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इस जगह हुई थी शिव और देवी पार्वती की शादी, यहां होती है सांपों की पूजा, देश के चमत्कारी नाग मंदिरों की कहानी

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हमारे देश में जिस तरह प्राचीन युग से ही देवी -देवताओं की पूजा होती आ रही हैं, उसी तरह हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की भी परंपरा रही है. नागों से जुड़े ये मंदिर देश के अलग -अलग कोने में बने हुए हैं. इनमें से एक मंदिर उज्जैन में है, जिसे नागचंद्रेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है. दूसरे मंदिर का नाम है भुजंग नाग मंदिर, जो कि गुजरात में स्थित है. तीसरा नागों से जुड़ा मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य में एक पहाड़ की चोटी पर स्थित है, जिसे नाग मंदिर पटनीटॉप के नाम से भी जाना जाता है. इन मंदिरों से जुड़े कुछ ऐसे रहस्य है, जिन्हें आज तक कोई नहीं जान पाया है. आइए इन मंदिरों के बारे में विस्तार से जानते हैं.

नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन

भारत में अगर सबसे पहले किसी नाग मंदिर के बारे में बात की जाए तो वो है उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर. यह मंदिर उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर बना हुआ है. नागचंद्रेश्वर मंदिर में एक बहुत ही प्राचीन प्रतिमा मौजूद है, जो बताया जाता है उज्जैन के अलावा दुनिया में कही भी नहीं है. पूरी दुनिया में ये एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान शिव विराजित हैं. शिव शंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं. इस मंदिर से जुड़ी एक मान्यता मंदिर को और खास बनाती है, जिसमें कहा जाता है इस मंदिर की सुरक्षा आज भी नागराज तक्षक करते हैं और ये मंदिर साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खोला जाता है.

नाग मंदिर, पटनीटॉप

नागचंद्रेश्वर मंदिर के बाद अगर सबसे पुराने किसी नाग मंदिर के बारे में बात की जाएं तो वो नाग मंदिर, मंतलाई है, जो 600 साल पुराना मंदिर बताया जाता है. माना जाता है कि नाग मंदिर देश के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. धार्मिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि भगवान शिव और देवी पार्वती का इस मंदिर में विवाह हुआ था. लेकिन ये प्राचीन मंदिर पूरी तरह नाग देवता को समर्पित है. नाग पंचमी उत्सव के दौरान हजारों तीर्थयात्री इस मंदिर में आते हैं. और नाग पंचमी में यहां सांपों की पारंपरिक रूप से पूजा की जाती है.

भुजंग नाग, मंदिर

भुजंग नाग मंदिर गुजरात के भुज में बना है, नाग पंचमी के दिन इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है. कथाओं के अनुसार ये मंदिर नागों के आखिरी वंश भुजंग के नाम पर बनवाया गया था, जिसे ही अब भुजंग नागा मंदिर के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सारी मुरादें पूरी होती हैं.

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