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जीवन में बहुत जरूरी है मानसिक स्वास्थ्य- सामाजिक कार्यकर्ता -दिव्या अग्रवाल

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-सामाजिक कार्यकर्ता ने बताए मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के टिप्स

– मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य की तरह ईश्वर प्रदत्त है

 रंजीत गुप्ता शिवपुरी

शिवपुरी के राजमाता विजयाराजे सिंधिया मेडिकल कॉलेज में मनोरोग सामाजिक कार्यकर्ता दिव्या अग्रवाल ने बताया है कि आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में मानसिक स्वास्थ्य बहुत जरूरी है। सामाजिक कार्यकर्ता दिव्या अग्रवाल ने बताया है कि हम देखते हैं कि कई लोग कहते हैं कि आज मन नहीं लग रहा है। मूड खराब है, आजकल गुस्सा बहुत आने लगा है। मैं तो सही हूं पता नहीं उसे क्या परेशानी है। ऐसी तमाम बातें हम खुद के बारे में अक्सर बोलते रहते हैं और समझ भी नहीं पाते कि ऐसा हमारे साथ क्यों हो रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता दिव्या अग्रवाल ने बताया है कि यह सारी बातें और ऐसी अनगिनत बातें हमारे मानसिक स्वास्थ्य से ही जुड़ी हुई हैं। उन्होंने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य की तरह ईश्वर प्रदत्त है और बस हमारा काम है इसे बनाए रखना क्योंकि हम खुद ही लापरवाही बरततें हैं और इसे खो देते हैं।
अच्छा क्या लक्षण है इस अनमोल धरोहर को वही जो हम अक्सर महसूस करते हैं। जैसे खुश रहना, अच्छा कहना, अच्छा सुनना, गुनगुनाना, किताबें पढ़ना, अपने शौक पूरा करना, रिश्ते बनाना, रिश्ते निभाना, थोड़ा सा बिंदास रहना, दूसरों की भावनाओं की कद्र करना, अपनी भावनाओं को दूसरों को समझा पाना, दोस्त होना और दोस्त बनाना सबसे जरूरी पॉइंट हंै।
अपना आत्मविश्वास बनाए रखना और दूसरों पर विश्वास करना, ध्यान रखना, ईमानदारी बनाए रखना यह मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण है लेकिन आज की जीवनशैली और भागदौड़ में यह सब कहीं खो रहा है। एकाकी परिवार और रोजी-रोटी की मजबूरी ने धीरे-धीरे हमें भीतर से खाली सा कर दिया है।
दिव्या अग्रवाल बताती हैं कि मजबूरी ने हमें स्वार्थी बनाया है। स्वार्थ ने लालची, लालच ने धूर्त और चालक बनाया है। धूर्तता और चालाकी ने हमारी इंसानियत और अच्छे पन को हर लिया।
इंसान की इंसानियत जब क्षीण होने लगी तो सिमट गया खुद में (इसे खुद को खोजने और खुद को पाना नहीं कहेंगे) और खुद में सिमटे इंसान की दुनिया इतनी संकुचित हो गई है कि वह खुद से आगे अगल-बगल ऊपर नीचे कुछ नहीं देख पा रहा है।
आज के वक्त में सिखाया भी यही जा रहा है कि खुद को छूने खुद को की भावनाओं को सर्वोपरि रखें। फिर दुनिया चाहे जो कहे परवाह मत करो। सारी बातें सही है यह जरूरी भी है लेकिन इस बात को सीखने के चक्कर में हम दूसरी बातें भूल जाते हैं। खुद को सर्वोपरि रखो लेकिन अपनी सही बातों को मनवाने के लिए खुद को चुने लेकिन दूसरे के भी अस्तित्व को स्वीकारते हुए।
बुद्ध की तरह माध्यम मार्ग ही की जरूरत है हमें, क्योंकि जब हम एक अति से बाहर आते हैं तो सीधे दूसरी अति को पकड़ लेते हैं लेकिन मध्यम मार्गी सोच हमें संतुलित करती है। संतुलन ही जीवन है। अच्छी जिंदगी में सब कुछ संतुलित होगा ही और यही संतुलन हमें संतुष्टि प्रदान करता है और जब संतुष्टि है तो बाहर की सारी दौड़ समाप्त हो जाती है। हम अनुभव कर पाते हैं एक आंतरिक सुख के आनंद का प्रसन्नता का।

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