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जीर्ण शीर्ण हैचरी और जलकुंभी से भरा तालाब: उद्यमियों को नहीं मिल रहा योजनाओं का लाभ

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लाखों की लागत के बाद भी नहीं बढ़ा मत्स्य उत्पादन

रिपोर्ट धीरज जॉनसन, दमोह

सिविल वार्ड सात में स्थित मत्स्य उद्योग विभाग की वर्षो से जीर्ण शीर्ण हेचरी और जलकुंभी से भर चुका तालाब मरम्मत और सुधार का इंतजार कर रहा है जिसका मत्स्य पालन पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ रहा है।

1989 में प्रदेश के राज्यपाल द्वारा किए गए इस चाइनीज टाइप फिश हेचरी के उद्घाटन के बाद आज स्थिति यह है कि यह सिर्फ एक ढांचा बन कर रह गया है जहां मत्स्य उत्पादन या किसानों को लाभ दूर की कोड़ी प्रतीत हो रहा है।जिसे देखकर लगता है कि एक ओर शासन विभिन्न योजनाओं के माध्यम से उद्योगों को बढ़ावा दे रहा है तो वहीं दूसरी ओर धरातल पर इनकी धज्जियां उड़ रही है। वैसे तो जिले में सैकड़ों तालाब है और किसान भी इस उद्योग के जरिए लाभान्वित हो सकते है परंतु यहां विभाग में ही बजट की कमी के कारण उपयोगी सामग्री की कमी है। तालाब की सीमा पर बनने वाली दीवार का काम भी बजट की कमी के कारण रुका हुआ है।

आधुनिक सुविधाओं से वंचित विभाग

मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के उद्देश्य के तहत नीली क्रांति को जिले के प्रत्येक गाँव वा कस्बे तक पहुँचाने के लिए यह विभाग वैसे तो वर्षो पूर्व अस्तित्व में आया था जिससे लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराया जा सकें, मगर अभी भी यह मूलभूत आधुनिक सुविधाओं से स्वयं वंछित प्रतीत हो रहा है।जिसे देखने पर पता चला कि यहाँ मत्स्य बीज उत्पादन के उद्देश्य से बनाईं गई चाईनीज हैचरी और ब्रीडिंग से संबंधित सभी तालाब मृतप्राय स्थिति में है, सहायक संचालक भी बताते रहे कि विभाग अंतर्गत ब्रीडिंग हेतु स्वच्छ एवं साफ मानसूनी पानी का आभाव है जिसके समाधान के लिए पूर्व में बोरवेल कराये गये मगर पानी नसीब नहीं हुआ,जिस कारण गाढ़ाघाट स्थित मानसूनी तालाब के पास बीज उत्पादन हेतु ब्रीडिंग का का कार्य किया जा रहा है।
अगर यहां पूर्व से उपलब्ध संसाधनों की मरम्मत कर विभाग स्थित हैचरी को उत्पादन हेतु पुनः तैयार किया जाता है तो इससे एक ओर जहाँ लोगों को कम लागत पर बीज उपलब्ध होगा तो वही दूसरी ओर जिले के युवाओं के लिए प्रशिक्षण का अवसर भी मिलेगा।यहां के संगृहण तालाब से जलकुंभी को अलग कर गहरी करण कर इसके पानी को आक्सीकृत करने के लिए फब्बारों का उपयोग भी किया जा सकता है तो मृतप्राय संसाधन पुनः जीवित हो सकते है।
इस संबंध में जूलोजी के शोधार्थी आशाराम यादव कहते है कि जिले को मतस्य जागरुकता एवं उत्पादन हेतु आत्मनिर्भर बनाने के लिए ब्रीडिंग का कार्य पुनः हो,लोगों को मिश्रित मत्स्य खेती के लिए प्रोत्साहन मिले,साथ ही हाइपोफाईजेशन की मदद से उन्नत किस्म का बीज तैयार करने की दिशा में विभाग अगर कदम उठाए तो जिले में मत्स्य उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।


” हेचरी काफी समय पहले बनी थी जो डेमेज हो चुकी है। ब्रीडिंग के लिए साफ पानी चाहिए जिसकी कमी है,बोरवेल करवाया था पर पानी नहीं मिला। गाढ़ाघाट में यूनिट तैयार की है जहां से स्पान लाते है। नालों की गंदगी के कारण तालाब का पानी गंदा हो चुका है उसमें जलकुंभी हो गई है। किसानों को नाव -जाल इत्यादि के लिए पिछले दो तीन सालों से बजट नहीं आया है। नए प्रोजेक्ट प्रारंभ करने का प्रयास कर रहे है।
सुरेंद्र कुर्मी सहायक संचालक मत्स्योद्योग, दमोह

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