनवाई में भ्रामक विज्ञापनों पर सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद ने कहा कि उसने 67 अखबारों में माफीनामा प्रकाशित किया है, जिसमें कहा गया है कि वह अदालत का पूरा सम्मान करता है और उनकी गलतियों को दोहराया नहीं जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या पतंजलि द्वारा अखबारों में दी गई माफी का आकार उसके उत्पादों के लिए पूरे पेज के विज्ञापनों के समान था. विज्ञापन में पतंजलि ने माफी मांगी. पतंजलि ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि विज्ञापन की कीमत 10 लाख रुपए है.

सुप्रीम कोर्ट ने पूछे थे ये सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने दवाओं के विज्ञापन की सुनवाई का दायरा बढ़ा दिया. अदालत ने कहा कि मामला सिर्फ एक संस्था (पतंजलि) तक सीमित नहीं रखा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि भ्रामक विज्ञापन के जरिए उत्पाद बेचकर लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाली बाकी कंपनियों के खिलाफ उसने क्या कार्रवाई की? इंडियन मेडिकल एसोसिएशन से पूछा कि एलोपैथी डॉक्टर खास ब्रांड की महंगी दवाइयां अपने पर्चे में क्यों लिखते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल मेडिकल कमीशन से पूछा कि क्या जानबूझकर महंगी दवा लिखने वाले डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का क्या नियम है?

बाबा रामदेव और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण व्यक्तिगत रूप से सुप्रीम कोर्ट में मौजूद थे. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय मंत्रालयों और अधिकारियों को झूठे अभियानों में शामिल फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अमानुल्लाह की पीठ ने केंद्र से एक हलफनामा दाखिल कर उन कंपनियों के खिलाफ उठाए गए कदमों के बारे में बताने को कहा जो 2018 से भ्रामक स्वास्थ्य उपचार विज्ञापन जारी कर रही हैं.

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