• ‘शिक्षा वह है जो आचरण संवारे’
• विदिशा-रायसेन जिले के कॉलेज प्रिंसिपल हुए शामिल
• ‘शिक्षा और समझ के बीच सामन्जस्य ज़रूरी’
• ‘भ्रष्टाचार और बेइमानी पढ़े-लिखे लोग कर रहे हैं’
रायसेन। सांची बौद्ध-भारतीय अध्ययन विश्वविद्यालय में आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती पर विशेष परिचर्चा आयोजित की गई। नई शिक्षा नीति 2020 विषय पर केन्द्रित परिचर्चा में रायसेन और विदिशा के समस्त शासकीय कॉलेजों के प्रिंसिपलों को आमंत्रित किया गया था।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि नई शिक्षा नीति को बेहद गहन चर्चा और अध्ययन के बाद लाया गया है। उन्होंने कहा कि यह पहला मौका है जब शिक्षा नीति में ज्ञान के साथ चरित्र को जोड़ा गया है। शिक्षा वो लाभप्रद है जो हमारे आचरण को संवारे। उन्होंने बताया कि सांची विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य ही मूल्यपरक और कौशल पर शिक्षा प्रदान करना है जो जो लोगों को नैतिकता के साथ-साथ रोज़गार के अवसर पैदा करे। प्रो. लाभ ने बताया कि विश्वविद्यालय जैन प्रेक्षा ध्यान परंपरा, बौद्ध विपश्यना ध्यान परंपरा, सांख्य दर्शन और अन्य परंपराओं पर आधारित पाठ्यक्रम भी प्रारंभ करेगा।
‘पराक्रम दिवस’ पर विश्वविद्यालय में अनौपचारिक चर्चा में विदिशा-गुलाबगंज के प्रिंसिपल डॉ. संजीव जैन ने कहा कि शिक्षा और समझ के बीच सामन्जस्य बैठाना ज़रूरी है ताकि समाज में बिखराव न हो। उहोंने कहा कि भ्रष्टाचार और बेइमानी सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे लोग कर रहे हैं वो भी अपने समाज, अपने ही लोगों के साथ चालाकी कर रहे हैं। ऐसे में यह आवश्यक होगा कि हमारी शिक्षा छात्रों को वह दृष्टिकोण दे कि हम क्या हैं।
डॉ. संजीव जैन ने ब्राज़ील के मशहूर शिक्षाविद पाउलो फ्रेयर का ज़िक्र किया जो यह कहते हैं कि शिक्षा हमेशा ज़मीन से विकसित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जो शिक्षा छात्रों/लोगों को चालाक बना रही है वह शिक्षा अच्छी नहीं है जबकि शिक्षा ऐसी मिलनी चाहिए कि वो बुद्धिमत्ता पूर्ण लोग तैयार करे। जबकि, नियंत्रण होने पर चीज़ें स्वभाविक रूप से विकसित नहीं हो पाएंगी।
डॉ. जैन ने कहा कि अंधाधुंध विकास का पैमाना हमेशा सही नहीं होता बल्कि कई बार बुराई के पैमाने का नीचे आना भी विकास को प्रदर्शित करता है। उदाहरण के ज़रिए उन्होंने बताया कि किसी देश में अधिक अस्पताल, अधिक थाने होना स्वस्थ समाज का प्रतीक नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि बैंकिंग पद्दति और शिक्षा पद्धति में फर्क होना चाहिए। मानवीयता पैदा होनी चाहिए, संबंधों में प्रगाणता बढ़नी चाहिए। शिक्षा और नीति में फर्क होना चाहिए। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो ज्ञान दे और ज्ञान व्यक्ति के अंदर से ही आता है। उन्होंने कहा कि एकता में सौंदर्य नहीं है विभिन्नता में सौंदर्य है।
बेगमगंज, रायसेन की प्रिंसिपल डॉ. कल्पना जाम्बुलकर ने कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत आज कोई भी छात्र अपने मूल विषय के अतिरिक्त भी अन्य विषय पर पी.एच.डी कर सकता है। शासकीय कॉलेज विदिशा के प्रिंसिपल डॉ. महेंद्र जैन ने कहा कि शिक्षा की उन्नति का पैमाना यह होना चाहिए कि समाज में कितने संस्कार बढ़े हैं इसे कभी समाचार पत्रों में नहीं बताया जाता जबकि समाचार पत्र ये ज़रूर बताते हैं कि इस साल देश के कितने लोग अरबपति हो गए।
विश्वविद्यालय के वैकल्पिक शिक्षा विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. प्रभाकर पांडे ने बताया कि कैसे नई शिक्षा नीति के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा से लोगों को अवगत कराया जा सकता है। कार्यक्रम में सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व और कृतित्व पर डॉ राहुल सिद्धार्थ एवं डॉ उपेन्द्र बाबू खत्री ने प्रकाश डाला।